...

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असमंजस
बहुत बेचैन सा हो जाता है मन कभी कभी,
नींद बर्बाद करने को आतुर, जैसे तकलीफ़ में ही ख़ुशी मिलने लगी है इसे,
सही ग़लत सब समझकर भी सिर्फ ग़लत ही करना चाहता है आखिर ऐसा क्यों,
क्या मन पर नियंत्रण इतना मुश्किल है कि कोई जानबूझकर स्वयं को तबाह कर दे,
सिर्फ इसलिए कि कोई आया और चला गया,
सिर्फ इसलिए कि सारे ख्वाब झूठे निकले ,
बेपरवाह सा आखिर क्यों न जीने देता है और न ही थम जाता है यह।।।।।।।।।
ज़िंदगी सिर्फ हमारी तो नहीं होगी ऐसी, सबने प्यार किया होगा, बहूतो ने धोखा खाया होगा, बहुत संभल भी गये होंगे और फिर जब हमने पूरी ईमानदारी रखी , बेवफाई कोई और कर गया तो फिर धड़कने हमारी क्यों नहीं चलना चाहती, आखिर इसकी सजा हमें क्यों,
जीने की कोई उम्मीद और ठोकर सहने के लिए हिम्मत कोई कैसे लाएं , कहीं तो कोई राह नज़र आए। कहीं तो
© shiv