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लम्हों की कैद से ....
सब कुछ शब्दों में बांध लेना आसान कहाँ होता है .... ठीक वैसे ही जैसे कुदरत की सुंदरता को तस्वीरों में उस तरह से कैद नहीं कर पाते जिस तरह से वो आँखों के ज़रिए दिल ओ दिमाग के किसी कोने में हमेशा के लिए छप जाती है... लेकिन कोशिश करने में क्या बुराई है.... जैसे शब्दों को उल्ट पलट लिया .... वैसे ही कुदरत को लम्हों में कैद करने की कोशिश की जा सकती है या फिर ख़ुद को उन लम्हों में कैद कर लिया जाए....जब - जब इन कैद लम्हों को दोबारा देखते हैं, लगता है फिर से उसी लम्हें को जी रहे हैं.... तस्वीरें यादों का खज़ाना हैं जो बस कुछ लम्हों में कहाँ से कहाँ पहुँचा देता है इंसान को... कितना सशक्त माध्यम है तस्वीरें.... उम्र और वक्त के यादों के दायरों को कुछ ही पलों में लांघती तस्वीरें ....कभी - कभी शब्दों से भी ज़्यादा कह जाती हैं...

#कुदरत
#तस्वीरें


© संवेदना