मीनू मास्टर - रंजन कुमार देसाई
" हल्लो कौन पापा? "
" हा! किशोर चंद्र क्या बात हैं? "
" पापा! बात काफ़ी गंभीर हैं!! "
" क्या बात हैं? तुम्हारी आवाज क्यों बोखला रही हैं? "
" पापा! बात ही कुछ ऐसी हैं!! "
" क्या हुआ हैं? रवि कांत की आवाज में चिंता की भनक आती हैं!! "
" पापा! आप की मीनू..!! "
" क्या हुआ हैं? मेरी लाड़ो मीनू मास्टर को? "
" पापा! वह हम सब को छोड़ कर जा रही हैं! "
" कहाँ जा रही हैं? क्यों जा रही हैं? क्या तुम दोनों के बीच कोई अनबन या झगड़ा हुआ हैं? "
" ना पापा! झगड़ा और वह भी मीनू के साथ!!"
" तो फिर वह क्यों जा रही हैं? "
" पापा! आप को कैसे बताऊं? मेरी जबान को मानो ताला लग गया हैं. "
" किशोर चंद्र मैंने जिंदगी में काफ़ी धुप छाव देखी हैं. मुसीबतो एवम आफतो के बड़े से बड़े पहाड़ो को मेरी हिमत और धैर्य की दो मुही तलवार से काट दिए हैं. इस लिये मैं हर कोई झटका बर्दास्त करने में पूर्णतः समर्थ हूं.. आप जो भी सच हैं फट से बतादो. "
" पापा! आप की मीनू को भगवान का बुलावा आया हैं. "
" ओह नो! यह कैसे हो सकता हैं?! "
" पापा! यही सच्चाई हैं.. उसे हमें स्वीकारना यही विकल्प बचा हैं. डोक्टर ने जवाब दे दिया हैं. किसी भी पल उस की विकेट गिर सकती हैं!! "
" यकायक ऐसा क्या हो गया? अभी दो दिन पहले तो अपने मायके से ख़ुशी ख़ुशी बिदा किया हैं.. "
" पापा! भगवान की मर्जी के सामने कभी भी किसी की चली हैं क्या? "
" उसे क्या तकलीफ हैं? l"
"पापा उस के पेट में ट्यूमर हैं. " कहते हुए किशोर चंद्र की जबान लड़खड़ाती जाती हैं.
" ओह भगवान! वह कौन सी अस्पताल में हैं? "
" टाटा मेमोरियल में. "
" ठीक हैं. हम लोग तुरंत ही निकलते हैं.. "
" और हा पापा! सुंदर को भी साथ लाइयेगा.. मीनू की सांसे उस में ही रुकी हैं. "
" ठीक हैं भाई! "
रवि कांत रिसीवर यथास्थान रखते हैं.
उन की आँखों के सामने पूरा जगत घूमने लगता हैं. वह अपने आप को सँभालने की कोशिश करते हैं. ऊन की लाड़ो बेटी चंद पलों की मेहमान थी.. उस ख्याल से ऊन की आंखे गीली हो जाती हैं..ऊन की बेटी देखते ही देखते काल के खप्पर की बलि हो जायेगी. उस ख्याल से रवि कांत कांपने लगते हैं.
फिर भी वह अपने आप को सँभालते हैं और पड़ोसी की मदद लेकर सुंदर को टेक्षी में बिठाते हैं.. टेक्षी गतिमान होती हैं और रवि कांत के कानो में एक गीत दस्तक देता हैं.
और वह अतीत में खो जाते हैं.
' कन्हैया ओ कन्हैया तुझ को आना पड़ेगा '
गोकुल अष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठाते हुए ऊन की बीवी रोहिणी ने कहां था :
" सुनते हो? समय हो गया हैं. हमें तुरंत प्रसूति होम जाना होगा. "
रवि कांत शीघ्र रोहिणी को टेक्सी कर के अस्पताल जाते हैं. वह काफ़ी चिंतित दिख रहे थे. डोक्टर की एक बात लगातार ऊन के दिमाग़ में परिभ्रमण कर रही थी.
नोर्मल प्रसूति होने का कोई चान्स नहीं हैं.. रोहिणी को असहय दर्द हो रहा था. इस लिये वह बारबार ड्राइवर को सूचित करते थे :
" भैया टेक्सी धीरे चलाना! "
रोहिणी को तुरंत प्रसूति होममें भर्ती किया जाता हैं. उस घड़ी से रवि कांत के दिमागमे काउंट डाउन जारी हो गया था. टेंशन युक्त माहौल में भी ऊन के होठो पर वोही गीत गूंज रहा था.
' कन्हैया ओ कन्हैया तुझ को आना पडेगा. '
रवि कांत को विश्वास था. ऊन के घर में पुत्र का ही जन्म होगा. ऊन की दिली ख्वाहिश को यह गीत आकार दे रहा था. उसी समय उन्हें डोक्टर की बात याद आई थी..
' डिलीवरी नोर्मल नहीं होंगी. '
हॉस्पिटल इन चार्ज लेडी डोक्टर ने भी रोहिणी को चेक करने बाद दोहराया था.
" सिझरिंग करना पड़ेगा! "
इतनी सी बात से रवि कांत काफ़ी घबरासे गये थे..
थोड़ी देर बाद बड़े डोक्टर ने आकर बड़ा झटका दिया था.
" मि रवि कांत हालत काफ़ी नाजुक हैं. मा या बालक दो में से किसी एक को ही बचाया जा सकता हैं. "
यह सुनकर रवि कांत अपने होशों हवास खो बैठे थे.
" मि रवि कांत! औपचारिकता के तौर पर यह फॉर्म साइन कर दीजिये! "
" डोक्टर साब! ऐसी स्थिति में आप मेरी वाइफ को बचा लीजिये. "
रवि कांत ने पेपर्स साइन करते हुए गुजारिश की थी :
" आप चिंता मत कीजिये. इन हालात में हम लोग मा को ही बचाने की कोशिश करते हैं. यही हमें सिखाया जाता हैं और यही हमारा प्रोटोकॉल होता हैं. बाकी सब भगवान की मर्जी के आधीन होता हैं. "
उस वक़्त भी वही गीत रवि कांत के दिल में उछल रहा था.
दो घंटो के कड़े मानसिक टेंशन युक्त हालात में बीत जाने के बाद डोक्टर ने उन्हें समाचार दिये थे..
" मि रवि कांत! गोड़ इझ ग्रेट!! और आप खुद भी खुश किस्मत हो. आप की वाइफ ने एक सुंदर फूल जैसी बच्ची को जन्म दिया हैं. "
" साब! दोनों की तबियत कैसी हैं? "
" दोनों की तबियत ठीक हैं. चिंता की कोई बात नहीं. "
" थेंक्स डोक्टर साब! "
" इस में एहसान मानने की कोई आवश्यकता नहीं हैं. यह सब भगवान की मेहरबानी का नतीजा हैं. मैंने तो केवल अपना फ़र्ज निभाया हैं! "
" साब! मैं अपनी बेटी को और वाइफ को देख सकता हूं? "
" बेटी को मिलने के लिये थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा. बाकी वाइफ को मिल सकते हो. "
" नो प्रोब्लेम! "
वह तुरंत ही वॉर्ड में दाखिल हुए थे. पति के चेहरे पर ख़ुशी के किरण झलक रहे थे. उस वक़्त उसे पति की बात याद आ गईं थी.
