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अनकहा अहसास भाग - 2-
तैयार होकर जितेन्द्र अपने बेटे संजीव एवं पत्नी गुंजन के साथ विद्यालय की पेरेंट्स मीटिंग में उपस्थित होने के लिए चल दिया।
पुत्र संजीव कक्षा 1का छात्र था।मीटिंग में विद्यालय की कक्षा इंचार्ज प्रीति शर्मा ने बताया कि आपका बेटा बहुत प्रतिभाशाली है।यह कक्षा में प्रश्न बहुत करता है।कभी कभी कक्षा के साथियों से भी बहुत प्रश्न करता है।
मैडम, क्या वे प्रश्न तर्कसंगत नहीं होते। जितेन्द्र ने नम्रतापूर्वक पूछा।
वे प्रश्न इसकी आयु से अधिक के मानसिक स्तर के होते हैं।मैडम प्रीति ने कहा।
बच्चों की उत्सुकता और जिज्ञासा को दबाना नहीं चाहिए,जितेन्द्र ने कहा।
हम इसके सब प्रश्नों का इसके मानसिक स्तर के अनुरूप उत्तर अवश्य देते हैं,मैडम प्रीति ने कहा।
यह है संजीव की मार्कशीट,आप इस पर हस्ताक्षर कर दीजिए। कहते हुए मैडम ने मार्कशीट उसके माता पिता के सामने रख दी।
बेटे संजीव को प्रत्येक विषय में ऐ+का ग्रेड मिला था।इस आयु में बच्चे के मानसिक स्तर का आकलन करना असंभव था।उसने और उसकी पत्नी गुंजन ने हस्ताक्षर कर दिए।
ठीक है,मैडम ने कहा।
अच्छा नमस्कार, दोनों ने एक साथ कहा और वे घर की ओर चल दिए।
समय अपनी गति से चलता रहा।
कल लखनऊ में संगोष्ठी में 11 बजे तक पहुंचना था।उसने शाम की ट्रेन में सीट बुक करवा ली थी। सही समय पर उसकी ट्रेन आ गई।जितेन्द्र ट्रेन में बैठ गया।ट्रेन चल पड़ी।
वह विगत की स्मृतियों में खो गया।वह और सुनयना कक्षा एक से ही उसी विद्यालय में पढ़ रहे थे। दोनों प्रारंभ से ही कक्षा के बहुत मेधावी छात्र थे।विद्यालय के नियमों के अनुसार हर तीन वर्ष बाद छात्र या छात्रा का सेक्शन बदलना अनिवार्य था। इस कारण उन दोनों के कक्षा सेक्शन का तीन बार परिवर्तन हुआ। परंतु वे दोनों फिर भी पढाई के मुद्दों पर चर्चा नियमित रूप से करते थे।
गणित के प्रश्न हों या विज्ञान के प्रैक्टिकल, दोनों साथ ही तैय्यारी करते थे।और यह बात दोनों के माता पिता को भी मालूम थी।
वह भी मन ही मन उसको चाहने लगा था।किंतु विद्यालय का कठोर अनुशासन और घर के संस्कारों के कारण वह कभी कुछ न कह सका था।उसे यह भी भय था कि अगर उसने अपना प्रस्ताव पेश किया तो सुनयना उसके लिए क्या सोचेगी।
साहब डिनर,...
ज्यों ही बैरे ने आवाज दी,उसकी विचार श्रंखला टूटी।
उसने खाना खाया और कुछ देर बाद वह सो गया।
अगले दिन ट्रेन लखनऊ पहुंच गई और वह भी नियत समय पर संगोष्ठी स्थल पर पहुंच गया। सब अपने विचार रख रहे थे।जितेन्द्र को बुलाये जाने पर वह अपने विचार व्यक्त करने के लिए माइक पर आया। उसे देखकर सुनयना आश्चर्यचकित रह गई।
यह वही जितेन्द्र था जो उनकी कक्षा का सहपाठी था और जिसके साथ वह अक्सर पाठ्य वस्तु पर चर्चा किया करती थी।
तालियों की आवाज से उसका ध्यान टूटा। वह अपने विचार प्रकट करने के बाद अपनी सीट पर जा रहा था।
उदघोषक ने अगला नाम सूनयना का कहा तो बरबस ही जितेन्द्र की निगाहें आने वाले वक्ता को
तलाशने लगीं।
वह स्टेज पर आई और आयोजकों को संबोधित करने के बाद अपने विचार प्रकट करने लगी।
उसे देखकर वह हतप्रभ रह गया।बोलने की वही शैली,वही सौम्यता, चेहरे पर आज भी वही भाव....
