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एक और प्रश्न ! ( ये life ke जरुरी है।)
दोस्ती
‌यह सुन‌ के आपके मन में क्या आता है ,जरूर आपको अपने प्रिय मित्र की याद आ गई होगी ?
हमारे देश में दोस्ती निभाने वाले की कमी नहीं है ,
ऐसे कुछ मित्रता की दास्तां आज भी याद किए जाते हैं।
जैसे कि- कृष्ण और सुदामा,
लेकिन मुझे इनकी मित्रता में कोई आकर्षण नहीं लगा! दोस्ती वो नहीं जो इन्होंने किया अगर सच्चे मित्र होते तो सुदामा को दान नहीं देते , बल्कि उनको राय देते और थोड़ी - बहुत आर्थिक मदद कर करते ।
लेकिन रंक से राजा बना बना देना
और यह तब हुआ जब सुदामा जी भगवान श्री कृष्ण के दरबार में गए।
क्यों इससे पहले हुए कहां थे वह तो स्वयं भगवान थे ना! उनको तो सब ज्ञान रहता था , पल-पल की जानकारी ;
फिर उन्होंने अपने दरबार में क्यों बुलाकर उनको दान दिए।

दूसरे आते हैं कर्ण और दुर्योधन
इनकी मित्रता मुझे अच्छी लगी , लेकिन इनकी मित्रता में भी एकतरफा स्वार्थ था।

जब कर्ण‌ को सबके सामने धिक्कार रहे थे अपमान कर रहे थे और उनके साथ भेदभाव कर रहे थे तब दुर्योधन ने उन्हें राजा बनाकर उनकी मदद की। उस दिन से दुर्योधन और कर्ण की मित्रता बहुत पक्की हो गई।

मुझे आज यह बात पता चली उस युग से ,
इस युग में भेदभाव बहुत कम होते है।
भगवान कृष्ण ने कहा था कि
- हे अर्जुन, मैं ही कर्ण हूं ,मैं ही दुर्योधन हूं , मैं ही भीष्म पितामह हूं, मैं ही द्रोणाचार्य , मैं ही सैनिक हूं,
मैं ही संसार हूं ।
मुझे भगवान से कोई , गीला - सीबका नही हैं।
लेकिन मुझे मेरे प्रश्न का उत्तर जानना हैं।
जब भगवान ने कहा :- कि वही सब कुछ है , तो उन्हें इतना रक्त पात करने की क्या आवश्यकता थी ?
भाई को भाई मिलत ने क्यों दिया? भेदभाव और जाति को किसने जन्म दिया? पृथ्वी पर जन्म लेने की क्या जरूरत थी?
वह तो ब्रह्मांड में मेरा कर लोगों की बुद्धि को ठीक कर सकते थे?
* मैं भगवान का विरोध नहीं कर रहा हूं*
बस मुझे अपने कुछ प्रश्नों के उत्तर चाहिए?



कर्ण को सिंहासन देने में कहीं ना कहीं दुर्योधन का भी स्वार्थ छिपा होगा, दुर्योधन ने यह भाप लिया होगा कर्ण से मित्र कर वह पांडवों को मुंहतोड़ जवाब दे सकते है। और कर्ण का अपमान का ,
कारण पांडव ही थे और पांडव के सबसे बड़े सबसे बड़े विरोधी थे कौरव।
हमारे देश में गंदी राजनीति आज से ही नहीं बल्कि भगवान के अवतार के समय से ही है।
एकलव्य की घटना तो याद ही होगा आप सबको,
क्या गलती थी एकलव्य की , छोटी जाति का है,
क्या गलती थी कर्ण की वह सूतपुत्र है, इस समय भगवान कहां थे?
गुरु द्रोणाचार्य जैसे महान गुरुओं ने भी भेदभाव किया और राजनीति की।
महादेव के सबसे बड़े भक्त दशानन लंकेश रावण की इस कारण देवता ही थे ।
लंकेश को भविष्य की जानकारी थी पर उसने हार नहीं मानी।
और हमारे ऋषि - मुनि ,
जो भी मेरा मेरा कहानी पढ़ रहे हैं , छात्रावास में रहे ही होंगे जो नहीं रहेंगे वह अपने किसी मित्र से पता कर लीजिएगा।
हमारे हमसे जो छात्रावास में वरिष्ठ लोग रहते थे, थोड़ा सा गलती पर हमें मार लग जाती थी या कोई काम करना पड़ जाता था, कहने का मतलब है हमारे ऋषि मुनि जो थोड़ी सी गलती पर श्राफ दे देते थे।
आसुर होने का कारण भगवान, ऋषि-मुनि ही होते थे,
रावण को अपनी शक्ति पर अहंकार था क्योंकि वाह असुरों के साथ रहकर महान विद्वान बना महाकाल के सबसे बड़े भक्त बना।
कहा जाता है भगवान विष्णु के दरबार के दरवाजे के सामने दोस्त सैनी पहरेदारी कर रहे थे वह दोनों इन्हीं ऋषि मुनि को अंदर आने नहीं दे रहे थे तो ऋषि मुनि गुस्सा होकर उन्हें श्राप दे दिया, अगले जन्म में तुम राक्षस प्रवृत्ति के हो जाओगे,
गौर करने वाली यह बात है श्राफ देने वाले ही ऋषि मुनि ही थे।
प्रश्न तो बहुत है पर मुझे अब नींद आ रही है।
और हां मैंने सुना है आधा अधूरा ज्ञान अच्छा नहीं होता लेकिन प्रश्न का उत्तर देकर आप लोग मेरे आधा अधूरा ज्ञान क्यों न पूरा करें।








- Shourya S.mishra

© shourya s. mishra