...

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खामोश जिंदगी...😶
अजीब सा मन है आजकल.. उदास हूं! क्यूं हूं ? नहीं जानती ! और नहीं चाहती कोई समझे मुझे, बस सबसे दूर ही रहना चाहती मैं!

मुझे कोई भी बात खुश नहीं कर रही आजकल... बस रोने का मन कर रहा है!

कभी लगता है कि रात के सन्नाटे में जोर-जोर से चिल्लाऊ यूं ही,

तो कभी लगता है सूनी सड़क दौड़ लगाऊं रात के सन्नाटे में!

इन दिनों खुद को उलझा हुआ सा महसूस कर रही हूं ! समझ ही नहीं आ रहा कैसे अजीब दौर से गुज़र रही हूं ?

न किसी से बात करना अच्छा लग रहा है, और न ही किसी की बातें सुनना !

खुद को इस दुनियां के बीच कहीं खोती जा रही हूं! जिन रिश्तों को मैंने कभी खुद बुना था !

वो सब उलझ के रह गये हैं... सब कुछ सुलझ जाने की उम्मीद में जिंदगी हर रोज़ उलझती जा रही है!

थक चुकी हूं इस भागदौड़ वाली जिंदगी के सफर से,, अब सब से दूर जाना चाहती हूं!

बहुत दूर जहां मैं हूं और मेरी तन्हाई हो! इतना दूर के कोई पुकारे तो उसकी आवाज तक सुनाई ना दे,

बहुत दूर लौटकर न आ सकूं,
जहां से मैं उस दुनियां में जाना चाहती हूं !

बहुत रोई हूं अब तक, बुरा सा लग रहा है हर बात का कुछ भी ठीक नहीं जा रहा,
और कभी ठीक, होगा भी या नहीं.. ये भी नहीं जानती !....

बहुत खुश हूं मैं अपनी जिंदगी में सबको यही लगता है
लेकिन मेरी हकीकत सिर्फ मैं ही जानती हूं ! सबके साथ हंसती हूं !
दिन में, और रातों को अकेले रोती हूं !

बहुत मज़े में जी रही हूं,
लोगों को ऐसा ही लगता है ! रो दूंगी अगर कोई गले से लगा ले मगर कोई हाथ पकड़कर

पूछता भी नहीं कहां है?

आसान नहीं मेरे जैसा होना,

हर दिन, हर पल घबराहट में जीती हूं !
लडती हूं हालातों से,
रोज़ जीतती हूं, हारती हूं ! कभी-कभी तो गिरकर संभलती हूं!

सोचती हूं ! अब टूटना नहीं है !
मगर आखिर में खुद को संभाल नहीं पाती और टूट ही जाती हूं!!

~P.s