" रोहिणी! तुम देखना. हमारे घर में कन्हैया का ही अवतार होगा. "
आखिरी सात दिनों में कई बार रोहिणी ने अपने पति के मुंह से यह बात सुनी थी!!
' कन्हैया ओ कन्हैया तुझ को आना पड़ेगा! '
इस गीत में पति कई आरजू का दीदार हो रहा था. रोहिणी यह बात जानती थी. उसे डर सा महसूस हो रहा था. लड़की के जन्म पर वह नाराज हो जायेगे.. उसे देखे बिना चले जायेंगे.. लेकिन रवि कांत तो दोहरे उत्साह के साथ अपनी बेटी को देखने सज्ज खडे थे.
पति की मन : स्थिति देखकर रोहिणी ने सीधा सवाल किया था "
" कहाँ हैं मेरी बिटिया? "
" नर्स उस का वजन करने ले गईं हैं! "
" मैं वहाँ जा सकता हूं? "
" हा! "
" लेकिन मैं उसे पहचानूगा कैसे? "
" उस के गले में चार नंबर का बेज हैं. "
खुश होकर वह नर्स के साथ उस वॉर्ड में गये थे .
अपनी बेटी को देखकर फूला नहीं समा रहे थे उन्हों ने तो अपनी बेटी का नाम भी तय कर लिया था. बेटी को देखकर अपनी बीवी के पास लौटते हुए रोहिणी को खुश मिजाज अंदाज में बधाई दी थी.
" अपनी मीनू तो बहुत ही खूबसूरत हैं. बिल्कुल तुम्हारे पर गईं हैं!!"
" अरे वाह! आप ने तो बिटिया का नाम भी चुन लिया!!"
" हा! रोहिणी!! "
" रवि! एक बात पुछू? "
" हा बोलो. क्या पूछना चाहती हो? "
" आप को बुरा नहीं लगेगा! "
" बिल्कुल नहीं. "
" आप को कोई रंज तो नहीं हो रहा? "
" किस बात का? " रवि कांत ने अनजान मुद्रा में सवाल किया था.
" कन्हैया की जगह कन्या का आगमन होने पर."
" छट पागल! लड़का हो या लड़की! क्या फर्क पड़ता हैं? "
रवि कांत की बात सुनकर बगल की औरत रोने लग गई थी.
वह देखकर रवि कांत के दिल में उस औरत के प्रति अनुकंपा का झरना फूट निकला था..
उस की अथ इति सुनकर रवि कांत ने उसे आश्वस्त किया था.
" दीदी! आप नाराज मत होइयेगा. सब कुछ ठीक हो जायेगा. बस आप अपनी बेटी का एक बेटे की तरह लालन पालन कीजियेगा. समय आने पर वही बेटी एक बेटे से बढ़कर साबित होगी. "
रवि कांत की बात सुनकर उस औरत की आँखों में हरख के आंसू उमट पड़े थे . उस ने रवि कांत का शुक्रिया अदा करते हुए कहां था :
" भैया! आपने एक अंधी के हाथो लाठी थमाने का पुनित काम किया हैं. भगवान जरूर उस का अच्छा बदला देंगे. "
रवि कांत ने एक बार अपनी बीवी से कहां था :
" रोहिणी! देखना हमारी मीनू भी वैसी साबित होगी. कन्हैया की जगह लेगी. "
और ऊन की वही मीनू आज मात पिता और सभी लोगो को बीच मजधार छोड़कर जा रही थी!!
यह ख्याल आते ही रवि कांत टूट से जाते हैं. रोहिणी अपने पति की पीठ सहलाकर उन्हें आश्वास्त करती हैं और रवि कांत फिर से अतीत की यादो में सरक जाते हैं.
' माय ग्रेट गर्ल of 1970 - टिकिया - तब्बूड़ी. "
रवि कांत रोजाना अपनी लाड़ो बिटिया को नये नाम से बुलाते थे.
ऊन की इस आदत पर रोहिणी अपनी नाराजगी जाहिर करती थी. उस के बचाव में रवि कांत दलीले करते थे.
" रोहिणी! तुझे पता है? टिकिया का अर्थ क्या होता हैं? टिकिया माने टेबलेट्स. मीनू मेरे लिये एक टेबलेट जैसी हैं. मैं चाहे कितना परेशान क्यों न हो जाऊं. कितना थका हुआ क्यों न होऊं. लेकिन उस की सूरत देखकर मेरी परेशानी गायब हो जाती हैं, सारी थकान मीट जाती हैं.
रवि कांत की आर्थिक स्थिति साधारण थी.. मीनू के जन्म के बाद हालात थोड़े ओर ख़राब हो गये थे. उस के लिये सभी रिश्तेदार मीनू को जिम्मेदार ठहराते थे. रवि कांत को ऐसी दकियानूसी बातों में यकीन नहीं था.
एक बार खुद रोहिणी के भाई ने मीनू को लेकर कोई अशुभ आलोचना की थी तो सत्यम ने उस का मुंह तोड़ दिया था.
" मीनू के कारण ही रवि कांत का समय बदला हैं.. "
बेटी के लालन पालन में उन्होंने कोई कमी नहीं रखी थी.. कभी दूसरे संतान की लालसा नहीं रखी थी.. लेकिन मीनू की जिद ने उन्हें आमादा किया था.
" पापा! मेरी सब सहियर को भाई हैं! मुझे भी एक भाई चाहिये. "
ओर रवि कांत ने बातों बातों में खिलौना देने के अंदाज में मीनू को कह दिया था..
" मीनू! तुम्हे भी भाई मिलेगा!!"
ओर बराबर दो महिनो के बाद रोहिणी ने अपने पति को बताया था..
" मैं गर्भवती हूं! "
यह सुनकर रवि कांत ख़ुशी से पगला गये थे.
उस के बाद रोहिणी की रोजाना प्रवृत्ति में काफ़ी बदलाव आ गया था. यह देखकर मीनू नाराज हो जाती थी. पहले तो मा उस के लिये सब कुछ करती थी.. मीनू को दूध पिलाती थी. खिलाती पिलाती थी ओर तैयार कर के स्कूल को भेजती थी लेकिन अब सब कुछ खुद मीनू को ही करना पड़ता था. अन्य कामकाज रवि कांत को करने पड़ते थे. रोहिणी को बार बार चेकिंग के लिये डोक्टर के पास ले जाना पड़ता था. यह सब बदलाव से मीनू का बाल मानस उलझ गया था. वह कुछ समझ नहीं पा रही थी. वह कुछ ऐसे सवाल करती थी जिस के रवि कांत के पास कोई जवाब नहीं थे.
" क्या जवाब दू? "
आखिर वह दिन भी आ गया.
रोहिणी ने एक लडके को जन्म दिया था.
अपने भाई को अस्पताल के बिस्तर पर देखकर मीनू का दिल हर्षित हो गया था.
