...

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ये दोस्ती
एक ऐसा एहसास जो छूकर गुज़रा है
हर दिल को कभी ना कभी,जहाँ वक़्त
की नहीं थी कोई परवाह और क्या खूब
गुज़रते थे दिन रात।जहाँ ना करने की नहीं
थी गुंजाईश क्यूंकि काम के लिए मना करने वाला जानता था उसका परिणाम। इजाज़त
नाम का शब्द उनकी डिक्शनरी में हुआ नहीं कभी किसी ने जैकेट उठाई और किसी ने पतलून पहन ली। मज़ा तो तब आता था जब पहनने वाला उसी के सामने इतराता था, अरे वही जिसकी इजाज़त लेना ज़रुरी नहीं था। ये दोस्ती के किस्से कहानियों का मसला है साहब, ये रहता है ताउम्र तरो-ताजा य़ह कोई इश्क़ मोहब्बत के फ़साने नहीं जो आज है कल नहीं। दोस्ती की मशाल जलती है यादों में ये कभी बुझती नहीं,आज दोस्त साथ नहीं तो क्या हुआ होंगे एक दूसरे के दिलों में यहीं कहीं, सोचो ज़रा तुम्हारे पास भी कोई किस्सा तो नहीं। दोस्ती का एक हिस्सा तुम्हारी तरफ़ है तो दूसरा उस तरफ़ तो नहीं।