...

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बस यूं ही..
कई बार मन बहुत उदास होता है, पता नहीं क्यों..?..

तब न सकारात्मक विचार काम आते हैं..ना ध्यान.. न योग ; बस.. कोई एक ऐसा इंसान जिसे हम अपने मन का सब कह सकें। पर... उस वक्त सुनने को कोई नहीं होता, हम खुद से कहते हैं और खुद से सुनते हैं..

थोड़ी देर सुस्ता लेते हैं...फिर लग जाते हैं,दिनचर्या की क्रिया में..

सुस्ताते हुए निहार रही थी अपने डेढ़ साल के बेटे को.. जो छोटी-छोटी चीजों में खुशी देख रहा था.. कभी मेरे फेस वॉश में..कभी टीवी के रिमोट में...

हम क्यूं ख़ुश नहीं रहते, छोटी छोटी चीजों में... क्यूं हम हर जिम्मेदारी को एक पहाड़ बना लेते हैं... जिसके तले सभी छोटी - छोटी खुशियाँ दब जाती है...

कभी उदासी आती है.. किसी कारणवश,... और कभी अकारण.. "अकारण" आयी उदासी, कारणवश से कहीं ज्यादा हानिकारक है.. जो एक मेहमान नहीं सदस्य बन आती है...

© अनकहे अल्फाज़...
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