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सत्य घटना पर आधारित - - उम्मीद की किरण या नाउम्मीदी के अंधेरे
सुंदरी, यही नाम था उसका l जैसा उसका नाम वैसी ही वो थी, बहुत सुंदर और गुणी l
अपने माता पिता की इकलौती संतान थी, बचपन में ही उसकी माँ का देहांत हो गया था और पिता ने दूसरी शादी कर ली थी l

विमाता बहुत परेशान किया करती थी, बाकी लड़कियों की तरह उसे कभी स्कूल नहीं जाने दिया, दिनभर घर और बाहर के काम करवाती रहती l

समय बीतता रहा इसी तरह सुंदरी का जीवन कष्टों से गुज़रता रहा, वो सहती रही मगर दुखों का अंत ही नहीं हो रहा था l

सुंदरी की शादी की उम्र हो चली थी और पिता को दिन भर शराब से फुर्सत नहीं मिलती थी l

एक दिन शहर से उसके लिए रिश्ता आया, रिश्ता अच्छा लगने पर पिता ने जल्दी ही सुंदरी का विवाह कर दिया l

बेटी को ब्याह देने के बाद उन्होंने कभी सुंदरी की कोई ख़बर नहीं ली, कभी उससे मिलने उसके ससुराल नहीं गए l

उधर ससुराल में सुंदरी, एक संयुक्त परिवार की बड़ी बहू थी l ससुराल में तीन देवर और दो ननदें, सास और ससुर थे l ससुर बिजली विभाग में नौकरी करते थे l विभाग की तरफ से मिले दो कमरों के सरकारी फ्लैट में, सभी एक साथ किसी तरह रह रहे थे l
ननदें और देवर पढ़ाई कर रहे थे और सुंदरी के पति नौकरी करते थे l
नयी दुनिया में कदम रखते ही उसे लगा कि शायद अब बदकिस्मती उसका पीछा छोड़ देगी, बहुत ख़ुश थी सुंदरी शादी कर के, नये नये सपने और ख़ुशी उसकी आँखों में साफ़ दिखती थी l

शादी के बाद, सभी रस्में निभाई गयी, धीरे धीरे सभी रिश्तेदार भी विदा हो गए l
शादी की पहली रात, सुंदरी रसोई में बैठी थी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसका कमरा कौन सा है, वो कहाँ सोयेगी, क्योंकि एक कमरे में उसके सास और ससुर सोने की तैयारी कर रहे थे और दूसरे कमरे में उसके देवर और ननदें टेलीविजन पर फिल्म देख रहे थे l

रात काफी हो चली थी,...