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संजु,मंजू और धनंजय
एक चित्रकार था।वह सदा चित्र बनाने में मग्न रहता था।वह अच्छे अच्छे सुंदर चित्र बनाकर भेचता था, और उन पैसों में ही अपना गुजारा करता था। चित्रकार के तीन बच्चे थे। छोटा दस साल का,उसका नाम संजय था।मजले का नाम मनोज था। और सबसे बड़े बेटे का नाम धनंजय था।सब लोग उन्हें संजु,मंजु और धनु कहकर पुकारते थे। चित्रकार कभी अपने बच्चों को पढ़ाई कि तरफ ध्यान नहीं दिया।वह सिर्फ अपने चित्र बनाने के काम में लगाया करता था। कभी सफेद पेपर लेकर आओ तो कभी रंग लेकर आओ तो कभी ब्रश लेकर आने के का में लगाया करता। ओ तीनों लड़के पिताजी के हाथ बंटाया करते थे। पिताजी जो कहते वह का काम करते थे। उन तीनों में सुझबूझ थोड़ी कम थी।
एक दिन चित्रकार एक बड़ा सा चित्र बनाने में व्यस्त था।तो चित्रकार ने अपने छोटे बेटे को साहूकार के पास जाकर, पांच हजार रुपए लेकर आने को कहा। हर बार चित्रकार खुद ही जाकर पैसे लाता था लेकिन चित्र बनाने व्यस्त होने के कारण, अपने छोटे बेटे को भेज दिया।साहूकार ने दो अच्छे सुंदर से चित्र कि खरीदारी कि , उसके पैसे देने थे। इसलिए अपने छोटे बेटे को चित्रकार ने साहूकार के घर भेजा।संजु उस साहूकार के घर आया, साहूकार का घर बहुत ही बड़ा, दुमंजिला था।
संजय ने नौकर से पूछा "बोलो साहूकार कहां है
मेरे पिताजी ने पैसे लेने भेजा है।" तो नौकर ने कहा "जाओ उपर बेठै है। वहां जाकर मिलों।"
ऊपर जाने के लिए एक छोटा सी सीढ़ी थी।उस छोटी सी सीढ़ी उपर चढकर आया। साहूकार तकिये के सहारे मंच पर बैठे थे। साहूकार बढ़े मोटाले तथा बड़ा-सा पेट आगे झुका हुआ,तगड़े और वजनदार थे।मंजु साहूकार को देखते ही जोर-जोर से हंसने लगा।उस को हंसते देखकर
साहूकार ने पूछा "अरे क्यों हंस रहे हो ?"
संजु बोला "साहूकार जी आप तो इतने घोटाले हो और तगड़े वजनदार भी हो , लेकिन आप इस सीढ़ी से नीचे कैसे जाएंगे,आप तो बीच में ही अटक जाएंगे।" यह बोलकर फिर से जोर जोर से हंसने लगा। साहूकार को बड़ा गुस्सा आया और संजु डांटकर पैसे दिए बीना वापस भेज दिया। संजय घर आया, उसने सारी हकीकत बताई।
चित्रकार पिताजी ने संजय को डांटा और अपने मजले बेटे मनोज को साहूकार के घर भेजा।वह साहूकार के घर गया।वह भी सीढ़ी चढ़कर ऊपर गया। उसने साहूकार को प्रणाम किया और पैसे मांगे।तब साहूकार ने कहा "अभी तुम्हारा छोटा भाई आया था। उसने मुझे क्या बोला यह सारी बात बताई। तब मनोज भी जोर-जोर से हंसने लगा। साहूकार ने मनोज को "अरे मनोज, तुम्ह भी क्यों हंस रहे हो ? तब मनोज हंसते हुए बोला"मंजु बोला वह सही कहा है लेकिन आप सीढ़ी के बीच में ही अटक कर मर गए, तो क्या होगा,यह सोचकर हंस रहा हुआ हूं, साहूकार जी। मनोज कि बात पर भी बहुत गुस्सा आया और मनोज को भी डांटकर वापस भेज दिया।
पैसे कि बहुत जरूरत के कारण चित्रकार ने अपने बड़े बेटे धनंजय को साहूकार के पास जाकर पैसे लाने को भेजा। धनंजय साहूकार के पास आया। धनंजय ने साहूकार जी साष्टांग नमस्कार करते हुए बोला "मेरे दोनों भाई आए थे, उन्हें अपने खाली हाथ भेजा।तो पिताजी ने पैसे लाने मुझे भेजा है।"ईस बात पर साहूकार ने दोनों भाईयों कि करतूत के बारे में सारी बात सविस्तर से धनंजय को बताया,तब वह बात सुनकर धनंजय भी अधिक जोर-जोर से हंसने लगा। अब तो धनंजय को हंसता देख, साहूकार और भी आग बबूला हो गए और आंखें फाड़कर गुस्से में "अरे पागल,तुम क्यों हंस रहे हो।"धनंजय जोर-जोर से हंसते हंसते, अपनी हंसी नहीं रोक पा रहा था और हंसते हंसते बोला "साहूकार जी , मैं क्या बताऊं, मेरे संजु-मंजू दोनों भाईयों ने अच्छी भी सच्ची भी बात कही है लेकिन मैं यह सोचकर हंसी आ रही है कि"अगर आप सीढ़ी अटक कर मरने के बाद,बाहर निकालने नहीं आ सका तो ,आपके घर को ही आग लगाना पड़ेगा।" याने यही अस्थि संस्कार करना पड़ सकता है,यह सोचकर हंसी आ गयी।
साहूकार को धनंजय कि बात सुन बहुत गुस्सा आया और नौकर से कहकर धनंजय को पीटाई करने कहा।यह सुनते ही धनंजय वहां से भाग निकला। भागते-भागते घर आकर सारी बात पिताजी को बताया।तो चित्रकार अपने तीनों लड़कों की हरकत से परेशान होकर,मांथे पर हाथ पकड़कर बैठ गए ? अपने बेटों को अच्छे संस्कार दिए होते तो ये। नौबत नहीं आती। सही वक्त सही संस्कार देना हर एक माता-पिता तथा पालक का कर्तव्य है, उनके अविवेकता के लिए हम ही कारणीभूत होंगे। अविवेक करण सभी अच्छे काम बिगड़ जाते है। हर बच्चों में जीवन मुल्यों को विकसित करने संस्कारीत करना चाहिए,तो बच्चे विवेकपूर्ण जीवनशैली व्यतीत कर सकते है।
© आत्मेश्वर