श्राध
आज़ ऊपर बैठी रूह ने बड़ा
ठहाका लगाया है,
देखो ! आज़ मेरे बच्चों ने पंडित
जी को बुलाया है।
कितने जतन से पकवान बनाया है
और बड़े ही आदर भाव से
खिलाया है।
जिसके लिए मुझे तरसाया था
वो ही सब आज़ बनाया है।
और तो और कोवे और कुत्ते
को भी दावत में बुलाया है,
बड़े ही प्यार से इनको भी खाना
खिलाया है।
जगह नहीं थी मेरे लिए घर में,
अतः वृद्धाश्रम में भगाया था।
देखो ! देखो !आज़ मेरा फोटो
भगवान के साथ ही लगाया है।
थोड़ा-बहुत पैसा भी नहीं था मेरे लिए लेकिन...
आज़ पंडित जी को पांच सौ का
नोट मिठाई का डिब्बा और
सात नये कपड़ों का जोड़
मेरा नाम लेकर पहनाया है।
देखो !कैसे दिखावा कर रहे हैं
अपने आप से ही छलावा कर रहे हैं,
ये सब मेरे भूत बन कर सताने के
डर से डर कर, कर रहे हैं।
अरे ! इन्हें इतना नहीं पता
क्या मां बाप होते हैं कभी खफ़ा ?
बस !सभी बच्चों से इतनी सी
गुजारिश है...
मेरे साथ रहने वालों की भी
सिफ़ारिश है...
मरने के बाद नहीं,,,मां बाप का
जीते जी... करो सम्मान
नहीं चाहते हैं वो पैसे,ना चाहे
पकवान ।
*बस !थोड़ा सा समय निकालो*
*थोड़ी सी घर में जगह दो*,
*और रखो... उनका ध्यान