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श्लोक
धर्मार्थकाममोक्षाणां यस्यैकोपि न विद्यते।
जन्म-जन्मनि मत्येर्षु मरणं तस्य केवलम्।।

श्लोक का अर्थ:
जिस व्यक्ति के पास धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष आदि इन चार पुरुषार्थों में से कोई भी पुरुषार्थ नहीं है, वह बार-बार मनुष्य योनि में जन्म लेकर केवल मरता ही रहता है, इसके अतिरिक्त उसे कोई लाभ नहीं होता।

श्लोक का भावार्थ:
चाणक्य का भाव यह है कि व्यक्ति मनुष्य जन्म में आकर धर्म, अर्थ और काम के लिए पुरुषार्थ करता हुआ मोक्ष प्राप्त करने का प्रयत्न करे, मानव देह धारण करने करने का यही लाभ है।