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तलाश
तलाश


सुनो मोहित
मैने पीछे पलट कर देखा मेरे मोहल्ले के सबसे कोने वाले दोमंजिला मकान की खिड़की से सरदारिन की आवाज आई
सरदारीन मुझसे कभी न बोलती थी
अरे मोहित बाउजी का कुछ पता चला तेरे
मैंने सर हिलाते हुए निराशा से बोला
नही चाची
बड़े दिन हो गए न दिवाली के पहले या दिवाली के बाद
जमघट वाले दिन से चाची
पुलिस के पास गया था तु
मैने सर हिलाया
ओह l मातारानी पे भरोसा रख आ जायेंगे वो

आ जायेंगे वो कितना ढांढस बंधा जाते हैं ये शब्द झूठा ढांढस खोखले लगते हैं ये सारे शब्द l थक गए हैं मेरे कान सुनते सुनते l वही सवाल हर आहट जैसे सवाल पूछती है l जो नही बोलते थे वो भी सवाल पूछते हैं और मैं थक गया हूं कहते कहते बाबू जी नही मिले l
बाबूजी का वो झुर्रियों वाला चेहरा मेरी आंखों के सामने घूमता l बाबू जी की आंखों में भी सवाल थे l क्या खाया , कहां गए थे किस्से मिलते हो रिजल्ट क्यों बिगड़ा नौकरी क्यों नहीं ढूंढते शादी क्यों नहीं करते और मैं बस खीझ कर के रह जाता l
दिवाली की पूजा हो या पकवान बाबूजी एक परंपरा समझ लेते थे l नही जानते थे कितना मुश्किल हैं समय के साथ परंपराओं को निभा पाना l l फिर घर में क्या हो रहा है क्या नही सबकी खबर रखते l मैं समझता उनको लेकिन सबको कैसे समझाता और कितना समझाता l उनके लिए बाबू जी सिर्फ सात आठ साल ही पुराने हैं l
कल सरला भाभी बोली कि बाबूजी थे तो घर घर मालूम देता था l और निम्मी चाची ने भी बाबूजी की बड़ी देर तक चर्चा की l
कहां गए होंगे बाबूजी l बनारस जाने की इच्छा थी l अक्सर कहा करते थे कि विश्वनाथ बाबा बुलाएंगे तो जाऊंगा l लेकिन ये कभी नही कहा की बिना बताए चले जायेंगे l
उस रात सोने में सभी को देर हो गई l बाबूजी सबसे आखिर में सोते थे l बहुत देर तक उनके कमरे से प्रेमभूषण महाराज की रामायण सुनाई देती रही l
सुबह जब आंख खुलने से पहले ही चंचल की आवाज सुनाई दी l बर्तन पटक पटक कर बड़बड़ाए जा रही थी
चाय बनाकर कबसे रखी है पता नहीं कहां चले गए l पिंकी मोबाइल मिला दादाजी को जरा
पिंकी दादा जी का ही मोबाइल लेकर सोफे पर लेटी हुई थी
पिंकी o पिंकी लड़की सुनती नही जरा सा भी
अरे उठो दस बज रहे हैं और तुम्हारे बाबूजी पता नही कहां चले गए
मैं अलसाता हुआ उठा और बोला सिगरेट पीने गए होंगे
चुपचाप से निकल जाते हैं
मैं फिर सो गया अरे नही सुबह से नही है चंचल मुझे हिलाते हुई बोली
मैं फिर झल्लाकर उठा
आज सो सकता था तुमने सोने नही दिया
बाबूजी को ढूंढो
आ जायेंगे

अगर तुरंत ही चला गया होता तो शायद मिल जाते लेकिन निकले कब थे क्या टहल कर वापस नहीं आए l पैसे तो थे न उनके पास l कार्ड तो रखते थे जेब में l हमेशा कहते पैसा पास जरूर होना चाहिए l लेकिन बुजुर्ग हैं किसी ने पैसे लूट लिए हो तो l कहीं गिर गए चोट लग गई हो तो
ना जाने कितने सवाल दो बज गया बाबूजी के सारे दोस्तों को फोन मिलाकर देख लिया l बाबूजी कहीं न मिले l कहां गए होंगे l
बाबूजी से कुछ झगड़ा तो नही हुआ था तुम्हारा
शर्मा जी ने पूछा
झगड़ा नही नही अंकल जी कल सबने साथ में तो त्योहार मनाया है l
तबीयत को लेकर अक्सर कहते थे तबीयत तो ठीक थी ना
हां ठीक ही होगी तभी तो टहलने निकले निम्मी चाची अंदर से बोली
जबसे आंखो का ऑपरेशन हुआ है बाबू जी एक दम स्वस्थ है सारा काम खुद कर लेते हैं
फिर कहां चले गए l सक्सेना जी ने मोबाइल निकाला और मोहन चाय वाले को फोन मिलाया

