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वेश्या... पेशा या मजबूरी
वैश्या... कौन पुरुष या वो औरत...,
जो बैठती है डर और लज्जा से पर पा हो निर्लज... समाज की निर्लजता को ओढ़ने के लिए...
जैसे हरे भरे खेतों के अन्न को बचाने को साप ज़रूरी है चूहों के दमन के लिए... ठीक उसी प्रकार इस वहशी समाज के अय्याश सफेदपोशों से बचाने को समाज की भोली भाली लड़कियों के लिए शायद ज़रूरी है..
समाज के इस पाप को समेट लेती हैं ये वेश्याएं अपने आंचल में... बावजूद इनके भी ना जानें कितनी मासूम लड़कियां शिकार हो जाती हैं इन दरिंदों के... मसल दी जाती हैं बलत्कृत कर ढकेल दी जाती हैं गुमनाम गलियों में...
ना जाने कितने... वो चेहरे जो दिन के उजालों में चमकते और शरीफ़ नजर आते हैं वे रात के अंधेरे में जा अपनी शराफत उतार आतें हैं इनकी चोखटों पर.. जिस्मफिरोशी करने वाली ज्यादा तर महिलाएं इतनी गरीब होती है की वे दो वक्त का खाना भी ना जुटा पाती हैं.. पेट पालने को अपना और आपने परिवार का वो जिस्म अपना बेचा करती हैं..
सोचिए जरा ऐसे पुरुषों के बारे में जो इनकी गरीबी का इनकी गुरबत का फ़ायदा उठाते हैं.. वे संबंध तो बनाते ही है साथ इनको शारीरिक प्रयातनाएं भी देते है.. इनके शरीर को नोचना कटना वो सिगरेट से जलाना तो आम बातें इनके द्वारा बताई जाती हैं...
लोग सिर्फ़ सेक्स के लिए नही बल्कि फैंटेसी भी पूरा करने के लिए जाते हैं यहां..
एक आलेख में पुरुषों के बारे में इनके विचार सुन कुछ अजीब सा लगा.. उनके अनुसार इन वेश्याओं का कहना है हर शरीर के अंग का दाम तय होता है हर प्रतरणा का भी और ये एक मशीन भांति सब सहती हैं क्योंकि वो पुरुष हर कृत्य के लिए अलग अलग मुल्य देता है इन्हें... छी.. कितना गिर गया है इंसान...
© दी कु पा