मेरो लडडू गोपाल♥️✍️
मनसुखा बहुत दुर्बल था।
उसके शरीर की सभी हड्डियां दिखाई पड़ती थीं। एकदिन श्रीकृष्ण ने मनसुखा के कंधे पर हाथ रखकर कहा–मनसुखा ! तुम मेरे मित्र हो कि नहीं? मनसुखा ने सिर हिलाकर कहा–हां, मैं तुम्हारा मित्र हूँ। तब कन्हैया ने कहा ऐसा दुर्बल मित्र मुझे पसंद नहीं। तुम मेरे जैसे तगड़े हो जाओ। मनसुखा रोने लगा। उसने कहा–कन्हैया ! तुम राजा के पुत्र हो। तुम्हारी माता तुम्हें दूध-माखन खिलाती है। इससे तुम तगड़े हो गए हो। मैं तो गरीब हूँ। मैंने कभी माखन नहीं खाया। मेरी मां मुझे छाछ ही देती है। मुझ जैसे गरीब को कौन माखन देगा? कन्हैया ने मनसुखा से कहा–मैं तुम्हें हर रोज माखन खिलाऊँगा। मनसुखा ने कहा–कन्हैया तुम मुझे हर रोज माखन खिलाओगे तो तुम्हारी माता गुस्सा करेगी। तब कन्हैया ने कहा–अपने घर का नहीं, पर बाहर से कमाकर मैं तुम्हें माखन खिलाऊँगा। इस प्रकार अपने मित्रों को माखन खिलाने के लिए कन्हैया ने माखनचोरी लीला की। ऐसा अद्वितीय था श्रीकृष्ण का सख्य-प्रेम जिसमें श्रीकृष्ण माखनचोरी की योजना सखाओं के समक्ष रखते हैं कि किस प्रकार हम सब मिलकर गोपियों के घर से माखन की मटकी उठा लाएंगे, खाएंगे, पशु-पक्षियों को खिलायेंगे, गिराएंगे और माखन की कीच मचाएंगे। यह सुनकर गोपबालकों के आनन्द का पार नहीं है। सब ताली पीट-पीटकर नाचने लगे। नंदबाबा की कसम खाकर सभी श्रीकृष्ण की बुद्धि की प्रशंसा करने लगे।
करैं हरि ग्बाल संग बिचार।
चोरी माखन खाहु सब मिलि, करहु बाल-बिहार।।
यह सुनत सब सखा हरषे, भली कही कन्हाइ।
हँसि परस्पर देत तारी, सौंह करि नँदराइ।।
कहाँ तुम यह बुद्धि पाई, स्याम चतुर सुजान।
सूर प्रभु मिलि ग्वाल-बालक, करत हैं अनुमान।।
जिन श्रीकृष्ण के घर नौ लाख गाएँ थीं, उनको माखन चुराकर खाने की आवश्यकता नहीं थी। फिर भी अपने ग्वालवालों को खिलाने के लिए वो चोरी करते , गोपियों को आनन्दित करने के लिए माखन चोरी करते और यशोदामाता की डांट खाते रहै।
प्रभु दीनदयाला 👏👏
#frindship🤝🤘
© preet_90aii💞
उसके शरीर की सभी हड्डियां दिखाई पड़ती थीं। एकदिन श्रीकृष्ण ने मनसुखा के कंधे पर हाथ रखकर कहा–मनसुखा ! तुम मेरे मित्र हो कि नहीं? मनसुखा ने सिर हिलाकर कहा–हां, मैं तुम्हारा मित्र हूँ। तब कन्हैया ने कहा ऐसा दुर्बल मित्र मुझे पसंद नहीं। तुम मेरे जैसे तगड़े हो जाओ। मनसुखा रोने लगा। उसने कहा–कन्हैया ! तुम राजा के पुत्र हो। तुम्हारी माता तुम्हें दूध-माखन खिलाती है। इससे तुम तगड़े हो गए हो। मैं तो गरीब हूँ। मैंने कभी माखन नहीं खाया। मेरी मां मुझे छाछ ही देती है। मुझ जैसे गरीब को कौन माखन देगा? कन्हैया ने मनसुखा से कहा–मैं तुम्हें हर रोज माखन खिलाऊँगा। मनसुखा ने कहा–कन्हैया तुम मुझे हर रोज माखन खिलाओगे तो तुम्हारी माता गुस्सा करेगी। तब कन्हैया ने कहा–अपने घर का नहीं, पर बाहर से कमाकर मैं तुम्हें माखन खिलाऊँगा। इस प्रकार अपने मित्रों को माखन खिलाने के लिए कन्हैया ने माखनचोरी लीला की। ऐसा अद्वितीय था श्रीकृष्ण का सख्य-प्रेम जिसमें श्रीकृष्ण माखनचोरी की योजना सखाओं के समक्ष रखते हैं कि किस प्रकार हम सब मिलकर गोपियों के घर से माखन की मटकी उठा लाएंगे, खाएंगे, पशु-पक्षियों को खिलायेंगे, गिराएंगे और माखन की कीच मचाएंगे। यह सुनकर गोपबालकों के आनन्द का पार नहीं है। सब ताली पीट-पीटकर नाचने लगे। नंदबाबा की कसम खाकर सभी श्रीकृष्ण की बुद्धि की प्रशंसा करने लगे।
करैं हरि ग्बाल संग बिचार।
चोरी माखन खाहु सब मिलि, करहु बाल-बिहार।।
यह सुनत सब सखा हरषे, भली कही कन्हाइ।
हँसि परस्पर देत तारी, सौंह करि नँदराइ।।
कहाँ तुम यह बुद्धि पाई, स्याम चतुर सुजान।
सूर प्रभु मिलि ग्वाल-बालक, करत हैं अनुमान।।
जिन श्रीकृष्ण के घर नौ लाख गाएँ थीं, उनको माखन चुराकर खाने की आवश्यकता नहीं थी। फिर भी अपने ग्वालवालों को खिलाने के लिए वो चोरी करते , गोपियों को आनन्दित करने के लिए माखन चोरी करते और यशोदामाता की डांट खाते रहै।
प्रभु दीनदयाला 👏👏
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© preet_90aii💞
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