रवि कांत ने मीनू को छाती से लगाकर उस की ख़ुशी को बढावा दिया था.
" मीनू मास्टर! तुम्हारी फरमायेश पूरी हो गई हैं. तुम्हारा भैया आ गया हैं. "
मीनू बचपन से ही ज्यादा चालाक और समझदार थी. उस की कुछ कुछ बातें बड़े बुजुर्गो को चकित कर देती थी. वह अपने दादा को बहुत प्यार करती थी. उन की हर जरुरत का ख्याल रखती थी...
बाप बेटे में कभी विवाद होता था.. मतभेद होता था तो रवि कांत अपने पिता को डाटते थे. तो मीनू हमेशा उन का पक्ष लेकर पिता की क्लास लेती थी.
उस की इसी समज ने उसे ' मीनू मास्टर ' की उपाधि बक्षी थी.
उन के बेटे सुंदर के साथ तकदीर में बहुत बड़ा धोखा किया था..
वह उस वक़्त सात साल का था. तब एक हादसा हुआ था : इस बात से मीनू को बहुत बड़ा झटका लगा था. डोक्टर की बात उस के दिलों दिमाग़ में घर कर गई थी.
" तुम्हारा बेटा आजीवन लाचार और असहाय बन गया हैं!!"
यह तो भगवान की मर्जी थी. जिस के लिये मीनू सदैव अपने आप को कसूरवार मानती थी. अपने आप को कोसती रहती थी.
उस दिन रक्षाबंधन का त्यौहार था. घर में ख़ुशी और हर्षोल्लास का माहौल था. मीनू अपने भाई के लिये राखी एवम ऑडियो कैसेट लाई थी.
' इस राखी में प्यार छिपाकर आई बहना. '
उस दिन घर मेहमानों से भरा हुआ था. रवि कांत का साला उस की जोरू, उस के बेटी दामाद और लडके सब उपस्थित थे. उस वक़्त ममेरे भाई की कलाई पर राखी देखकर सुंदर ने जिद पकड़ी थी.
" मीनू दीदी! मुझे भी ऐसी राखी चाहिये. "
भाई की जिद के सामने मीनू पिघल सी गई थी. उस ने अपने पर्स से पैसे निकालकर उसे कहां था :
" जा भाई महेश को लेकर तुझे चाहिये वैसी राखी ले आ . "
और सुंदर खुश होकर ममेरे भाई को लेकर बाजार चला गया था. उस के होठों पर वही गीत गूंज रहा था.
' जाने कौन बिछड़ जाये कब भाई बहना. '
और कुछ ही देर में समग्र विस्तार में खौफ और आतंक का माहौल फेल गया था.
कोई लड़का खटारे के नीचे आ जाने की खबर फेल गई थी.
सुनकर मीनू गभरा सी गई थी.
कहीं मेरा वीरा तो?
अशुभ ख्याल ने उस के दिलों दिमाग़ को घेर लिय था.
वह सब कुछ छोड़कर बाजार की ओर दौड़ भागी थी. उस का शक सही साबित हुआ था .सिनारियो देखकर वह मुरछित हो गई थी .. और बाजु में गटर के ढक्क्न पर नई खरीदी राखी पड़ी थी..
वह होंश में आई तब उस का भाई अस्पताल में था. उस के दोनों हाथ कंधे से अलग हो गये थे.. दोनों पैर भी घुटनो से काट दिये गये थे.. यह देखकर मीनू के मुख से चीख सी निकल गई थी.
" पापा! आज दिन तलक मैंने अपने भाई को कभी बाहर जाने नहीं दिया था. फिर आज मैंने कैसे उसे बाहर जाने दिया!! "
रवि कांत ने अपनी बेटी को बहुत समजाया था.
" मीनू मास्टर इस में तुम्हारा कोई कसूर नहीं हैं. होनी को भला कौन टाल सकता हैं? "
" पापा! सुंदर को राखी बंधवाने के कितने अरमान थे. वह कितना हर्षित हो जाता था. अभी मैं उसे कैसे राखी बांध पाउंगी?! "
" बेटा! जो होना था वह हो गया. अब नाहक अफ़सोस करने से क्या मिलेगा? बेटा दुःख को कभी सिर पर नहीं चढ़ने देना चाहिये. उसे तो कंधो पर ही उठाना चाहिये. मौत जैसे बड़े दुःख को भी लोगो ने कंधो पर उठाया हैं. "
एक लेखिका की बात की आड़ लेकर रवि कांत ने अपनी बेटी को समझाने का प्रयास किया था.
उस के बाद मीनू की जिंदगी में बदलाव आ गया था.. अब सुंदर ही उस की जिंदगी का एक मात्र मकसद बन गया था. वही उस का आधार था. वह एक मा की तरह उस की देखभाल करती थी.
मीनू ने फर्स्ट क्लास में बी ए पास किया था.
शादी के लिये न जाने कितने ओफर्स आये थे. लेकिन मीनू एक ही जिद पर अड़ गई थी. उस ने आजीवन शादी नहीं करने का फैसला कर लिया था.
" पापा! मैं शादी नहीं करूंगी. आजीवन कंवारी रखकर मेरे भाई की देखभाल करुँगी. "
" मीनू मास्टर! भाई के प्रति तुम्हारा लगाव देखकर दिल भर आता हैं. सुंदर तो बड़ा किस्मत वाला हैं जिसे तुम जैसी प्यारी बहन प्राप्त हुई हैं. लेकिन बेटा यह जग की रीत हैं. मा बाप को समय आने पर अपनी जान से अजीज चीज को छाती से दूर करनी पड़ती हैं.. बेटी का सही स्थान तो ससुराल ही होता हैं. "
आखिर कार मा बाप की मर्जी के आगे मीनू ने अपने घुटने टेक दिये थे . और किशोर चंद्र नामक धनिक लडके के साथ उस का ब्याह हो गया था .
बिदाई के वक़्त सुंदर को लिपटकर मीनू बहुत रोई थी. उस ने बार बार अपने मात पिता से गुजारिश की थी.
" पापा! मेरे वीरा को लेकर मेरे घर आते रहियेगा. "
" हा! मीनू मास्टर!! यह कोई कहने की बात हैं? तुम चिंतित मत होना. "
किशोर चंद्र ने भी ढाढ़स बंधाया था.
" पापा! आज भी आप की मीनू मास्टर पर के सारे अधिकार अनामत हैं. आप ज़ब चाहे तब हमारे यहाँ आ सकते हैं! "
दामाद की बात सुनकर रवि कांत ने राहत की सांसे ली थी..
शादी के बाद मीनू का जीव भाई की चिंता में व्यस्त रहता था. सोते जागते वह भाई के विचारों में ही खोई रहती थी.
शादी के पहले एक बार मीनू ने शिकायत की थी.
" पापा! मुझे पेट में दर्द होता हैं. "
सुनकर रवि कांत हड़बडा गये थे.
वह तुरंत ही मीनू को डोक्टर के पास ले गये थे. उस के बाद दो तीन बार उस ने शिकायत की थी. इस वजह से रवि कांत का भय बढ़ गया था.
उस वक़्त खुद बेटी ने बाप को आश्वस्त किया था.
