एक सवाल...
समय के साथ सोच और हालात में बदलाव अवश्य आया है किंतु कुछ मापदंड आज भी कुंठित मानसिकता के नीचे दबे चित्कार करने के अलावा कुछ नहीं कर पाते है l
सदियों से परंपरागत रूप से चला आ रहा है कि पुरुष को बाहर जाकर कमाना और परिवार का पालन पोषण करना होता है, और स्त्री परिवार की सुनियोजित तरीके से पूर्ण रूप से समर्पित होकर सेवा सुश्रुषा करती है l कितना सुंदर और व्यवस्थित लगता है सुनने में l अब कुछ सवाल या इसका दूसरा रूप देखे l
पुरुष को काम करना है इसके लिए उसे शिक्षा इत्यादि के सभी अवसर पूरे मनोयोग से दिये जाते है l उनकी अच्छी नौकरी और उनकी व्यस्तता का सम्मान भी किया जाता है l इसी सिलसिले में यदि उन्हे किसी दुसरे शहर या विदेश जाना पड़े, तो परिवार और समाज का अधिकतर सहयोग पूर्ण रूप से हँसी खुशी मिलता है l
स्त्री भी अपनी हर भावना पर नियंत्रण लगा कर , घर परिवार की सारी जिम्मेदारी भली भाँति निभाने का आश्वासन दे कर उसे उचाईयाँ छूने के लिए एक आसमाँ मुस्कुरा कर दे देती है l
इतनी व्याख्या तो केवल भूमिका ही थी एक प्रसंग की, अब यदि घर परिवार से दूर रहते पुरुष को अपने पद, शिक्षा, और जीवन शैली पर दंभ होने लगे, और एक समय के बाद एकाकीपन खाने लगे या, परिस्तिथीवश उनके जीवन में कोई और प्रवेश कर ले और वह सबकी बातों को नज़रंदाज़ कर उस जीवन शैली और अपनी खुशियों को प्राथमिकता दे, तो अधिकतर ये समाज और परिवार एक तरह से अप्रत्यक्ष रूप से उसे स्वीकार ही लेता है l और वो नारी जो अपनी हर खुशी को होम कर के जी रही होती है उसके बारे में सोचने की जरूरत समझी ही क्यों जाए l तुम्हारा खर्चा उठायेगा, तुम रहो आराम से, जैसे शब्दों के बीच उसके कुचलते आत्म सम्मान और व्यक्तित्व की खामोश चीखें किसी की भी आत्मा को नहीं झकझोरती l
सत्य तो ये है कि इस पुरुष प्रधान समाज में नारी को आज भी एक अलग ही दृष्टिकोण से देखा जाता है l उपरोक्त वर्णित अवस्था में यदि पुरुष के स्थान पर नारी हो तो सबसे पहले उसके चरित्र की बखिया उधेडी जायेगी, फिर लांछन लगेगे, लापरवाह, स्वार्थी ,घर बर्बाद करने वाली, दो कुलो का नाश करने वाली जैसे ना जाने कितने l
पृश्न ये नहीं है कि नारी के साथ ऐसा क्यों, प्रश्न ये है कि पुरुष को ये छूट क्यों l
हम हमेशा एक बात कहते है कि सभी ऐसे नहीं है, अपवाद बहुत है लेकिन आज भी कुंठित मानसिकता इस समाज को घुन की तरह खोखला किये जा रही है और विकृत सोच के लोग उसे बढ़ावा देने के दुष्कर्म में अपना सहयोग बढ़ चढ़ कर देते है l
समाज हमसे बनता है, ज्यादा नहीं केवल सही और गलत के भेद को समझे और आँख मूंद कर किसी के बहकावे में ना आकर अपनी सोच पर यकीन करे l
त्रुटि के क्षमा 🙏🏻🙏🏻
© * नैna *
सदियों से परंपरागत रूप से चला आ रहा है कि पुरुष को बाहर जाकर कमाना और परिवार का पालन पोषण करना होता है, और स्त्री परिवार की सुनियोजित तरीके से पूर्ण रूप से समर्पित होकर सेवा सुश्रुषा करती है l कितना सुंदर और व्यवस्थित लगता है सुनने में l अब कुछ सवाल या इसका दूसरा रूप देखे l
पुरुष को काम करना है इसके लिए उसे शिक्षा इत्यादि के सभी अवसर पूरे मनोयोग से दिये जाते है l उनकी अच्छी नौकरी और उनकी व्यस्तता का सम्मान भी किया जाता है l इसी सिलसिले में यदि उन्हे किसी दुसरे शहर या विदेश जाना पड़े, तो परिवार और समाज का अधिकतर सहयोग पूर्ण रूप से हँसी खुशी मिलता है l
स्त्री भी अपनी हर भावना पर नियंत्रण लगा कर , घर परिवार की सारी जिम्मेदारी भली भाँति निभाने का आश्वासन दे कर उसे उचाईयाँ छूने के लिए एक आसमाँ मुस्कुरा कर दे देती है l
इतनी व्याख्या तो केवल भूमिका ही थी एक प्रसंग की, अब यदि घर परिवार से दूर रहते पुरुष को अपने पद, शिक्षा, और जीवन शैली पर दंभ होने लगे, और एक समय के बाद एकाकीपन खाने लगे या, परिस्तिथीवश उनके जीवन में कोई और प्रवेश कर ले और वह सबकी बातों को नज़रंदाज़ कर उस जीवन शैली और अपनी खुशियों को प्राथमिकता दे, तो अधिकतर ये समाज और परिवार एक तरह से अप्रत्यक्ष रूप से उसे स्वीकार ही लेता है l और वो नारी जो अपनी हर खुशी को होम कर के जी रही होती है उसके बारे में सोचने की जरूरत समझी ही क्यों जाए l तुम्हारा खर्चा उठायेगा, तुम रहो आराम से, जैसे शब्दों के बीच उसके कुचलते आत्म सम्मान और व्यक्तित्व की खामोश चीखें किसी की भी आत्मा को नहीं झकझोरती l
सत्य तो ये है कि इस पुरुष प्रधान समाज में नारी को आज भी एक अलग ही दृष्टिकोण से देखा जाता है l उपरोक्त वर्णित अवस्था में यदि पुरुष के स्थान पर नारी हो तो सबसे पहले उसके चरित्र की बखिया उधेडी जायेगी, फिर लांछन लगेगे, लापरवाह, स्वार्थी ,घर बर्बाद करने वाली, दो कुलो का नाश करने वाली जैसे ना जाने कितने l
पृश्न ये नहीं है कि नारी के साथ ऐसा क्यों, प्रश्न ये है कि पुरुष को ये छूट क्यों l
हम हमेशा एक बात कहते है कि सभी ऐसे नहीं है, अपवाद बहुत है लेकिन आज भी कुंठित मानसिकता इस समाज को घुन की तरह खोखला किये जा रही है और विकृत सोच के लोग उसे बढ़ावा देने के दुष्कर्म में अपना सहयोग बढ़ चढ़ कर देते है l
समाज हमसे बनता है, ज्यादा नहीं केवल सही और गलत के भेद को समझे और आँख मूंद कर किसी के बहकावे में ना आकर अपनी सोच पर यकीन करे l
त्रुटि के क्षमा 🙏🏻🙏🏻
© * नैna *