...

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ग़ुलाब सी थी वो
रोज़ ऑफिस वाली सड़क पर इक ख़्वाब नज़र आता है, जिसे देखकर मन तो करता है की वहीं ठहर जाऊँ और इक टक उसी को देखता रहूँ, ऐसा लगता है जैसे ऊपर वाले ने मेरी कविताओं से मेरा तसव्वुर चुरा कर हक़ीक़त में...