" पापा! आप नाहक में मत टेंशन लो. मैं दवाई ले रही हूं. मुझे ठीक हो जायेगा!! "
लेकिन उस का दर्द बढ़ता जा रहा था. फिर भी वह अपने परिवार की खातिर चुपचाप सब कुछ सहे जाती थी.
वह कभी अपने आप से बातें करती थी :
" मीनू! इस जिंदगी की डोर भगवान के हाथो में हैं.. कहां जाता हैं. वह अच्छे लोगों को जल्दी से अपने पास बुला लेता हैं. अब कब और किसे वह उसे वह पसंद कर लेगा वह कहां नहीं जा सकता. पैसा बीमार व्यकित की आयु में एक क्षण का इजाफा नहीं कर सकता. फिर क्यों बीमारी के पीछे पैसों का व्यय करना? मेरे पापा की हालत ठीक नहीं. उन को जरा सी भी भनक आ गई तो सब कुछ मेरे पीछे खर्च कर देंगे. मेरे भाई की परिस्थिति ने मेरे पापा को पूरी तरह निचोड़ दिया हैं. सब कुछ करने के बाद भी वह मुझे बचा पायेंगे? "
शादी के बाद एक बार उसे पेट में दर्द उठा था. वह किसी को कुछ कहे बिना डोक्टर के पास चली गई थी.
डोक्टर ने कुछ टेस्ट करने का सुझाव दिया था.. उस ने सारे टेस्ट भी करवाये थे. रिपोर्ट पढ़कर डोक्टर भी चकित से रह गये थे. उन्हें खामोश देखकर मीनू ने सवाल किया था..
" डोक्टर! मुझे क्या बीमारी हैं? "
डोक्टर बता नहीं पा रहे थे.. फिर भी आखिर उन्हें बताना ही पड़ा था.
" बेटा! तुम्ह ब्रेन ट्यूमर हैं.. और कुछ दिन की महमान हैं. "
यह सुनकर मीनू को भारी झटका लगा था . फिर भी अपना दर्द अपनी भीतर दबाकर उस ने डोक्टर से गुजारिश की थी.
" डोक्टर साब! मेरी बीमारी के बारे में किसी को कुछ भी नहीं बताइयेगा. वह लोग जी नहीं पायेंगे. "
बीमारी की जानकारी मिलने के बाद मीनू में काफ़ी बदलाव आ गया था..
एक रात अपने पति की गोद में सर रखकर मीनू ने गुजारिश की थी :
" किशोर! मेरा एक काम करोगे? "
" हा. बोलो क्या चाहिये? "
" किशोर! मुझे फ़िल्म ' आनंद ' देखनी हैं. क्या कल तुम मेरे लिये उस फ़िल्म की विडियो कैसेट ले आओगे? "
" स्योर! "
और वह दूसरे दिन कैसेट लेकर घर आया था
खाना खाने के बाद सब ने साथ मिलकर फ़िल्म देखी थी :
' जिंदगी लंबी नहीं बड़ी चाहिए. '
' बहन तुझे मैं यह कह भी नहीं सकता. तुम्हे मेरी उम्र लग जाये. '
' इतनी जल्दी पर्दा गिरने नहीं दूंगा. '
' भगवान करे और रामु काका यह शर्त जीत जाये. '
इन सारे संवादों ने मीनू पर गहरा प्रभाव किया था वह पल भर अपनी बीमारी भूल गई थी.
' आनंद ' फ़िल्म में आनंद का अपना कोई नहीं था. उस ने पराये लोगो को हसाकर अपना बना लिया था. वह खुद जानता था. वह चंद दिनों का मेहमान था.. अपने खाते में बचे कूचे दिन उस ने लोगो को हसाने में बिताने का सफल प्रयास किया था. फ़िल्म के माहौल, संवाद और किरदारों ने मीनू को नई दृष्टि प्रदान की थी.
फ़िल्म पूरी होने के बाद मीनू अपने को रोने से रोक नहीं पाई थी. यह देखकर किशोर खुद उलझ गया था. उन्होंने मीनू के कंधो को सहलाकर कहां था
" मीनू! तुम बहुत ही भावुक हो! "
" किशोर मैं किसी का दुःख नहीं देख सकती!! तो सुंदर को इस हालत में कैसे देख सकती हूं. "
" मीनू! तूने अपने छोटे भाई को एक मा से बढ़कर प्यार दिया हैं. फिर तुं क्यों नाहक चिंतित होती हैं. "
" किशोर! कुछ भी हो. एक बात साफ हैं. मेरी लापरवाही की वजह से सुंदर के साथ ऐसा हादसा हुआ हैं. "
" मीनू! तुम तो काफ़ी समझदार हो. फिर क्यों ऐसी वाहियात बातें कर के अपने आप को इतनी तकलीफ देती हो? भगवान ने आज तक किसी दूसरे व्यकित को किसी के साथ गलत करने का लाइसेंस नहीं दिया हैं. सब कुछ उसी की मर्जी के आधीन होता हैं. "
और एक सुबह मीनू को चककर आ गये. यह देखकर किशोर के मात पिता के सपनों को मानो पंख से लग गये थे.
" चलो हम दोनों दादा दादी बन जायेंगे. "
कुछ देर बाद दोबारा उसे चककर आ गये थे .
किशोर उसे तुरंत ही डोक्टर के पास ले गया था.
और डोक्टर को बीमारी का राज पर्दाफाश करना पड़ा था .
" आप की बीवी कुछ दिनों की मेहमान हैं! "
मीनू वाकई में गर्भवती थी. उस के बच्चे को गिराना एक ही विकल्प बचा था!!
रवि कांत टेक्सी का बिल भुगतान कर के अस्पताल के स्टाफ की मदद से सुंदर को मीनू तक ले जाते हैं.
माता पिता और भाई को देखकर मीनू की आँखों में चमक आ जाती हैं. वह कुछ बोलना चाहती हैं लेकिन बोल नहीं पाती. वह आँखों के इशारे सुंदर को उस के पास लाने को कहती हैं.
और कागज पेन की मांग करती हैं.
वह बड़ी मुश्किल से कुछ लिखती हैं.
" पापा! किशोर को समजाओ. मेरे जाने के बाद दूसरा ब्याह कर ले. यह मेरी अंतिम इच्छा हैं. आप सुंदर का ध्यान रखियेगा.. "
लिखाई देखकर रवि कांत की आंखे छलक उठती हैं..
सुंदर बहन की छाती पर सर रखकर हैयाफ़ाट रुदन करने लगा.
किशोर ने अपने ससुर को आश्वस्त किया.
रवि कांतने अपने दामाद को गुजारिशकी.
" मेरी मीनू मास्टर तो जा रही हैं. उस की अंतिम इच्छा हैं. तुम उस के जाने के बाद दोबारा ब्याह कर लो. उस का जीव तुम्हारी हा सुनने के लिये ही रुका हैं. "
आंसू पोंछकर किशोर चंद्र मीनू के पास जाता हैं. उस का हाथ पकडकर वादा करता हैं.
यह सुनकर मीनू की आँखों में स्मित झलक उठता हैं..
और दूसरे ही पल वह मौत की नींद सो जाती हैं.
