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Eat Five Star And Do Nothing Vs See Rubbish And Be Nothing
Eat Five Star And Do Nothing
Vs
See Rubbish And Be Nothing

एकांश सोलह का हो चुका था। एकाग्रता, स्फूर्ति और तंदुरुस्ती के लिए मैने उसे रोज सुबह 6 से 7 योगा करने की आदत डाल दी थी और वह उसे पसंद भी आने लगी थी और बिना नागा रोज करने लगा था। मैने कह दिया था चाहे कुछ भी हो जाए, योग नहीं तोड़ना।एक सुबह अचानक मेरी मां के कमरे से कराहने की आवाज आई, दौड़ता गया तो देखा मां जमीन में गिरी कराह रही थी। पता लगा चश्मा नहीं मिला जिसकी वजह से ठोकर खा कर गिर पड़ी। उठाया और मरहम आदि लगा कर उन्हें लिटाया। तभी मेरा ध्यान एकांश की तरफ गया जो अब भी योग कर रहा था। क्रोधित होकर मैंने पूछा की तुमने चश्मा क्यों नहीं दिया ढूंढकर अम्मा को और गिर पड़ने पर भी उठाया नहीं!
पापा बस दस मिनट का योग बचा है , फिर बताता हूं।
मैं हक्का बक्का रह गया और खींच कर उसको उठाते हुए कड़ाई से पूछा, तब बोला की आपने ही तो कहा था कुछ भी हो जाए , योग नही छोड़ना। और पापा वो adverisement नहीं देखा आपने five star वाला,
Eat five star, do nothing. उसमें भी तो वो लड़का उस बुढ़िया की लाठी नहीं उठाता। मेरा गला सुख चुका था लेकिन सामंजस्य बैठाते हुए मैने प्यार से एकांश को नकारत्मक और सकारात्मक समझाया। कहानी समाप्त।

क्या five star जैसी बड़ी कंपनी जिसमे तमाम बुद्धिजीवी होंगे, उन्हें नही पता होगा कि ये ad गलत है लेकिन ये कंपनियां बिना servey के कोई काम नहीं करती और भारत में उन्होंने पाया की कैसे कैसे मूर्ख रहते हैं और बस चला दिया ad। हमें अपने बच्चों को इस भेडचाल से बचाना होगा। सही गलत की पहचान करानी होगी ताकि वह चीजों को आंक सके। आजकल स्वार्थ की बाढ़ आने का कारण ऐसे ad फिल्में और दो बोतल वोडका काम मेरा रोज़ का जैसे गाने ही हैं।

कुछ पसंद या नापसंद आया हो तो प्रतिक्रिया जरूर दें ताकि मेरा उत्साह , एकांश की बहन अंशिका का एक कथानक लिखने में बना रहे।
© क्यों हो?pankaj!