आस (लघुकथा)
कंपकपाती ठंड में नंगे पांव चलते चलते सुकूँ से सांस भी नही ली जा रही, हे भगवन! कब तक ये गरीबी का पाप झेलना पड़ेगा, मेरे बेटे को नौकरी मिल जाए तो घर की दशा कुछ ठीक हो। यही सोचते विचारते सुरेश सुबह सुबह रेलवे...