सिस्टर उस के मृत देह को सफ़ेद चद्दर से ढँक लेती हैं.
और सारा माहौल आंसू के महा सागर में डूब जाता हैं.
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" हा! किशोर चंद्र क्या बात हैं? "
" पापा! बात काफ़ी गंभीर हैं!! "
" क्या बात हैं? तुम्हारी आवाज क्यों बोखला रही हैं? "
" पापा! बात ही कुछ ऐसी हैं!! "
" क्या हुआ हैं? रवि कांत की आवाज में चिंता की भनक आती हैं!! "
" पापा! आप की मीनू..!! "
" क्या हुआ हैं? मेरी लाड़ो मीनू मास्टर को? "
" पापा! वह हम सब को छोड़ कर जा रही हैं! "
" कहाँ जा रही हैं? क्यों जा रही हैं? क्या तुम दोनों के बीच कोई अनबन या झगड़ा हुआ हैं? "
" ना पापा! झगड़ा और वह भी मीनू के साथ!!"
" तो फिर वह क्यों जा रही हैं? "
" पापा! आप को कैसे बताऊं? मेरी जबान को मानो ताला लग गया हैं. "
" किशोर चंद्र मैंने जिंदगी में काफ़ी धुप छाव देखी हैं. मुसीबतो एवम आफतो के बड़े से बड़े पहाड़ो को मेरी हिमत और धैर्य की दो मुही तलवार से काट दिए हैं. इस लिये मैं हर कोई झटका बर्दास्त करने में पूर्णतः समर्थ हूं.. आप जो भी सच हैं फट से बतादो. "
" पापा! आप की मीनू को भगवान का बुलावा आया हैं. "
" ओह नो! यह कैसे हो सकता हैं?! "
" पापा! यही सच्चाई हैं.. उसे हमें स्वीकारना यही विकल्प बचा हैं. डोक्टर ने जवाब दे दिया हैं. किसी भी पल उस की विकेट गिर सकती हैं!! "
" यकायक ऐसा क्या हो गया? अभी दो दिन पहले तो अपने मायके से ख़ुशी ख़ुशी बिदा किया हैं.. "
" पापा! भगवान की मर्जी के सामने कभी भी किसी की चली हैं क्या? "
" उसे क्या तकलीफ हैं? l"
"पापा उस के पेट में ट्यूमर हैं. " कहते हुए किशोर चंद्र की जबान लड़खड़ाती जाती हैं.
" ओह भगवान! वह कौन सी अस्पताल में हैं? "
" टाटा मेमोरियल में. "
" ठीक हैं. हम लोग तुरंत ही निकलते हैं.. "
" और हा पापा! सुंदर को भी साथ लाइयेगा.. मीनू की सांसे उस में ही रुकी हैं. "
" ठीक हैं भाई! "
रवि कांत रिसीवर यथास्थान रखते हैं.
उन की आँखों के सामने पूरा जगत घूमने लगता हैं. वह अपने आप को सँभालने की कोशिश करते हैं. ऊन की लाड़ो बेटी चंद पलों की मेहमान थी.. उस ख्याल से ऊन की आंखे गीली हो जाती हैं..ऊन की बेटी देखते ही देखते काल के खप्पर की बलि हो जायेगी. उस ख्याल से रवि कांत कांपने लगते हैं.
फिर भी वह अपने आप को सँभालते हैं और पड़ोसी की मदद लेकर सुंदर को टेक्षी में बिठाते हैं.. टेक्षी गतिमान होती हैं और रवि कांत के कानो में एक गीत दस्तक देता हैं.
और वह अतीत में खो जाते हैं.
' कन्हैया ओ कन्हैया तुझ को आना पड़ेगा '
गोकुल अष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठाते हुए ऊन की बीवी रोहिणी ने कहां था :
" सुनते हो? समय हो गया हैं. हमें तुरंत प्रसूति होम जाना होगा. "
रवि कांत शीघ्र रोहिणी को टेक्सी कर के अस्पताल जाते हैं. वह काफ़ी चिंतित दिख रहे थे. डोक्टर की एक बात लगातार ऊन के दिमाग़ में परिभ्रमण कर रही थी.
नोर्मल प्रसूति होने का कोई चान्स नहीं हैं.. रोहिणी को असहय दर्द हो रहा था. इस लिये वह बारबार ड्राइवर को सूचित करते थे :
" भैया टेक्सी धीरे चलाना! "
रोहिणी को तुरंत प्रसूति होममें भर्ती किया जाता हैं. उस घड़ी से रवि कांत के दिमागमे काउंट डाउन जारी हो गया था. टेंशन युक्त माहौल में भी ऊन के होठो पर वोही गीत गूंज रहा था.
' कन्हैया ओ कन्हैया तुझ को आना पडेगा. '
रवि कांत को विश्वास था. ऊन के घर में पुत्र का ही जन्म होगा. ऊन की दिली ख्वाहिश को यह गीत आकार दे रहा था. उसी समय उन्हें डोक्टर की बात याद आई थी..
' डिलीवरी नोर्मल नहीं होंगी. '
हॉस्पिटल इन चार्ज लेडी डोक्टर ने भी रोहिणी को चेक करने बाद दोहराया था.
" सिझरिंग करना पड़ेगा! "
इतनी सी बात से रवि कांत काफ़ी घबरासे गये थे..
थोड़ी देर बाद बड़े डोक्टर ने आकर बड़ा झटका दिया था.
" मि रवि कांत हालत काफ़ी नाजुक हैं. मा या बालक दो में से किसी एक को ही बचाया जा सकता हैं. "
यह सुनकर रवि कांत अपने होशों हवास खो बैठे थे.
" मि रवि कांत! औपचारिकता के तौर पर यह फॉर्म साइन कर दीजिये! "
" डोक्टर साब! ऐसी स्थिति में आप मेरी वाइफ को बचा लीजिये. "
रवि कांत ने पेपर्स साइन करते हुए गुजारिश की थी :
" आप चिंता मत कीजिये. इन हालात में हम लोग मा को ही बचाने की कोशिश करते हैं. यही हमें सिखाया जाता हैं और यही हमारा प्रोटोकॉल होता हैं. बाकी सब भगवान की मर्जी के आधीन होता हैं. "
उस वक़्त भी वही गीत रवि कांत के दिल में उछल रहा था.
दो घंटो के कड़े मानसिक टेंशन युक्त हालात में बीत जाने के बाद डोक्टर ने उन्हें समाचार दिये थे..
" मि रवि कांत! गोड़ इझ ग्रेट!! और आप खुद भी खुश किस्मत हो. आप की वाइफ ने एक सुंदर फूल जैसी बच्ची को जन्म दिया हैं. "
" साब! दोनों की तबियत कैसी हैं? "
" दोनों की तबियत ठीक हैं. चिंता की कोई बात नहीं. "
" थेंक्स डोक्टर साब! "
" इस में एहसान मानने की कोई आवश्यकता नहीं हैं. यह सब भगवान की मेहरबानी का नतीजा हैं. मैंने तो केवल अपना फ़र्ज निभाया हैं! "
" साब! मैं अपनी बेटी को और वाइफ को देख सकता हूं? "
" बेटी को मिलने के लिये थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा. बाकी वाइफ को मिल सकते हो. "
" नो प्रोब्लेम! "
वह तुरंत ही वॉर्ड में दाखिल हुए थे. पति के चेहरे पर ख़ुशी के किरण झलक रहे थे. उस वक़्त उसे पति की बात याद आ गईं थी.