अग्रवाल साहब आए थे आज चाय पीने
कितने बजे
अच्छा अकेले थे या कोई और
किधर गए
अच्छा

सक्सेना जी के हाव भाव कुछ सकारात्मक लगे मैंने एक दम से पूछा
अंकल पता चला पापा का
हां ज्यादा कुछ नहीं बस इतना कि रोज की तरह चाय पीने वो मोहन के स्टाल गए थे
फिर कहां गए
ये वो नही बता पाया
मन फिर से डूब गया l आज तो चंचल भी दुखी थी l मैं सब जगह ढूंढ आया और वो भी सब अगल बगल पता लगा आई
ऐसा लगने लगा की हमने पापा को खो दिया
मैने अपनी बहन बिन्नी को फोन किया l बिन्नी बड़े चहक कर बोली
भैया बोलो बड़े दिनों के बाद याद आई
बिन्नी बिन्नी
क्या हुआ भैया
चंचल ने फोन मेरे हाथ से ले लिया
बिन्नी पापा कहीं चले गए
कहां चले गए
पता नही हम ढूंढ रहें हैं l
बिन्नी को ना बताते तो और दुख होता l
मैं फिर से बचपन में खो गया l पापा हमारा हाथ पकड़कर मेले में हमें ले जाते l बार बार कहते हाथ पकड़े रहना
हाथ पकड़े रहना
फिर हमने क्यों छोड़ दिया पापा को
वो अकेलेपन से परेशान थे l सरोज के जाने के बाद से ऐसा लगता था जैसे उनका किसी ने हृदय निकाल लिया हो l कई दिनों तो बिलकुल खामोश रहते थे l
सरोज मेरी मां पिछले साल हमें छोड़ कर चली गई l मां को कैंसर था आखिरी स्टेज में पता चला l पता नही क्यों पापा को यही क्यों लगता है कि वो उनकी तरफ ध्यान नहीं दे पाए l और वो सही सोचते हैं l हमने कहा नही लेकिन हमने महसूस किया कई बार l तीस साल की नौकरी में मां कहते कहते थक गई तीर्थ यात्रा करवा दो और वो कहते घर में ही तीरथ है l वो तो मां को मामा और मौसी के साथ भी न जाने देते l मां कहीं भी न गई गई तो बस गांव या रिश्तेदारों के यहां l मां की सहेली रमा के मरने पर भी मां ना गई l पिताजी ने कहा
जिसको जाना है वो चला गया l
मां सुबह उठती पिताजी के हिसाब से खाना बनाती l उनके कपड़े ढूंढ कर रखती l उनके दफ्तर की फाइल सम्हाल कर रखती सब करती और चार बाते भी सुनती l कुछ न कहती l
पिता जी सिर्फ काम करते दफ्तर में काम करते फिर रिश्तेदारों और मित्रो के काम करते l
मैं यादों में कही खो सा गया कि सक्सेना अंकल बोले
बताओ भैया क्या किया जाए कहां ढूंढा जाए । आज तो मोहर्रम की छुट्टी है दफ्तर भी बंद है बैंक भी कहां गए होंगे
और कोई रिशतेदार है यहां शहर में
नही ज्यादातर गांव में हैं बस हम लोग हैं या बड़े पापा का परिवार l
उनके यहां नही हैं पूछ लिया है l निम्मी बोली
चाचा सब जगह फोन कर चुके अब डर लग रहा है l कहीं...कहीं कोई अनहोनी

