मिट्टी और कब्र
ना जाने क्यों जिंदगी से अब प्यार नहीं रहा। सपनों के शहर पर ऐतबार नहीं रहा।
ये कहानी है उस जगह की जहां मैं हर रोज की तरह अपनी मन पसंदीदा जगह पर जा कर बैठा करता था।
क्योंकि मुझे वहां पर सुकून मिलता था। एक अपना सा एहसास खैर इन बातों को छोड़ो मैं हर रोज की तरह उस दिन भी वहां गया।
मगर हर रोज...
ये कहानी है उस जगह की जहां मैं हर रोज की तरह अपनी मन पसंदीदा जगह पर जा कर बैठा करता था।
क्योंकि मुझे वहां पर सुकून मिलता था। एक अपना सा एहसास खैर इन बातों को छोड़ो मैं हर रोज की तरह उस दिन भी वहां गया।
मगर हर रोज...