" रोहिणी! तुम देखना. हमारे घर में कन्हैया का ही अवतार होगा. "
आखिरी सात दिनों में कई बार रोहिणी ने अपने पति के मुंह से यह बात सुनी थी!!
' कन्हैया ओ कन्हैया तुझ को आना पड़ेगा! '
इस गीत में पति कई आरजू का दीदार हो रहा था. रोहिणी यह बात जानती थी. उसे डर सा महसूस हो रहा था. लड़की के जन्म पर वह नाराज हो जायेगे.. उसे देखे बिना चले जायेंगे.. लेकिन रवि कांत तो दोहरे उत्साह के साथ अपनी बेटी को देखने सज्ज खडे थे.
पति की मन : स्थिति देखकर रोहिणी ने सीधा सवाल किया था "
" कहाँ हैं मेरी बिटिया? "
" नर्स उस का वजन करने ले गईं हैं! "
" मैं वहाँ जा सकता हूं? "
" हा! "
" लेकिन मैं उसे पहचानूगा कैसे? "
" उस के गले में चार नंबर का बेज हैं. "
खुश होकर वह नर्स के साथ उस वॉर्ड में गये थे .
अपनी बेटी को देखकर फूला नहीं समा रहे थे उन्हों ने तो अपनी बेटी का नाम भी तय कर लिया था. बेटी को देखकर अपनी बीवी के पास लौटते हुए रोहिणी को खुश मिजाज अंदाज में बधाई दी थी.
" अपनी मीनू तो बहुत ही खूबसूरत हैं. बिल्कुल तुम्हारे पर गईं हैं!!"
" अरे वाह! आप ने तो बिटिया का नाम भी चुन लिया!!"
" हा! रोहिणी!! "
" रवि! एक बात पुछू? "
" हा बोलो. क्या पूछना चाहती हो? "
" आप को बुरा नहीं लगेगा! "
" बिल्कुल नहीं. "
" आप को कोई रंज तो नहीं हो रहा? "
" किस बात का? " रवि कांत ने अनजान मुद्रा में सवाल किया था.
" कन्हैया की जगह कन्या का आगमन होने पर."
" छट पागल! लड़का हो या लड़की! क्या फर्क पड़ता हैं? "
रवि कांत की बात सुनकर बगल की औरत रोने लग गई थी.
वह देखकर रवि कांत के दिल में उस औरत के प्रति अनुकंपा का झरना फूट निकला था..
उस की अथ इति सुनकर रवि कांत ने उसे आश्वस्त किया था.
" दीदी! आप नाराज मत होइयेगा. सब कुछ ठीक हो जायेगा. बस आप अपनी बेटी का एक बेटे की तरह लालन पालन कीजियेगा. समय आने पर वही बेटी एक बेटे से बढ़कर साबित होगी. "
रवि कांत की बात सुनकर उस औरत की आँखों में हरख के आंसू उमट पड़े थे . उस ने रवि कांत का शुक्रिया अदा करते हुए कहां था :
" भैया! आपने एक अंधी के हाथो लाठी थमाने का पुनित काम किया हैं. भगवान जरूर उस का अच्छा बदला देंगे. "
रवि कांत ने एक बार अपनी बीवी से कहां था :
" रोहिणी! देखना हमारी मीनू भी वैसी साबित होगी. कन्हैया की जगह लेगी. "
और ऊन की वही मीनू आज मात पिता और सभी लोगो को बीच मजधार छोड़कर जा रही थी!!
यह ख्याल आते ही रवि कांत टूट से जाते हैं. रोहिणी अपने पति की पीठ सहलाकर उन्हें आश्वास्त करती हैं और रवि कांत फिर से अतीत की यादो में सरक जाते हैं.
' माय ग्रेट गर्ल of 1970 - टिकिया - तब्बूड़ी. "
रवि कांत रोजाना अपनी लाड़ो बिटिया को नये नाम से बुलाते थे.
ऊन की इस आदत पर रोहिणी अपनी नाराजगी जाहिर करती थी. उस के बचाव में रवि कांत दलीले करते थे.
" रोहिणी! तुझे पता है? टिकिया का अर्थ क्या होता हैं? टिकिया माने टेबलेट्स. मीनू मेरे लिये एक टेबलेट जैसी हैं. मैं चाहे कितना परेशान क्यों न हो जाऊं. कितना थका हुआ क्यों न होऊं. लेकिन उस की सूरत देखकर मेरी परेशानी गायब हो जाती हैं, सारी थकान मीट जाती हैं.
रवि कांत की आर्थिक स्थिति साधारण थी.. मीनू के जन्म के बाद हालात थोड़े ओर ख़राब हो गये थे. उस के लिये सभी रिश्तेदार मीनू को जिम्मेदार ठहराते थे. रवि कांत को ऐसी दकियानूसी बातों में यकीन नहीं था.
एक बार खुद रोहिणी के भाई ने मीनू को लेकर कोई अशुभ आलोचना की थी तो सत्यम ने उस का मुंह तोड़ दिया था.
" मीनू के कारण ही रवि कांत का समय बदला हैं.. "
बेटी के लालन पालन में उन्होंने कोई कमी नहीं रखी थी.. कभी दूसरे संतान की लालसा नहीं रखी थी.. लेकिन मीनू की जिद ने उन्हें आमादा किया था.
" पापा! मेरी सब सहियर को भाई हैं! मुझे भी एक भाई चाहिये. "
ओर रवि कांत ने बातों बातों में खिलौना देने के अंदाज में मीनू को कह दिया था..
" मीनू! तुम्हे भी भाई मिलेगा!!"
ओर बराबर दो महिनो के बाद रोहिणी ने अपने पति को बताया था..
" मैं गर्भवती हूं! "
यह सुनकर रवि कांत ख़ुशी से पगला गये थे.
उस के बाद रोहिणी की रोजाना प्रवृत्ति में काफ़ी बदलाव आ गया था. यह देखकर मीनू नाराज हो जाती थी. पहले तो मा उस के लिये सब कुछ करती थी.. मीनू को दूध पिलाती थी. खिलाती पिलाती थी ओर तैयार कर के स्कूल को भेजती थी लेकिन अब सब कुछ खुद मीनू को ही करना पड़ता था. अन्य कामकाज रवि कांत को करने पड़ते थे. रोहिणी को बार बार चेकिंग के लिये डोक्टर के पास ले जाना पड़ता था. यह सब बदलाव से मीनू का बाल मानस उलझ गया था. वह कुछ समझ नहीं पा रही थी. वह कुछ ऐसे सवाल करती थी जिस के रवि कांत के पास कोई जवाब नहीं थे.
" क्या जवाब दू? "
आखिर वह दिन भी आ गया.
रोहिणी ने एक लडके को जन्म दिया था.
अपने भाई को अस्पताल के बिस्तर पर देखकर मीनू का दिल हर्षित हो गया था.
