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बित्ता भर इश्क़…
बित्ता भर इश्क़…

उसने अपनी बेजान सी पड़ी कहानी में ना जाने क्यूँ बित्ता भर इश्क़ जोड़ दिया, बित्ता भर इश्क़ जोड़ते ही उस बेजान पड़ी कहानी में फिर से जान आने लगी।

वो तो यह भी नहीं जानता था की यह मौसम सही है या ग़लत पर अब उसके आस पास बेला, चंपा और केतकी लहराने लगी थी, फिर अचानक कहीं से बादल उमड़ घुमड़ कर आये और लग पड़े बरसने उसके चारों ओर ।

जो सूरज दिनभर का थक हार कर ढलने ही वाला था वो अब फिर से उगने को मचलने लगा, हवाओं में अचानक से गुलाबी महक भर उठी और सैंकड़ों मयूख उसके इर्द-गिर्द पंख फैलाये नाचने लगे।

उदास निरस माहौल में अचानक इतनी रूमानियत देख वो आश्चर्यचकित हो सोचने लगा “ क्या इत्ता सारा होता है यह बित्ता भर इश्क़?”

बित्ता भर इश्क़
बित्ता भर - एक बालिश्त/ बिलांत ( हथेली को फैलाकर अंगुष्ठ से लेकर छोटी उँगली तक बनाई गई माप)
© theglassmates_quote