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डॉ० भीमराव अंबेडकर जी के बारे में
सर्वप्रथम मैं प्रणाम करता हूं उस महान व्यक्तित्व का जिक पाठ हमने कभी महान व्यक्तित्व की किताब में नही पढ़ा है, आज उन्ही का जन्म दिन है एक कहानी से उनके बुद्धि का नमूना दिखाना चाहता हूं जिससे आप उनके बारे में समझ जाएंगे,जब वो पहली बार बैरिस्टर बनके भारत आए तो वो महाराष्ट्र के ही एक कोर्ट में बैठने लगे तो अछूत जाति का होने के कारण उनको कोई अपना केश नही देता था, लेकिन वो इससे हताश नहीं हुए, वो बैठते थे एक बार एक महाजन का बेटा था जो अपने बाप का इकलौता बेटा था जो उसे किसी गलत जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया था, तब वो महाजन देश के जितने भी बड़े बड़े वकील थे उनके पास जाते थे और अपने साथ बेटे के केश की फाइल और एक अटैची पैसा ले जाते थे,उस महाजन ने देश के जितने बड़े बड़े वकील थे सब के पास फाइल ले गए लेकिन फाइल देखते ही सब फाइल वापस कर देते थे,एक दिन महाजन जी उस कोर्ट में आ गए जहां उस बैरिस्टर की बेंच दूर दूसरी तरफ लगती थी तो महाजन जी केस की फाइल लेकर अंदर गए वहां सभी वकीलों ने उस फाइल को देखा और केस लेने से मना कर दिया, फिर महाजन जी थके हारे उसी बैरिस्टर के बेंच पर आ गए और रोने लगे की ये मेरे बेटे का केस है इसे लेने से सब इंकार कर रहे हैं अब आपआखरी वकील है जिसे मैं ये फाइल दिखा रहा हूं उन्होंने उनका केस ले लिया और दो दिन बाद ही केस की सुनवाई थी,जब सुनवाई शुरू हुई तो विपक्ष के वकील ने अपनी दलीलें पेश की और फिर जज साहब ने पूंछा की बैरिस्टर क्या आप अपने मुअक्किल के सफाई में कुछ कहना चाहेंगे, बैरिस्टर ने मना कर दिया, सब लोग सन्न रह गए और बैरिस्टर को उल्टा सीधा बोलने लगे,फिर जज साहब ने कहा " तमाम सबूतों और बयानों को मद्देनजर रखते हुए ये अदालत दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाती है और फांसी की तारीख दो दिन बाद मुकर्रर करती है"फिर 2 दिन बाद जब दोषी को फांसी देने के समय आया तो वो बैरिस्टर विपक्ष का वकील, और जज साहब भी फांसी स्थल पर उपस्थित थे,और जल्लाद ने दोषी के मुंह पर काला कपड़ा बांधा, और जैसे ही फांसी का...