रवि कांत ने मीनू को छाती से लगाकर उस की ख़ुशी को बढावा दिया था.
" मीनू मास्टर! तुम्हारी फरमायेश पूरी हो गई हैं. तुम्हारा भैया आ गया हैं. "
मीनू बचपन से ही ज्यादा चालाक और समझदार थी. उस की कुछ कुछ बातें बड़े बुजुर्गो को चकित कर देती थी. वह अपने दादा को बहुत प्यार करती थी. उन की हर जरुरत का ख्याल रखती थी...
बाप बेटे में कभी विवाद होता था.. मतभेद होता था तो रवि कांत अपने पिता को डाटते थे. तो मीनू हमेशा उन का पक्ष लेकर पिता की क्लास लेती थी.
उस की इसी समज ने उसे ' मीनू मास्टर ' की उपाधि बक्षी थी.
उन के बेटे सुंदर के साथ तकदीर में बहुत बड़ा धोखा किया था..
वह उस वक़्त सात साल का था. तब एक हादसा हुआ था : इस बात से मीनू को बहुत बड़ा झटका लगा था. डोक्टर की बात उस के दिलों दिमाग़ में घर कर गई थी.
" तुम्हारा बेटा आजीवन लाचार और असहाय बन गया हैं!!"
यह तो भगवान की मर्जी थी. जिस के लिये मीनू सदैव अपने आप को कसूरवार मानती थी. अपने आप को कोसती रहती थी.
उस दिन रक्षाबंधन का त्यौहार था. घर में ख़ुशी और हर्षोल्लास का माहौल था. मीनू अपने भाई के लिये राखी एवम ऑडियो कैसेट लाई थी.
' इस राखी में प्यार छिपाकर आई बहना. '
उस दिन घर मेहमानों से भरा हुआ था. रवि कांत का साला उस की जोरू, उस के बेटी दामाद और लडके सब उपस्थित थे. उस वक़्त ममेरे भाई की कलाई पर राखी देखकर सुंदर ने जिद पकड़ी थी.
" मीनू दीदी! मुझे भी ऐसी राखी चाहिये. "
भाई की जिद के सामने मीनू पिघल सी गई थी. उस ने अपने पर्स से पैसे निकालकर उसे कहां था :
" जा भाई महेश को लेकर तुझे चाहिये वैसी राखी ले आ . "
और सुंदर खुश होकर ममेरे भाई को लेकर बाजार चला गया था. उस के होठों पर वही गीत गूंज रहा था.
' जाने कौन बिछड़ जाये कब भाई बहना. '
और कुछ ही देर में समग्र विस्तार में खौफ और आतंक का माहौल फेल गया था.
कोई लड़का खटारे के नीचे आ जाने की खबर फेल गई थी.
सुनकर मीनू गभरा सी गई थी.
कहीं मेरा वीरा तो?
अशुभ ख्याल ने उस के दिलों दिमाग़ को घेर लिय था.
वह सब कुछ छोड़कर बाजार की ओर दौड़ भागी थी. उस का शक सही साबित हुआ था .सिनारियो देखकर वह मुरछित हो गई थी .. और बाजु में गटर के ढक्क्न पर नई खरीदी राखी पड़ी थी..
वह होंश में आई तब उस का भाई अस्पताल में था. उस के दोनों हाथ कंधे से अलग हो गये थे.. दोनों पैर भी घुटनो से काट दिये गये थे.. यह देखकर मीनू के मुख से चीख सी निकल गई थी.
" पापा! आज दिन तलक मैंने अपने भाई को कभी बाहर जाने नहीं दिया था. फिर आज मैंने कैसे उसे बाहर जाने दिया!! "
रवि कांत ने अपनी बेटी को बहुत समजाया था.
" मीनू मास्टर इस में तुम्हारा कोई कसूर नहीं हैं. होनी को भला कौन टाल सकता हैं? "
" पापा! सुंदर को राखी बंधवाने के कितने अरमान थे. वह कितना हर्षित हो जाता था. अभी मैं उसे कैसे राखी बांध पाउंगी?! "
" बेटा! जो होना था वह हो गया. अब नाहक अफ़सोस करने से क्या मिलेगा? बेटा दुःख को कभी सिर पर नहीं चढ़ने देना चाहिये. उसे तो कंधो पर ही उठाना चाहिये. मौत जैसे बड़े दुःख को भी लोगो ने कंधो पर उठाया हैं. "
एक लेखिका की बात की आड़ लेकर रवि कांत ने अपनी बेटी को समझाने का प्रयास किया था.
उस के बाद मीनू की जिंदगी में बदलाव आ गया था.. अब सुंदर ही उस की जिंदगी का एक मात्र मकसद बन गया था. वही उस का आधार था. वह एक मा की तरह उस की देखभाल करती थी.
मीनू ने फर्स्ट क्लास में बी ए पास किया था.
शादी के लिये न जाने कितने ओफर्स आये थे. लेकिन मीनू एक ही जिद पर अड़ गई थी. उस ने आजीवन शादी नहीं करने का फैसला कर लिया था.
" पापा! मैं शादी नहीं करूंगी. आजीवन कंवारी रखकर मेरे भाई की देखभाल करुँगी. "
" मीनू मास्टर! भाई के प्रति तुम्हारा लगाव देखकर दिल भर आता हैं. सुंदर तो बड़ा किस्मत वाला हैं जिसे तुम जैसी प्यारी बहन प्राप्त हुई हैं. लेकिन बेटा यह जग की रीत हैं. मा बाप को समय आने पर अपनी जान से अजीज चीज को छाती से दूर करनी पड़ती हैं.. बेटी का सही स्थान तो ससुराल ही होता हैं. "
आखिर कार मा बाप की मर्जी के आगे मीनू ने अपने घुटने टेक दिये थे . और किशोर चंद्र नामक धनिक लडके के साथ उस का ब्याह हो गया था .
बिदाई के वक़्त सुंदर को लिपटकर मीनू बहुत रोई थी. उस ने बार बार अपने मात पिता से गुजारिश की थी.
" पापा! मेरे वीरा को लेकर मेरे घर आते रहियेगा. "
" हा! मीनू मास्टर!! यह कोई कहने की बात हैं? तुम चिंतित मत होना. "
किशोर चंद्र ने भी ढाढ़स बंधाया था.
" पापा! आज भी आप की मीनू मास्टर पर के सारे अधिकार अनामत हैं. आप ज़ब चाहे तब हमारे यहाँ आ सकते हैं! "
दामाद की बात सुनकर रवि कांत ने राहत की सांसे ली थी..
शादी के बाद मीनू का जीव भाई की चिंता में व्यस्त रहता था. सोते जागते वह भाई के विचारों में ही खोई रहती थी.
शादी के पहले एक बार मीनू ने शिकायत की थी.
" पापा! मुझे पेट में दर्द होता हैं. "
सुनकर रवि कांत हड़बडा गये थे.
वह तुरंत ही मीनू को डोक्टर के पास ले गये थे. उस के बाद दो तीन बार उस ने शिकायत की थी. इस वजह से रवि कांत का भय बढ़ गया था.
उस वक़्त खुद बेटी ने बाप को आश्वस्त किया था.