अरे नही बेटा ऐसा क्यों सोचते हो l हम ढूंढेंगे उन्हें l और हो सकता है ...हो सकता है शाम तक लौट ही आ जाए
शाम ढलने लगी l मैंने बाइक उठाई और न जाने कहां कहां ढूंढ आया और बाकी लोग फोन मिलाने में लगे रहे l
ना जाने कहां होंगे l क्या खाया पिया होगा l ईश्वर रक्षा करना उनकी l
मैं बार बार कहता था चंचल उनके हिसाब से रहा करो लेकिन तुमने मेरी एक बात न मानी l
मैने कोशिश की थी लेकिन वो कभी मेरे पिता जैसे बन ही न सके और आप आपके तो पिता थे वो आपने कौन सा वक्त दिया उन्हें l चंचल भर्रायी हुई आवाज में बोली
देखो लड़ो झगड़ों मत l निम्मी चाची चंचल को समझाती हुई अंदर ले गई l मैं सोफे पर बैठा रहा और पिताजी की डायरी खंगालकर जितने उनके करीबी थे सबसे फोन करता रहा l भूख प्यास पता नही कहां गायब हो गई थी l यूंही डायरी के पेज पलटते पलटते मेरी नजर हर दो चार पेज बाद लिखे चार पांच लाइंस के पैराग्राफ पर पड़ी । पिताजी डायरी लिखते थे ये तो मुझे पता था लेकिन पढ़ने की कभी हिम्मत नही हुई l वो निजी डायरी थी पिताजी की l लेकिन आज ना जाने क्यों मुझसे उन्हे पढ़े बगैर रहा ही न गया l वो संतुष्ट नहीं थे l ना देश चलाने वालों से , न घर चलाने वालों से न संसार चलाने वालो से
ये कैसा माहौल है l सिर्फ सन्नाटा l खुद से ही बाते करता रहता हूं l जाने कितना गलत हूं जाने कितना सही l कौन बताए जो बता सकता था वो भी चला गया बिना कुछ कहे

गांधीजी का जमाना और था l और इंदिरा का और

क्या क्या पढ़ता l मैं अपना नाम खोजता रहा कि कुछ तो मिले लेकिन कुछ नहीं मिला l बस एक अहसास कि पिताजी बहुत अकेले थे लेकिन मैं भी क्या करता l कहां से लाता वक्त
सभी को कुछ न कुछ चाहिए मुझे क्या चाहिए l
मुझे पिताजी को ढूंढना है l मैं क्या कर रहा हूं मैं क्या करूं l मैं कहां जाऊं l
भैया क्या मैं सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दूं , बिन्नी का मैसेज आया l
बिन्नी का दिमाग मोबाइल से बाहर ही नही निकलता l लोग तमाम तरह की बातें करेंगे l नहीं मैने टाइप किया
तुम परेशान न हो शाम तक पिताजी आ जाएंगे l
तभी मोबाइल में एक कॉल आए अनजान नंबर से l मैं ज्यादातर फोन काट दिया करता था लेकिन ना जाने क्यों मेरे लिए हर कॉल जरूरी थी l
हर कॉल ना जाने कितने सवाल ले कर आती l ना जाने इस बार सवाल था या जवाब या खबर मेरे माथे पसीना आने लगा हाथ कांपने लगे लेकिन मैं घर का पुरुष था l मैंने कॉल उठाई l
मोहित अग्रवाल
जी मैं मोहित बोल रहा हूं
मैं कस्टमर केयर से बोल रहा हूं आपके यहां ro लगा है
मैने झट से फोन काटा l
लेकिन सुकून इस बात का कि पिताजी की कोई खबर नहीं l
शाम हुई l मैने फिर से बाइक उठाई
अब कहां जा रहे हो l
मुझे पता है

