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क़िस्मत का खेल
आज फिर पतिया को खेतों पर जाने में देर हो गई। सुबह आँखें खोली तो सूरज आधा सर पर चढ़ चुका था। कल ठेकेदार के पास देर रात तक काम करने के कारण सुबह उसकी आँखें देर से खुली थी। इस तरह देर से उठना पतिया के लिये कोई नई बात नहीं थी क्योंकि उसके इतने बड़े परिवार को दो वक्त की रोटी के लिये उसे दिन रात मेहनत करनी पड़ती थी। पतिया के घर में उसकी पत्नी लाज़ो, दो बेटें राजू और श्यामा और बेटों के मोह में जन्मी उनसे बड़ी तीन बेटियाँ काजल, सोना, नेहा थी। पतिया कहने को तो किसान था पर अपनी ज़मीन के नाम पर उसके पास ज़मीन का इतना भी टुकड़ा न था कि वो अपने परिवार को भरपेट खाना तो क्या एक वक्त की रोटी भी खिला पाता। इसी वजह से दोपहर तक अपने खेतों में काम करने के बाद गाँव के ठेकेदार के पास मज़दूरी करने के लिये जाता था। अपनी इसी माली हालत के कारण पतिया पर साहूकार का भी अच्छा खासा उधार हो चला था। पतिया के साथ उसके दोनों बेटें भी उस ठेकेदार के पास काम किया करते थे पर घर की तंगी के कारण तीनों जितना भी कमातें उसमें आधे से ज्यादा तो साहूकार को ही दे आते थे। अपनी सबसे बड़ी बेटी काजल की शादी तो पतिया ने पड़ोस के गाँव में ही जोड़तोड़ कर कर दी थी। मगर अब उसकी इतनी हैसियत न थी कि लड़कों के साथ साथ बाकी दो बेटियों के भी हाथ पीले कर पाता। जैसे तैसे पतिया अपनी ज़िंदगी के गुजरबसर किये जा रहा था। एक दिन गाँव के चौराहे पर खड़े लोगों से उसने सुना की इस बार खेतों में अच्छा पानी पड़ेगा। यह सुनकर पतिया को उम्मीद की एक किरण नज़र आई कि कम से कम इस बार तो उसकी नाममात्र ज़मीन पर खाने के लायक तो अनाज पैदा हो ही जायेगा। सुनी हुई बात सच भी साबित हुई बादलों ने इस बार खूब जमकर नृत्य किया और ख़ूब पानी बरसाया। पतिया ने इस बार साहूकार से पहले ही एक मोटी रकम दुगने ब्याज पर ले ली थी और बदलें में अपना नाममात्र ज़मीन का वो टुकड़ा भी गिरबी रख दिया था। उस पैसे से वो फसल का बीज और खाद पानी का इंतज़ाम कर चुका था। पतिया की मेहनत रंग लाई इस बार उसके खेत में फसल खूब ललाहा रही थी। वक़्त गुज़रा और फसल कटाई का समय भी आ गया। आज पतिया बहुत खुश था क्योंकि उसे उसकी मेहनत का फल मिलने वाला था। आज पतिया की आँख भी नहीं खुली थी कि उसका पड़ोसी भीकू उसके दरवाजे पर तेज़ तेज़ पुकारते हुए बोला खेतों में आग लग गई आग आग लग गई। आननफानन में पतिया भागता हुआ खेतों पर पहुँचा तो वहाँ राख के अलावा कुछ न था। कल शाम तक जिस फसल में उसकी जिंदगी दिख रही थी आज वहीं फसल राख बन चुकी थी। तब किसी ने पतिया को बताया उसके और आसपास के खेतों में आग लगने का कारण बिजली के तार का टूटना था। तभी पतिया को याद आया कैसे गाँव के साहूकार ने कॉन्ट्रेक्टर को पैसे खिला कर उसके खेतों के ऊपर से जा रही बिजली की तारों को गरीब गाँव वालों के खेतों के ऊपर से गुज़रवा दिया था। पतिया की आँखों के सामने अब अँधेरा सा छा रहा था उसने आँखें खोली तो खुद को अपने घर के आंगन में पाया। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। नाममात्र ही सही पर कल तक वो भी कहने को किसान था। पर आज वो सिर से लेकर पैर तक पूरा कर्ज़ में डूबा हुआ था।
अब उसके ऊपर ज़िम्मेदारियों का बोझ कई गुना बढ़ गया था। अब घर की इन्हीं ज़िम्मेदारियों से तंग आकर कभी कभार उसके मन में इन सब परेशानियों से बचने का एक ही तरीका नज़र आता था खुदखुशी का। पर उसके जाने के बाद परिवार का क्या होगा यहीं सोचकर वो हर बार अपनी इसी मज़बूरी और बेबसी के कारण ज़िंदगी और किस्मत के दो पाटों के बीच में दोबारा पीसने को तैयार हो जाता था।


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