खामोशियां कभी भी बेवजह नहीं होती...❤️
खामोशियां कभी भी बेवजह नहीं होती,
बहुत कुछ कहना चाहती हूं पर न जाने क्यूं अब दिल का ख़ामोश रहना अच्छा लगता है..
सच कहूं तो मन अब पहले से ज्यादा शांत रहता है,
किसी तरह की कोई बेचैनी नहीं,
ना ही अब मन करता है तुमसे लड़ने या झगड़ने का..जाने क्यूं अब तुम्हें खोने का खयाल भी नहीं डराता दिल को...
ना ही अब तुम्हें सोचकर आंखों से आंसू बहते हैं..हां इतना जरूर है कि मेरे आंसूं मेरी आंखों में निरंतर भटकते रहते हैं...
वज़ह चाहे जो हो..कारण कुछ भी हो...,, मन का शांत हो जाना या खुद से खामोश हो जाना
सच तो यह है कि खामोशियां कभी भी बेवजह नहीं होती !
ना ही कभी बेसबब होती हैं...हर खामोशी की अपनी वज़ह है अपनी एक अलग दास्तां है..कहते हैं किसी के प्रेम में पड़ा इंसान जब हार जाता है या फिर अंदर से टूट जाता है तब बाहर से खामोश हो जाता है....
दिल का दर्द जब हद से बढने लगता है...अंदर रिसता ग़म का भाटा फटने को आतूर होता है..
और रोकने के लाख मशक्कत के बाद भी जब आंखों से आंसू लुढ़क जाते हैं,
तब उसकी ख़ामोशी ही हर मर्ज की दवा बन जाती है, दिल के हर ज़ख्म की सुकून व मरहम बन जाती है....वो अपनी खामोशियों को ही जीने का साधन बना लेता है....लेकिन कभी कभी यही खामोशी उसे तोड़ देती है..और वह न चाहकर भी टूट कर...
बहुत कुछ कहना चाहती हूं पर न जाने क्यूं अब दिल का ख़ामोश रहना अच्छा लगता है..
सच कहूं तो मन अब पहले से ज्यादा शांत रहता है,
किसी तरह की कोई बेचैनी नहीं,
ना ही अब मन करता है तुमसे लड़ने या झगड़ने का..जाने क्यूं अब तुम्हें खोने का खयाल भी नहीं डराता दिल को...
ना ही अब तुम्हें सोचकर आंखों से आंसू बहते हैं..हां इतना जरूर है कि मेरे आंसूं मेरी आंखों में निरंतर भटकते रहते हैं...
वज़ह चाहे जो हो..कारण कुछ भी हो...,, मन का शांत हो जाना या खुद से खामोश हो जाना
सच तो यह है कि खामोशियां कभी भी बेवजह नहीं होती !
ना ही कभी बेसबब होती हैं...हर खामोशी की अपनी वज़ह है अपनी एक अलग दास्तां है..कहते हैं किसी के प्रेम में पड़ा इंसान जब हार जाता है या फिर अंदर से टूट जाता है तब बाहर से खामोश हो जाता है....
दिल का दर्द जब हद से बढने लगता है...अंदर रिसता ग़म का भाटा फटने को आतूर होता है..
और रोकने के लाख मशक्कत के बाद भी जब आंखों से आंसू लुढ़क जाते हैं,
तब उसकी ख़ामोशी ही हर मर्ज की दवा बन जाती है, दिल के हर ज़ख्म की सुकून व मरहम बन जाती है....वो अपनी खामोशियों को ही जीने का साधन बना लेता है....लेकिन कभी कभी यही खामोशी उसे तोड़ देती है..और वह न चाहकर भी टूट कर...