सत्र
फिर वही अल्हड़पना करके बेखौफ्फ़ खिलखिलाते हुए चल दिया। चार आंसू भी टपका दिए सहानुभूती के खातिर। शर्म तो क्या ही आएगी। ढीठ जो ठहरे। बात समझ कर भी अगर अमल नहीं किया तो लोडे लग जाएंगे। अब गधे की गाँड़ के फ्रेम का शीशा ही होगा मुखातिब, कलाकारी ही ऐसी जनी है।
अरे इतना भी क्या आलस?...
अरे इतना भी क्या आलस?...