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सपनों का दाह संस्कार
मैंने एक सपना देखा था, सपना छोटा सा था, बच्चा सा था, बिल्कुल नवजात। फिर मैंने उसका ख़याल रखना शुरू किया। धीरे-धीरे सपना बढ़ता चला गया। दरअसल, सपने की खास बात यह है कि सपने देखने में कोई मेहनत, कोई पैसा नहीं लगता। बस बेतहाशा देखते जाओ। और एक सपना पूरा हो जाए, तो दूसरा देखो। नहीं पूरा हो, तो कोई और सपना देखो, लेकिन देखना बंद मत करो, क्योंकि सपने देखना ही इंसान को जीवित रखता है। आपको आपके जीवन का उद्देश्य पता चले या न चले, लेकिन सपना देखना आपको एक अलग अनुभव और उमंग से भर देता है। और कभी-कभी, सपने इंसान को जीने की उम्मीद दे जाते हैं।

इंसान से अगर सपने देखने की शक्ति छीन ली जाए, तो वह मर जाएगा। सपने देखना दो तरह का होता है—खुली आँखों से और बंद आँखों से। बंद आँखों से देखा हुआ सपना कभी-कभार, और वह भी इत्तेफाक से, पूरा होता है। लेकिन खुली आँखों से देखा सपना कई बार सफल और कई बार असफल होता है। मैंने जो सपना देखा, वह खुली आँखों वाला था। एक दिन ऐसा आया जब मेरा सपना बड़ा हो चुका था, क्योंकि छोटे-छोटे सपने मैंने पूरे कर लिए थे। अब बड़े सपने की बारी थी। सपने मेरे बड़े कब हो गए, पता ही नहीं चला। शायद छोटे-छोटे सपनों के अनवरत पूरे होने से हुआ होगा। अब बड़ा सपना इतना बड़ा हो गया था कि मैं सब कुछ दाँव पर लगा चुका था। बड़े सपने की खास बात यह होती है कि अगर इसे पूरा करना है, तो आपको बड़ी-बड़ी चीज़ों की कुर्बानी देनी पड़ेगी—जैसे नींद, सुकून, चैन, परिवार और रिश्ते-नाते।

मैंने भी सब कुछ दाँव पर लगा दिया था बड़े सपने को पूरा करने के लिए। लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था। जब मैं सफलता के सबसे ऊपरी शिखर पर पहुँचने वाला था, जब बस एक कदम की दूरी रह गई थी मेरे और मेरी मंज़िल के बीच, तभी अचानक मेरा सपना टूट गया। इतना बेरहमी से टूटा कि वह उसी वक्त मर गया। हालाँकि, सपना कभी अचानक से नहीं टूटता, ठीक वैसे ही जैसे सपना कभी अचानक से पूरा नहीं होता। दोनों में समय लगता है। मेरा सपना जब मर रहा था, उससे पहले मैंने उसे कई बार बचाने की कोशिश की थी, लेकिन बचा नहीं पाया। उसे बचाने के लिए मैंने अपनी प्रेमिका का भी त्याग कर दिया था। मैंने हर दाँव-पेंच आज़माए, लेकिन फिर भी सफलता हाथ नहीं लगी। और एक दिन मेरा सपना टूट गया और फिर मर गया। मैंने उसका दाह-संस्कार भी कर दिया।

दाह-संस्कार के वक्त मेरे साथ मेरे माँ-बाप के अलावा कोई और परिजन नहीं थे, क्योंकि उन सबको मैंने पहले ही दाँव पर लगा दिया था। बस, साथ कुछ अनजान व्यक्ति थे। ये वही लोग थे, जिन्होंने हमसे पहले अपने सपनों का दाह-संस्कार कर दिया था। उन्हें सपनों के टूटने का दर्द मालूम था, इसलिए वे हमारे साथ दाह-संस्कार की प्रक्रिया में शामिल हो गए और मां बाप इसलिए साथ थे क्योंकि मां बाप हमेशा साथ रहते है हमारे दुख में भी और सुख में भी ।दाह-संस्कार के उपरांत उस सपने की राख लेकर मैं घर आ गया।राख को मैने सपनों के गंगा में प्रवाहित कर दिया।जैसे इंसान के मरने पर कई दिनों तक उसे याद किया जाता है, वैसे ही मैंने उस सपने को याद किया। मैं इतना व्यथित हो गया था कि मैंने कई दिनों तक कोई सपना नहीं देखा। मैं सपने देखने से डरने लगा था।

फिर, कई दिनों बाद, समय ने जब मेरे जख्मों को भर दिया, तो मैंने धीरे-धीरे फिर से छोटे-छोटे सपने देखना शुरू कर दिया। क्योंकि अगर मैं सपना देखना बंद कर देता, तो शायद मैं मर जाता। उस बड़े सपने के बाद मैंने अब तक कोई बड़ा सपना नहीं देखा। शायद मैं अब सपनों के टूटने के डर से या फिर सब कुछ खोने के डर से बचता हूँ। अब पता नहीं, फिर से कब मैं कोई बड़ा सपना देख पाऊँगा।

©प्यारे जी