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#मिस रॉन्ग नंबर - 2
#रॉन्गनंबर

~~~~ पार्ट 2 ~~~~

"अरे छोड़ो यार पहले ही बहुत थक चुका हूं अब और कोई विचार नहीं करना है।" चलो सोता हूं कह कर जैसे ही वह मुड़ा अचानक फिर फोन की घंटी बजी, रिसीवर उठाते ही फिर वही आवाज..! लेकिन काफी डरी हुई, जैसे उधर कुछ घटित हो रहा हो...! पक्का कुछ बेहद डरावना...! या कुछ बेहद अजीब ...!! समझ न आ रहा था, इतने में उसने पहली बार मेरे नाम से आवाज दी...!

उसने मुझे मेरे नाम से पुकारा था ।
जी....त, प्लीज.... हेल्प....!!! और फोन कट गया ।

अब आगे ~~~~

अंदर बाहर तक सिहर गया था जीत ।
कौन है ये लड़की ?? न उसने अपना नाम बताया..... ना ही क्या हुआ... या हो रहा है बताया...!! और तो और उसे मेरा नाम कैसे पता चला कुछ समझ नहीं आ रहा था,...
एक तो थकान के मारे सिर भारी हो रहा है....! उस पर यह... यह.. क्या हो रहा है मेरे साथ ??? क्या सचमुच ऐसा कोई फोन आया था ??? क्या वास्तव में मुझे किसी ने कॉल करके मुझे मदद मांगी ?? पर यदि मदद मांगी हो तो मैं कहां जाऊं ?? कहां मदद करूं ?? किसकी मदद करूं?? कैसे मदद करूं?? कुछ नहीं समझ में आ रहा है..! दिमाग भन्नाये जा रहा है क्या करूं ? कैसे करूं ???
अरे... यह क्या हो रहा है मेरे साथ....!!! ऐसा क्यों लग रहा है कि कोई मुझे अंदर से खींच रहा है.... मुझे किसी की मदद करनी चाहिए...! कहीं कोई है जो मेरे इंतजार में है...!! मेरी मदद की इंतजार में है ...!!
पता नहीं मुझे क्या हो चला था....???

बारिश अब तक लगभग रुक गई थी.. बस बूंदाबांदी अपने होने का एहसास मात्र करा रही थी ।
मैं अचानक उठा रेन सूट ढूंढा, पहन कर तैयार हुआ, पैरों में बरसाती सैंडिल चढ़ाई, दरवाजे में ताला मारा, सेलफोन साथ में लिया टॉर्च लिया और निकल पड़ा...! कहां ?? मुझे पता नहीं...! किसके लिए?? मुझे पता नहीं... पर मुझे जाना था....., मुझे.... उसकी मदद के लिए जाना था....!!! जिसने मुझे... हां मुझे अभी-अभी मदद मांगी थी....!!!

बस तय हुआ यदि समझ न आता हैं तो सीधे पुलिस स्टेशन जाकर मदद मांगेंगे ।

मन में बात पक्की ठान कर जैसे ही मैं आगे बढ़ा ऐसा लगा मानो कोई मुझे आवाज दे रहा हो...! कोई अपनी अंतरात्मा से मेरे अंतस को सूचना दे रहा हो...!!
जी... त.... इस तरफ...!! ये वही आवाज थी जो अब मेरे अंतर्मन को सूचित कर रही थी...! वही कोमल मुलायम मक्खन जैसी... लेकिन अब उसमें एक थकान सी, ग्लानि सी महसूस हो रही थी....! मेरे पैर न जाने क्यों उसकी सूचनाओं को फॉलो करते हुए अपने आप बढ़ते जा रहे थे... नहीं... रुको नहीं...! उधर नही....! इस ओर....! अब सीधे... !! बस सीधे चले आओ...!
कई.. कई बार मैं अपने मन को अपने काबू में करने की जद्दोजहद करता, पर फिर... वही कोमल आवाज मुझे बरबस अपने ओर खींच ही ले रही थी ।
मेरे दिमाग को सिर्फ इतना पता था की मेरे पैर मुझे उस आवाज की दिशा में ले जा रहे है। मैं चाहूं या ना चाहूं पर अब चलना उसी तरफ है जहां ये पैर मुझे ले जायेंगे ।

दिमाग भी अब स्थिर हुआ.....
जो होना है देखा जाएगा....। एक अजीब तरह की दृढ़ता भर आयी.....। बस या तो आर या पार...! फिर चाहे जीवन मरण की लड़ाई ही क्यों न करनी पड़े ।

( क्रमशः ~~~~ )

(आगे की कहानी की प्रतीक्षा करिए... अगले अंक में हम फिर जल्द ही मिलेंगे आगे क्या हुआ जानने के लिए...)
© Devideep3612