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मन के भीतर की रंगीन दुनिया
पिछले महीने हुए teachers interview में मेरा
selection हुआ था। चुँकि आज school का पहला दिन था इसलिए मैं काफी exited थी। पर traffic ने मेरा रास्ता रोक रखा था।
बहुत कोशिश के बावजूद भी मैं school दो घण्टे late पहुँची। जैसे ही मैं principal office में गई, principal sir नें मुझे गुस्से से घुरते हुए कहा_"Deepa Tripathi??"
मैं थोडा़ शर्मिन्दगी feel करते हुए बोली_"yes sir! .. good morning sir...sorry sir actually...
मेरी बात को सुनने से पहले ही sir ने बोला_इस school के rules and regulations को जानती ही होगी?
बेहतर होगा कल आओ आज का दिन तुमने गवाँ दिया।
मैं सफाई पेश करना चाही पर मेरी बातों को एक बार फिर से काटते हुए sir नें कहा_" don't excuse me. leave here and come back tomorrow."
मैं वहाँ अब रूकने में असहज महसूस कर रही थी इसलिए वहाँ से आने में मुझे भलाई सुझी।
मुझे ऐसे छोटे- बडे problem अक्सर बहुत बडे़ tensionदे दिया करते थे। वहाँ से निकलकर मैं gardenमें गई। कुछ देर बैठी थी, तभी मुझे याद आया पिछले हफ्ते कि अधूरी sketch मेरे पर्स में पडी़ है ।
उसे निकालकर मैं पुरा करने लगी। तभी एक बच्चा आया मेरे पास और बोला_" क्या तुम इसमें रंग भी भरोगी?"
मैंने उसकी तरफ देखा। और बीना उसके सवालों का जवाब दिए अपने कामों में वापस से लग ग ई।
उसने फिर पूछा।
"क्या तुम्हे रंग नहीं पसन्द हैं।?"
मैनें कहा
"नहीं! मुझे केवल sketch बनाना अच्छा लगता।"
उसने बोला पर क्यूँ तुमको रंग नहीं पसन्द?
इस बगीचे में कितने रंगो से भरे फूल हैं।
आसमान भी रंगीन है। सूरज में भी रंग है। सब कितने प्यारे लगते हैं, तुम भी इसमें रंग भरोगी तो ये और भी खुबसूरत लगेगा। उसने मेरे हाथ से sketch लेकर उसको अनेक रंगों से भरना सुरु किया।
उसने न केवल कागज के टुकडें में रंग भरा बल्कि मेरे मन के कोने को भी रंगीन कर दिया जो बरसो से सुखे पडे़ थे मन के भीतर।
मैं अक्सर छोट बडे़ problem में इतना sad हो जाती हूँ कि भुल जाती हूँ कि मन के भीतर भी एक रंगीन दुनिया है। जिससे हम खुश रह सकते हैं। और ये खुशी हमें तब मिलेगी जब हम समझ जायेंगे कि problem उतनी बडीं नहीं होती जितना हम बना देते हैं।