...

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वेश्या... पेशा या मजबूरी
वैश्या... कौन पुरुष या वो औरत...,
जो बैठती है डर और लज्जा से पर पा हो निर्लज... समाज की निर्लजता को ओढ़ने के लिए...
जैसे हरे भरे खेतों के अन्न को बचाने को साप ज़रूरी है चूहों के दमन के लिए... ठीक उसी प्रकार इस वहशी समाज के अय्याश सफेदपोशों से बचाने को समाज की भोली भाली लड़कियों के लिए शायद ज़रूरी है..
समाज के इस पाप को समेट लेती हैं ये वेश्याएं अपने आंचल...