...

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सत्र
फिर वही अल्हड़पना करके बेखौफ्फ़ खिलखिलाते हुए चल दिया। चार आंसू भी टपका दिए सहानुभूती के खातिर। शर्म तो क्या ही आएगी। ढीठ जो ठहरे। बात समझ कर भी अगर अमल नहीं किया तो लोडे लग जाएंगे। अब गधे की गाँड़ के फ्रेम का शीशा ही होगा मुखातिब, कलाकारी ही ऐसी जनी है।
अरे इतना भी क्या आलस? कमीन कहीं का घुन्ना भी तो बोहोत हो रखा है। कितनी बार समझाया होगा कि, गाँड़ हिलाओ डिसिप्लिन से, तभी होगा जो भी होगा।
लेकिन यहाँ किसी और कि तो क्या, अगर खुद की भी सुनी हो कभी ठंडे दिमाग से। जब देखो चले झोला उठा के। अभी अटक गई न हड्डी गले में। ले ले मजे। अब कहाँ जाओगे बरखुरदार? लोडे तो अब लग चुके हैं। 6 साल कम होते है क्या?

दिखाई भी सब दे रहा था, समझ भी आ चुका था, बस गाँड़ नहीं हिलाई। महत्तवाकांक्षाहीन रहना चाहते हैं और मेहनत भी नहीं करनी पड़े। बस हिलना ना पड़े।

नास कर दिया है तूने, और जब पटरी कुछ पड़ाव खाती नज़र आई तो तूने कमर से लाचार कर दिया। अपना ध्यान इजी लाइफ के चक्कर मे फसाकर खुद ही अपनी मरवा ली।

दूसरा सत्र भी चोद दिया। और अब गा रहा है लंडैत सी शक्ल लिये। उमर नहीं है ये तेरी, फिर भी वही चुतियापा। अरे कुछ तो शर्म कर। कब तक खुद को मर्द तांगेवाला का खिताब देता रहेगा। व्हाट द फ़क यार...!!

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© Kunba_The Hellish Vision Show