...

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निष्प्राण
अरे कब से खड़ी मैं दरवाज़ा पीट रही हूँ, आवाजें लगा रही हूँ, इन बहरो को सुनता ही नही हैं, घंटी बजा बजा कर जीना मुहाल कर दूंगी इनका, देखती हूँ कब तक कोई नहीं आता।

सुनीता, गिन्नी अरे कमबख्त कोई तो सुनो!
मुन्ना को बुला लाती हूँ, शायद उसी को दया आ जाए, 'लो, इस मुए को भी अभी दुकान बंद करनी थी, यू तो रात रात भर कपड़े प्रेस करते-करते गाने लगाए रखता, नाक में दम कर देता था, अब आज देख लो...

गली में भी कोई नहीं नज़र आ रहा, बुदबुदाती सी बिमला देवी घर के अंदर आ गई।
फोन की तरफ नज़र घुमा के देखा, कि शायद कोई फोन कर ले, पर नहीं आज तो इसको भी नहीं बजना।

घड़ी की तरफ देखा, रात के 11 बज रहे हैं, और वो ख़ुद अकेली अपनी निष्प्राण देह...