...

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बिखरी जुल्फो वाली अंदाज
जब एक पल के लिए तुम सामने होती तो
तुम्हारी हथेली को थाम कर
हल्के उंगलियों से बिखेर देते तुम्हारी जुल्फो को
और देखते रहते तुम्हारी यू ही बिखरी जुल्फो वाली अंदाज को
फिर शरमा के नजरे झुका के मुस्कुराते हुए तुम्हारी इस अंदाज को
हलके होठों से चूम लेते तुम्हारी माथे की इस ताज को
जिसकी एहसास से तुम्हारी आंखे भर जाती
समेट लेते तुमको अपने इन बाहों में
मुझे याद है वो दिन जब
पहली बार जब तुमको दीदार किया था
दिल थम सा गया था जैसे कब से इंतजार किया था
अजीब से बेख्याली छाने लगी थी
क्या बोलूं क्या कहूं मन में हजारों बाते आने लगी थी
आज भी ठीक वैसे ही लगता है जैसे
फिर से सावन की गीत कोई गाएगी
दिल पर वही पुरानी अंजाम लिखी जाएगी
वही अफसाने होंगे और वही ख्याल
नजरे झुकी झुकी सी और
सुर्ख गालों पर बिखरी जुल्फो का जाल..।।


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