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15 अगस्त और कुछ विचार..
सब ओर कई दिन से देशभक्ति का जुनून फैला है। आज के युग में एक ही माध्यम है। जिसके ज़रिये सब अपनी हर बात का खूब जोर शोर से प्रचार कर सकते है । एक ओर इसका सकारात्मक पहलू भी है कि हम अपनी बात एक साथ अनगिनत लोगों तक पहुंचा सकते है ।
कोई ना चाहे तो भी वो उस बहाव में बह ही जाता है। इसकी उपयोगिता तब सार्थक होती है जब आपके द्वारा किया गया प्रयास पूर्ण रूप से सार्थक हो जाए।
असल में, इस विषय पर नहीं, किसी और विषय पर मन में सवाल उठा । सोचा, आपके साथ बांट लूँ । जब हमारा कोई खास दिन होता है, तो सुबह से हम उसी रंग में रहते है, अपना हर पल जीते है, यादगार बनाते है। लेकिन देश के या ऐसे ही किसी ऐतिहासिक दिन, कुछ ऑपचरिकता निभा कर अपना दायित्व संपूर्ण समझते है। जहाँ एक ओर सामाजिक तौर पर कुछ यादगार लम्हें हम अपने जीवन में जोड़ सकते है, वही ज्यादतर लोग इसे एक छुट्टी के तौर पर मनाते है। पहले से कार्यक्रम तय होते है, । पीने पिलाने, पार्टियां करने की तैयारियाँ पहले से शुरू होती है । और ये सब जब ऐसे लोगों में देखते है जो स्वयम बेहद जिम्मेदार होते है, तो और भी अजीब सा लगता है।
उस से बड़ी एक बात है जो हमेशा बहुत कसकती है l हर बात को एक भेड़ चाल की तरह बना कर उसका पालन किया जाता है, बिना उसकी उपयोगिता जाने और समझे l हर घर, हर गाड़ी, हर दुकान और जहाँ भी संभव हो राष्ट्र ध्वज लगाना है l जरूर लगाईये, पर तब, जब आप उसकी कीमत जानते हो l राष्ट्र ध्वज़ बेहद सम्मान का सूचक है l रात तक वही सड़कों पर पड़े होंगे और सुबह कचरे के ढेर में l घरों में या जहाँ भी लगा दिया, तो वो लगा ही रहेगा, भूल जायेंगे लगा कर l यदि आप के हृदय में वाकई उसके प्रति सम्मान है तो अवश्य लगाईये परंतु उसके प्रति नियमों की जानकारी भी अवश्य रखे l
.पहले एक आवाज़ उठ कर धीरे धीरे आंदोलन का रूप ले लेती थी। ऐसा क्या था, जो आज नहीं है। सिर्फ कुछ खास बात, समर्पण, अपने सुखो का त्याग, ज़िद कुछ कर गुजरने की, और यही भाव हवा के साथ फैलता था । यूँ ही तो हम आज भी उन्हें याद नहीं करते, याद करते है, वो व्यक्तित्व, वो जुनून, वो ज़िद, वो त्याग ।

क्यूँ ना आज भी कुछ ऐसा कर जाए
आने वाले वक़्त को कुछ निशाँ दे जाए
भूल कर ये सब कि किसने क्या किया
अपने कर्मों से एक कहानी लिख जाए


© * नैna *