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"समय से परे एक इश्क़" भाग-४(अंतिम भाग)
कुछ ही पलों में दीपाली महल के सामने थी।वो धीरे-धीरे क़दम बढ़ातीं हुई उस कक्ष तक पहुंच गई जहां महराज उसके लिए प्रतीक्षारत थें। उसने गाना आरंभ किया दो तीन गीत सुनाकर वो जाने को हुई तो महराज ने उसे अपने कक्ष में बुलाया। दीपाली महराज के कक्ष में दाखिल हुई। महराज ने उससे उसका निर्णय एक बार फिर पूछा तो दीपाली ने महराज से सब कुछ बता दिया कि वो २१ वी सदी से १६ वी सदी में आई है उसका रहन सहन सोच विचार सब कुछ महराज से भिन्न है क्या महराज उससे तालमेल बिठाने में सक्षम है?
महराज ने उत्तर दिया हमें सब कुछ स्वीकार है केवल आप बताइए क्या आप हमारे साथ अपने सदी को छोड़कर रह सकतीं हैं? दीपाली ने हां में स्वीकृति दी क्योंकि वो महराज को अत्यधिक चाहने लगी थी इधर महराज भी दीपाली को देखें बिना न रह पा रहे थे।
दीपाली ने महराज से कहा कि अब वो यही रहेगी क्योंकि उसके समय में उनकी मोहब्बत को कोई नहीं समझ सकेगा इतना सुनते ही महराज वल्लभ ने दीपाली को अपनी बाहों में भर लिया।
अगले दिन दीपाली और महराज वल्लभ का धूमधाम से विवाह हो गया।इधर दीपाली के दो दिन न आने से घर में कोहराम मच गया सब दीपक को ही दोषी करार देने लगें अंत में हारकर दीपक भी उस समय में जाने के लिए कुर्सी पर जा बैठा मगर वो उसी सदी में किसी दूसरे नगर पहुंच गया क्योंकि दीपाली सदी और नगर का भी बटन दबाती थी जो कि दीपक ने ध्यान नहीं दिया था। काफी भटकने के बाद दीपक वापस आ गया।इधर दीपाली और वल्लभ एक दूसरे के सानिध्य को पाकर अति प्रसन्न थे। दीपाली का ये फैसला क्या उचित है या अनुचित ये तो दीपाली ही बता सकेंगी क्योंकि उन दोनों का ये इश्क़ समय और सदी से परे है।
"ये इश्क़ न उम्र देखती है न जात
न धर्म के चोचले इसको भातीं है
बस जहां दिल मिल जाए वही है
इसका ठिकाना और वही थम जाएं हर बात"

(समाप्त) लेखन समय- 3:48
दिनांक 21.4.24- रविवार


© Deepa🌿💙