...

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अलविदा।
वह शाम बहुत धुंधली थी
जैसे कुछ कहना था उसे
समय की पगडंडियों पर
बढ़ते हुए रात की ओर
कशमकश से हर एक कदम
जैसे बादल लगी हो
जैसे ढलता सूरज दिखेगा ही नहीं
सर्द बहुत सर्द, जैसे ठंडी शाम हो
बर्फीली ,तूफान आने वाली हो
धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी
हर कदम मानो भारीपन से आगे बढ़ता हुआ
एक छुअन का एहसास ऐसा लगता है मानो वह रोक रहा हो
मत जाओ, मत जाओ, कुछ और देर ठहर जाओ
शायद यह शाम फिर ना हो
या अगले शाम हम ना हो
इतने दिनों साथ रहे हैं और भी तो कई बात होगी
कई गिले-शिकवे भी तो होंगे, या बस मोहब्बत ही,
इतने कम वक्त में इसका तो वक्त ही नहीं मिला,
खो जाएंगी ये कहीं, वक्त के पहिए के पीछे
और हम न जाने कब फिर शायद मिले
यह जो मुकद्दर है ना ,रेत सी है
माटी में मिल के इसी की हो जाएगी
तब ढूंढते रहना तुम, शायद कोई मुझसा दिख जाए
रेत में बनाते रहना एक दिल, और उसमें मेरा और तुम्हारा नाम,
या शायद मेरी जगह किसी और का
पर मैं रहूंगा वहीं मन में तुम्हारे,
नहीं भूल पाओगी तुम, कोशिश करके देख लेना, शर्त है ,जो लिखोगी ना, वह मन में नहीं होगा।
और जो मन में होगा वह यादें होंगी, मेरी।
© geetanjali