वो एक धुंधली सी शाम थी l एक कुहासा सा नदी के ऊपर छा रहा था l लोग पार्क में हंस रहे थे l बच्चे पिता की उंगली पकड़ कर चल रहे थे l पिता कितना कुछ करता है l मैं नहीं समझा था जब तक मैं खुद पिता ना बना l आज मुझे सिर्फ पिंकी के भविष्य की चिंता रहती है l पिताजी ने भी तो मुझे बनाया l जब बोर्ड के इम्तिहान थे पिताजी मुझे साइकिल से मुझे अप्रैल की तपती धूप में १७ km दूर लेकर जाते थे l
फिर दफ्तर वापस जाते और फिर दफ्तर से मुझे लेकर वापस आते l क्या क्या याद करूं अगर पिताजी न मिले तब क्या
मैं बाइक से संकरपुर गांव के आखिरी छोर पर एक पुराने शिव मंदिर की सीढ़ी के पास मैंने बाइक खड़ी की l
शिव मंदिर के पीछे एक जीर्ण क्षीर्ण कोठरी थी। दूर तक अंधेरा पसरा था लेकिन बंद दरवाजे की ओट से प्रकाश पुंज बाहर आ रहा था l
मैं जानती हूं तुम्हारे पिता जी कहां जाते हैं लेकिन मैं कर भी कुछ नहीं सकती l महीने के है दूसरे इतवार पिता जी कभी घर पर नहीं आते l कोई नही जानता था यहां के बारे में l और शायद याद रखने की कोई वजह ही नही थी l
एक बार दोस्तों के साथ मैं इधर से गुजर रहा था मैने पिताजी का एलएमएल वेस्पा स्कूटर बाहर खड़ा देखा l मैं घबरा गया की कहीं पिताजी ने मुझे देख लिया तो और मैं दबे पांव वापस लौट आया l
पिताजी तब भी रात के बारह बजे घर आए थे l मां के साथ झगड़ा भी हुआ l
फिर आज पिताजी के यहां होने का मुझे अंदेशा इसलिए नही था क्योंकि कई सालों तक पिताजी हर इतवार हमारे ही साथ रहे l वो यहां नही आए l
कौन था यहां l
मैंने अंदर देखा l पिताजी बिस्तर पर बैठे कुछ पढ़ रहे थे l पिताजी को यूं जीवित देखकर जान में जान आई दूसरी तरफ फर्श पर एक महिला बैठी सब्जी काट रही थी l
मैने दरवाजा खटखटाया
थोड़ी देर बाद वो दरवाजा खुला l
कौन l उस महिला ने अचंभे से पूछा
मेरे पिताजी यहां आए हैं l आप उन्हें भेज दीजिए l
वो यहां नही हैं
वो यही हैं मैने उनकी आवाज सुनी
वो मेरे मेहमान है l
मुझे अंदर आने दीजिए
नही l वो तुम्हारे घर वापस नहीं जाएंगे
क्यों नही जायेंगे l हटिए सामने से l मैंने उनसे कहा इतने में पिता जी की आवाज आई
कौन है रागिनी वहां क्यों रूक गई
पिता जी पिता जी मैं हूं
यहां क्या लेने आए हो l मैं तुम्हारे साथ नही आऊंगा l मैं बोझ था ना तुम सबपर l
नहीं पापा ऐसा क्यों कह रहे हैं ।हमसे कोई गलती हुई हो तो माफ करे लेकिन घर चले l
मेरा घर अब यहीं है l तुम चले जाओ l और किसी को न बताना कि मैं कहां हूं
पापा देखिए आपका घर वो है l आपका सबकुछ वही है l यहां सिवा
सिवा क्या ...रागिनी तुम अंदर जाओ पापा बाहर निकले और मेरा हाथ पकड़ा मुझे नदी की तरफ ले गए l कुछ भी नही दिख रहा था और न कुछ समझ आ रहा था
रागिनी मेरी जीवन साथीबनते बनते रह गई l वो यहां मंदिर में सत्संग करती है l एक दिन मैंने रागिनी को एक यूट्यूब चैनल पर देखा l मैने उसके बारे में ढूंढा मुझे वो मिल गई l रागिनी ने विवाह नही किया था l क्योंकि वो मुझसे प्रेम करती थी l उसका प्रेम तपस्या है
तो मां का प्रेम क्या था l इक ऐसी औरत जिसने आपसे कभी कुछ नहीं पूछा l जिसने आपकी हमेशा बात मानी l जिसने आपके परिवार को अपनी जिंदगी दी वो कुछ नहीं थी l मैं कभी नहीं सोच सकता था कि
कि मुझे भी जीने का अधिकार है अपने तरीके से l बोलते बोलते पिता जी रूक से गए l मेरी आंखों में गुस्सा था l और क्या कहूंगा मैं घर में l सब मेरा उपहास उड़ाएंगे l
मैंने एक बार फिर पिताजी को आशा भरी निगाहों से देखा कि हो सकता है वो कहें मोहित चलो देर हो रही है
लेकिन उन्होंने कुछ नही कहा और अंदर चले गए l रागिनी बाहर आई l वो मेरी मां जैसी बिलकुल न थी l वो अलग थी सबसे l
बेटा खाना खा लो
नही आप मेरे लिए कुछ कर सकतीं हैं तो मेरे पिताजी को भेज दीजिए l वो एक बीमार व्यक्ति हैं समय समय पर उनको इंजेक्शन लगते हैं l मैं यहां उन्हें नही छोड़ सकता
और वहां कुढ़ कुढ़ कर मरने दे सकते हो l
मैं कुछ न बोला l शायद उत्तर था ही नही लेकिन क्या कहूंगा सबसे बस यही सोच रहा था l
मैं वापस चला आया l अब जाता हूं कभी कभी पिताजी की दवाई देने l मोबाइल नया दिला दिया है l पेंशन के आधे पैसे ही पिताजी लेते हैं बाकी वापस कर देते हैं l मैं नही मांगता लेकिन वो कहते हैं मेरा फर्ज है l

पिताजी खुश है l अब वो विश्वनाथ बाबा के मंदिर अकेले नहीं जाते l कई लोग साथ में जाते हैं l पिताजी अब अकेले नहीं है l

समाप्त

















© Shraddha S Sahu