यह वही उसकी बारह वर्ष पूर्व वाली सुनयना घोष थी ।
संगोष्ठी समाप्त हुई। संगोष्ठी के बाद लंच की व्यवस्था थी।सब प्रतिभागी लंच के लिए हाल की तरफ बढ़े।
सब लोग लंच करने लगे। जितेन्द्र सुनयना के पास गया और बोला,सुनयना,तुम.....
बस इतना ही वह कह पाया था और आगे वह चुप हो गया।
हां, जितेन्द्र, कैसे हो,तुम?कहां पर हो आजकल?मां व बाबूजी सब ठीक हैं न.।एक साथ इतने प्रश्न कर दिए सुनयना ने।
मैं इलाहबाद विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के पद पर गत छ:वर्षों से कार्यरत हूं।इस वर्ष प्रोफेसर के पद पर प्रोन्नति हो जाएगी।मां का चार वर्ष पूर्व देहांत हो चुका है एवं पिताजी मेरी छोटी विधवा बहन के पास रहते हैं।जितेन्द्र ने जवाब दिया।
और तुम सुनयना,..बिना बताए ही इलाहबाद छोड़कर चले गए। सुनयना, आजकल क्या कर रहे है?जितेन्द्र ने पूछा।
सुनयना ने कहा,"मुुझे आपकी मेरे मेल पर भेजी प्रतिक्रिया पढकर ही लग रहा था कि तुम वही जितेन्द्र हो।तुम्हारी समाज के प्रति कटु सत्य वाली शैली और तुम्हारे निर्भीक विचार,आज भी वही हैं।
"मेरी नियुक्ति चार वर्ष पूर्व भारतीय प्रकाशन विभाग में प्रकाशन अधिकारी के रूप में कोलकत्ता में हुई। मैं आजकल अपने पति के साथ कोलकता में हूं।
रही बात इलाहबाद अचानक छोड़ने की।
हमारे दादाजी के स्वर्गवास की खबर पाकर अपना पापा बहुत ही अधिक दुखी और विक्षिप्त रहने लगे थे।दादाजी की तीन सौ चालीस एकड़ जमीन की पैतृक संपत्ति को देखने वाला कोई न था।इसलिए हमें इलाहबाद छोड़ना पड़ा।।रियली,
हमें समय ही न मिला कि आपको बता पाते।
मेरा विवाह चार वर्ष पूर्व सुमित चक्रवर्ती से हुआ है और वे वैज्ञानिक अधिकारी हैं।आज वे भी कार्यालय की मीटिंग के संदर्भ में सचिवालय आये हैं।फिलहाल हम होटल अशोक में सुबह तक रुके हुए हैं ।कल सुबह की हमारी वापसी की फ्लाइट है। यदि शाम को आ सको तो तुम्हें मैं उनसे मिलवा दूंगी ,सुनयना ने कहा।
मेरी शाम छ:बजकर तीस मिनट की वापसी की फ्लाइट है।अब तो न आ पाऊंगा।आपके हसबैंड जी से मिलने की इच्छा थी।आप कभी इलाहबाद आइयेगा. यह मेरा नम्बर है।.मैं आपको अपनी पत्नी और पुत्र से मिलवाऊंगा।
कहते हुए जितेन्द्र और सुनयना ने अपने अपने नम्बर आदान प्रदान किए।
यूं वे बातें ही कर रहे थे कि कैब आ गई थी।सुनयना ने होटल के लिए कैब आनलाइन बुक कर दी थी जो अब आ चुकी थी।
अच्छा, बाय, बाय,..सुनयना ने कहा और वह कैब में बैठ गई। जितेन्द्र एकटक देखता ही रह गया। उसके आंखों मैं बरबस आंसूं छलक आए।
कुछ अहसास थे जो अंत तक अनकहे रह गये।
--समाप्त--
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