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निष्प्राण
अरे कब से खड़ी मैं दरवाज़ा पीट रही हूँ, आवाजें लगा रही हूँ, इन बहरो को सुनता ही नही हैं, घंटी बजा बजा कर जीना मुहाल कर दूंगी इनका, देखती हूँ कब तक कोई नहीं आता।

सुनीता, गिन्नी अरे कमबख्त कोई तो सुनो!
मुन्ना को बुला लाती हूँ, शायद उसी को दया आ जाए, 'लो, इस मुए को भी अभी दुकान बंद करनी थी, यू तो रात रात भर कपड़े प्रेस करते-करते गाने लगाए रखता, नाक में दम कर देता था, अब आज देख लो...

गली में भी कोई नहीं नज़र आ रहा, बुदबुदाती सी बिमला देवी घर के अंदर आ गई।
फोन की तरफ नज़र घुमा के देखा, कि शायद कोई फोन कर ले, पर नहीं आज तो इसको भी नहीं बजना।

घड़ी की तरफ देखा, रात के 11 बज रहे हैं, और वो ख़ुद अकेली अपनी निष्प्राण देह के पास बैठी है, आमतौर पर तो ऐसे समय में रिश्तेदारों का, पड़ोसियों का जमावड़ा लग गया होता, चाहे घड़ियाल के ही सही लेकिन लोग आंसू तो बहा रहे होते,

बिमला देवी की दिवंगत आत्मा को ये भी कोई कर्म फल था कि खुद को ही खुद की देह की चाकरी करनी पड रहीं, अपनी पसंदीदा आराम कुर्सी पर बैठी वो सोचने लगी, बैंक में सारी उम्र पैसा जोड़ जोड़ रखा, कि बुढ़ापे में बीमारी में काम आएगा, मंदिरों में दान दिया, अकेले जीवन काट लिया, मेहरा जी की कमाई कोई लूट के ना ले जाए, कोई बच्चा तक नहीं गोद लिया, भरोसा थोड़ी जमाने का,

भाई बहनों के बच्चों को फोन किया तो उनके फोन आए, यू तो कोई बीमार का हाल भी नहीं आया पूछने,

मुझे भी कौन सी जरूरत थी किसी की, पेंशन, घरों और दुकानों के किराये से अच्छी भली बीत रही थी जिन्दगी, कौन सा अभी मर जाऊँगी, य़ह सोच कर ही तो बंटी को गांव भेजा था, आ ही जाना था उसने इक दो दिन में, पर मैं?????

खुद से बतियाते, लोगों के घरों के दरवाज़े पीटते आते जाते लोगों को आवाजें लगाते बिमला देवी को इक पूरा दिन बीत गया, ना कोई आया, ना किसी ने सुना,

करोड़ो की जायदाद के ढेर पर विराजित, अपने अहं की रानी, आज निष्प्राण बेड से नीचे गिरी पडी है, मक्खी मच्छर से कतराने वाली, के मुह पर अभी ये जीव भिनभिना रहे, किसी को सीधे मुँह बुलाने ना वाली बिमला देवी आज लोगों को गिड़गिड़ा रही कि कोई तो आए उसकी मृतक देह को उठाए, उसे सम्मान से परलोक की तरफ भेजे,

विडंबना... इंसान सारी उम्र इसी भ्रम में जीता है कि अभी तो बहुत उम्र है, किसी का भला करना, दो बोल मीठे सांझी करना भी एहसान बन गया है,

दो दिन बाद आयी है पुलिस टीम, शायद किसी ने घर से उठती दुर्गंध के चलते पुलिस को फोन किया, बिमला देवी, जो जीते जी चमचमाती गाड़ी से आती जाती थी, आज एम्बुलेंस के स्ट्रेचर पर डाल दी गयी, और खुद बिमला देवी अपने पार्थिव शरीर के सिराहने बैठी, किसी एक अपने के आने का इंतजार कर रही...।

शहर की भीड़ से निकलती एम्बुलेंस हस्पताल तक आ गयीं, और गिने चुने रिश्तेदार आपस में Whatsapp ग्रुप पर चौथे पर जाने की प्लानिंग कर रहे हैं। समझ नहीं आ रहा निष्प्राण किसे कहा जाए?


समाप्त।

कविता खोसला