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प्रेम के कुछ पल (पार्ट-1)
केश आये थे मुख पर तुम्हारे तो चांदनी छुपने सी लगी थी,
और दिखा था स्कंध के मध्य तिल,
पहरा देता हुस्न पर,
उस पवन को महका मैंने जिसने चूमा था तुम्हे,
झिझक भी रही थी तुम मैं एकांत में चलने लगा था,
तुम देख भी ना सकी थीं,
झलकता यौवन और टपकता अधरों से नीर दीखता था.......

फिर बिखेरे थे तुमने मोती शईया पर
और आई थी तुम शयन शईया पर मोरे
सारी फिसल गई थी स्कंधों से तुम्हारे
तुम्हारी वक्र देह से जैसे नूर टपक सा
रहा हो
की मैं उस थामने को आतुर....
जो झुकाए थे चक्षु तुमने उनमें मदिरा सी
छलकी थी,

तुम भ्रमण कर रही थी जैसे किसी खुशबू जुदा हो किसी पुष्प से,
महक रहा था मैं मौन भी था तुम्हारे
सुंदर शरीर को देख कर,
बेहक रही रही तुम भी शरमाइ हुई
मेरी ओर देखकर खीचा था तुमने
अपनी तरफ......
तुम व्याकुल थी पिपासा से युक्त
यौवन का वो मेहका बेहकता शरीर.......

To be continued in part 2💕❤‍🔥
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