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वार्णिका - अनोखे प्रेम की दास्ताँ! ( भाग -5 )
कैसे उसकी एक जिद्द ने उसे हमेशा के लिए उसकी माँ से दूर कर दिया था। कैसे वह उस दिन से लेकर आज तक खुदको कोसती आई है,,,, आगे,,,,,

पंद्रह साल पहले,,,,,
समय दोपहर के 1:00 बजे,,, घटना वाले दिन,,,,,,

समय दोपहर के लगभग एक बज चुके थे। सूरज अपनी तपिश के साथ आसमान के बीचों बीच चमक रहा था। तो वही चलती हुई सड़क किनारे बच्चों के खिलौनों की दुकान मौजूद थी।

स्कूल से छुट्टी के समय जब वार्णिका विद्या जी के साथ उसी सड़क से गुजर रही होती है तो उसकी नज़र उन खिलौनों की दुकान पर जाती है।

जहाँ पर वार्णिका को एक बहुत सुंदर सी गुड़िया दिखाई देती है जिसको देखकर वार्णिका वही सड़क किनारे रुक जाती है और विद्या जी की तरफ देखते हुए उनसे कहती है।

माँ,, माँ,, वो देखिये न वहाँ खिलौनों की दुकान पर कितनी सुंदर गुड़िया है प्लीज माँ मुझे वह दिला दीजिए।

विद्या जी :- दुकान की तरफ देखते हुए,,, कहाँ है बेटा ? और तुम्हारे पास इतनी सारी गुड़िया...