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समर्पण
आध्यात्मिक यात्रा में बिना ‘यम-नियम’ पर चले, बिना इनका पालन किये, कुछ भी प्राप्त कर पाना असंभव है । कोई भी प्रगति संभव नहीं है, यदि आप ‘यम-नियम’ का पालन नहीं करते हैं, सारा पुरुषार्थ व्यर्थ है, इनके अनुशासन के बिना। ठीक उसी तरह समर्पण और संकल्प का रोल है आध्यात्मिक उन्नति के लिए। आज हम समर्पण क्या है, कैसा होता है और उसकी मूल भावना क्या है, उस पर चर्चा करेंगे। इसको एक कहानी के माध्यम से समझना बहुत ही आसान होगा। बहुत साधारण कथा है, लेकिन इसमें निहित सन्देश अत्यंत असाधारण है ।

किसी गांव में एक पंडित जी रहते थे, गरीब थे, कथा आदि बांच कर अपनी जीविका चलाते थे। पंडित जी की पंडिताइन बड़े ही खराब स्वभाव की थीं या यूं कहें की हो गयीं थी पंडित जी के साथ नीरस ज़िन्दगी जीते जीते। रोज़ सुबह पंडित जी के घर एक गरीब दूधवाली जो नदी के दूसरी तरफ रहती थी दूध लेकर आती थी। अब क्योंकि उसको अपने गांव से नदी की दूसरी तरफ स्थित बस्ती तक आने के लिए, नदी पार करने के लिए नाव का इंतज़ार करना पड़ता था, तो अक्सर दूध लाने में उसे देरी हो जाती थी। इस पर पंडिताइन उसे रोज़ खूब खरी खोटी सुनाती थीं। एक दिन जब इसी तरह पंडिताइन ने उसे खूब गालियां सुनाईं और यह धमकी भी दी की अगर कल से समय पर दूध नहीं लाई तो उससे दूध लेना ही बंद कर दिया जायेगा। यह सुनकर गरीब दूधवाली उदास, चुपचाप खड़ी हो गयी, अब क्योंकि नाव के मिलने में अभी बहुत समय बाकि था अतः वह वहीँ आंगन...