...

5 views

मिट्टी और कब्र
ना जाने क्यों जिंदगी से अब प्यार नहीं रहा। सपनों के शहर पर ऐतबार नहीं रहा।
ये कहानी है उस जगह की जहां मैं हर रोज की तरह अपनी मन पसंदीदा जगह पर जा कर बैठा करता था।

क्योंकि मुझे वहां पर सुकून मिलता था। एक अपना सा एहसास खैर इन बातों को छोड़ो मैं हर रोज की तरह उस दिन भी वहां गया।

मगर हर रोज की तरह मुझे वहां कुछ महसूस नहीं हुआ।
कुछ अजीब सा अनजाना सा एहसास था।

मैं कुछ पलों के लिए मोन सा हो गया और सोचने लगा, कि यहां कुछ तो अलग है जो मुझे कुछ तो कह रहा है।

पर ना जाने मैं ही नहीं समझ पा रहा था, फिर मैं वहां बैठ गया और हर रोज की तरह मेने थोड़ी सी मिट्टी अपने हाथो में ली और सुंगने लगा।

मुझे ना जाने एक अजीब सी सुगंध आई जैसे की उसके अंदर किसी और चीज की मिलावट हो गई हो , पता नहीं किया पर कुछ तो।

मेने ध्यान से देखा और खोदने लगा, हाथो से और कुछ देर बाद मुझे सफ़ेद और काले कपड़ों में एक लड़की की लाश दिखी,

जो शायद एक दिन पहले ही वहां पर दफ़न की गई थी।
मैं थोड़ा सा घबरा गया मगर अब उससे क्या डरना जो ज़िंदा ही नहीं है बेजान है।

एक पल के लिए मुझे ऐसा लगा की वो मुझे उठ कर कुछ कहना चाहती है, की मैं इस कब्र में सुकून से लेटी हुं तुम मुझे इस मिट्टी से ढक दो जैसे वो मुझे कहना चाहती थी की मैं उसे ना देखूं।

उसे ना जगाऊं उसे बड़े सुकून से सोते देख मुझे खुद पर बड़ा तरस आया ।


© SK BHARAT