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यही होता है अक्सर!
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हृदय में सैंकड़ों कहानियां दफ़न होती हैं या यूं कहें कि दफ़न कर दी जातीं हैं। कुछ कह दी जाती हैं— शब्दों और कविताओं के माध्यम से परंतु कुछ रह जातीं हैं अनकही–सिसकती, सुबकती और कराहती सी!

कुछ नरम ख्याल, कुछ रूमानी ख्वाब, कुछ फूल गुलाब, कुछ अभाव और कुछ कड़वे जवाब। कुछ दहकता रहता है निरंतर, भीतर ही भीतर, जो कभी चहकता था, बहकता था, अठखेलियां करता था।
कहानियां नहीं होतीं वो। वास्तव में वो होती है— इक टीस, इक कसक, इक मायूसी, इक अनकही शिकायत और टूटे बिखरे ख्वाब!

कहते हैं कि समय मरहम होता है हर दर्द का, मायूसी का। वाकई, सच है यह बात मगर सच यह भी है कि समय पैदा करता है— लेखक, शायर और कहानीकार!

दफ़न कहानियां उबलतीं हैं, हिलोरें लेतीं हैं और छलकती हैं— कभी हृदय से, कभी आंखों की कोर से और कभी कलम की ज़ार-ज़ार रोती स्याही से!

क्यों साथियों?! होता है न ऐसा? शायद… हां, शायद..न लेकिन मैं क्या करूं? मेरे साथ तो ऐसा ही होता है।

हां, अक्सर एक गाना याद आता है—' कहने को साथ अपने इक दुनिया चलती है पर छुपके इस दिल में इक तन्हाई पलती है..!’

—Vijay Kumar
© Truly Chambyal