...

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मेरे जाने के बाद
उदास न होना तुम,
अपनी आंखों को वीरान न होने देना
न जुल्फ़ों को बरहम;
देखना, लब ख़ामोश न हो।

कुछ करना अगर, तो बस इतना-
एक ख़त लिखना मेरे नाम का
उसमें सबकुछ कह देना तुम
जो कह न पाए अबतक मुझसे।

किसी सुबह एक पौधा लगाना
उन पीले फूलों का मुझे पसंद है जो
जबतक रहेगी ख़ुशबू उसकी,
तुम पाओगी मुझे अपने पास।

किसी अकेली शाम की चुप में
गुनगुनाना उन पुराने गीतों को
जो मुझे पसंद हैं,
उन्हीं गीतों के बीच मिलूंगा तुम्हें मैं।

किसी रात जब घड़ियां थक चुकी होंगी
और तुम अकेली चांद देखो,
"तुम्हारा चांद आज है, मेरे पास"
कहना तुम मुझसे, मेरी कही बात।

जब भी याद आये मेरी-
कुछ करना अगर, तो बस इतना
दो चोटी बनाना अपने बालों को,
काजल रखना अपनी आंखों में
और नीले नेलपेंट नाखूनों पर,
या तुम्हारे पायलों की रुनझुन में।
वहीं मिलूंगा मैं तुम्हें, शायद।

© writer satyam mishra