...

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तेरी मेरी यारियां
आज बहुत जोरो से चल रही है ये सर्द हवाएं पता नही क्यु...? मौसम कैसा मोड़ लेगा ...?
बस ये ही सोचकर विधि अपने ऑफ़िस का काम करने लग जाती है पर फिर भी उसका मन बहुत बेचैन होता है काम में मन नही लगता है क्योंकि उसे अपने साहेब की याद आती है और वो पगली मौसम का बहाना बना खुद को मना लेती है । वही ऑफिस की फाइल से एक कागज निकाल लेती है और उकेरने लगती है दर्द ए दिल
फिर ऐसे ही वो हर रोज अपने काम मे साहेब की यादों से समझौता कर लेती है और जिंदगी काटने लगती है क्योंकि साहेब के बिना सोचा ही नही उसने जीना ।
फिर युही उसकी मुलाकात एक नेकदिल इंसान से होती हैं जो इस मतलब की दुनिया से परे...