" पापा! आप नाहक में मत टेंशन लो. मैं दवाई ले रही हूं. मुझे ठीक हो जायेगा!! "
लेकिन उस का दर्द बढ़ता जा रहा था. फिर भी वह अपने परिवार की खातिर चुपचाप सब कुछ सहे जाती थी.
वह कभी अपने आप से बातें करती थी :
" मीनू! इस जिंदगी की डोर भगवान के हाथो में हैं.. कहां जाता हैं. वह अच्छे लोगों को जल्दी से अपने पास बुला लेता हैं. अब कब और किसे वह उसे वह पसंद कर लेगा वह कहां नहीं जा सकता. पैसा बीमार व्यकित की आयु में एक क्षण का इजाफा नहीं कर सकता. फिर क्यों बीमारी के पीछे पैसों का व्यय करना? मेरे पापा की हालत ठीक नहीं. उन को जरा सी भी भनक आ गई तो सब कुछ मेरे पीछे खर्च कर देंगे. मेरे भाई की परिस्थिति ने मेरे पापा को पूरी तरह निचोड़ दिया हैं. सब कुछ करने के बाद भी वह मुझे बचा पायेंगे? "
शादी के बाद एक बार उसे पेट में दर्द उठा था. वह किसी को कुछ कहे बिना डोक्टर के पास चली गई थी.
डोक्टर ने कुछ टेस्ट करने का सुझाव दिया था.. उस ने सारे टेस्ट भी करवाये थे. रिपोर्ट पढ़कर डोक्टर भी चकित से रह गये थे. उन्हें खामोश देखकर मीनू ने सवाल किया था..
" डोक्टर! मुझे क्या बीमारी हैं? "
डोक्टर बता नहीं पा रहे थे.. फिर भी आखिर उन्हें बताना ही पड़ा था.
" बेटा! तुम्ह ब्रेन ट्यूमर हैं.. और कुछ दिन की महमान हैं. "
यह सुनकर मीनू को भारी झटका लगा था . फिर भी अपना दर्द अपनी भीतर दबाकर उस ने डोक्टर से गुजारिश की थी.
" डोक्टर साब! मेरी बीमारी के बारे में किसी को कुछ भी नहीं बताइयेगा. वह लोग जी नहीं पायेंगे. "
बीमारी की जानकारी मिलने के बाद मीनू में काफ़ी बदलाव आ गया था..
एक रात अपने पति की गोद में सर रखकर मीनू ने गुजारिश की थी :
" किशोर! मेरा एक काम करोगे? "
" हा. बोलो क्या चाहिये? "
" किशोर! मुझे फ़िल्म ' आनंद ' देखनी हैं. क्या कल तुम मेरे लिये उस फ़िल्म की विडियो कैसेट ले आओगे? "
" स्योर! "
और वह दूसरे दिन कैसेट लेकर घर आया था
खाना खाने के बाद सब ने साथ मिलकर फ़िल्म देखी थी :
' जिंदगी लंबी नहीं बड़ी चाहिए. '
' बहन तुझे मैं यह कह भी नहीं सकता. तुम्हे मेरी उम्र लग जाये. '
' इतनी जल्दी पर्दा गिरने नहीं दूंगा. '
' भगवान करे और रामु काका यह शर्त जीत जाये. '
इन सारे संवादों ने मीनू पर गहरा प्रभाव किया था वह पल भर अपनी बीमारी भूल गई थी.
' आनंद ' फ़िल्म में आनंद का अपना कोई नहीं था. उस ने पराये लोगो को हसाकर अपना बना लिया था. वह खुद जानता था. वह चंद दिनों का मेहमान था.. अपने खाते में बचे कूचे दिन उस ने लोगो को हसाने में बिताने का सफल प्रयास किया था. फ़िल्म के माहौल, संवाद और किरदारों ने मीनू को नई दृष्टि प्रदान की थी.
फ़िल्म पूरी होने के बाद मीनू अपने को रोने से रोक नहीं पाई थी. यह देखकर किशोर खुद उलझ गया था. उन्होंने मीनू के कंधो को सहलाकर कहां था
" मीनू! तुम बहुत ही भावुक हो! "
" किशोर मैं किसी का दुःख नहीं देख सकती!! तो सुंदर को इस हालत में कैसे देख सकती हूं. "
" मीनू! तूने अपने छोटे भाई को एक मा से बढ़कर प्यार दिया हैं. फिर तुं क्यों नाहक चिंतित होती हैं. "
" किशोर! कुछ भी हो. एक बात साफ हैं. मेरी लापरवाही की वजह से सुंदर के साथ ऐसा हादसा हुआ हैं. "
" मीनू! तुम तो काफ़ी समझदार हो. फिर क्यों ऐसी वाहियात बातें कर के अपने आप को इतनी तकलीफ देती हो? भगवान ने आज तक किसी दूसरे व्यकित को किसी के साथ गलत करने का लाइसेंस नहीं दिया हैं. सब कुछ उसी की मर्जी के आधीन होता हैं. "
और एक सुबह मीनू को चककर आ गये. यह देखकर किशोर के मात पिता के सपनों को मानो पंख से लग गये थे.
" चलो हम दोनों दादा दादी बन जायेंगे. "
कुछ देर बाद दोबारा उसे चककर आ गये थे .
किशोर उसे तुरंत ही डोक्टर के पास ले गया था.
और डोक्टर को बीमारी का राज पर्दाफाश करना पड़ा था .
" आप की बीवी कुछ दिनों की मेहमान हैं! "
मीनू वाकई में गर्भवती थी. उस के बच्चे को गिराना एक ही विकल्प बचा था!!
रवि कांत टेक्सी का बिल भुगतान कर के अस्पताल के स्टाफ की मदद से सुंदर को मीनू तक ले जाते हैं.
माता पिता और भाई को देखकर मीनू की आँखों में चमक आ जाती हैं. वह कुछ बोलना चाहती हैं लेकिन बोल नहीं पाती. वह आँखों के इशारे सुंदर को उस के पास लाने को कहती हैं.
और कागज पेन की मांग करती हैं.
वह बड़ी मुश्किल से कुछ लिखती हैं.
" पापा! किशोर को समजाओ. मेरे जाने के बाद दूसरा ब्याह कर ले. यह मेरी अंतिम इच्छा हैं. आप सुंदर का ध्यान रखियेगा.. "
लिखाई देखकर रवि कांत की आंखे छलक उठती हैं..
सुंदर बहन की छाती पर सर रखकर हैयाफ़ाट रुदन करने लगा.
किशोर ने अपने ससुर को आश्वस्त किया.
रवि कांतने अपने दामाद को गुजारिशकी.
" मेरी मीनू मास्टर तो जा रही हैं. उस की अंतिम इच्छा हैं. तुम उस के जाने के बाद दोबारा ब्याह कर लो. उस का जीव तुम्हारी हा सुनने के लिये ही रुका हैं. "
आंसू पोंछकर किशोर चंद्र मीनू के पास जाता हैं. उस का हाथ पकडकर वादा करता हैं.
यह सुनकर मीनू की आँखों में स्मित झलक उठता हैं..
और दूसरे ही पल वह मौत की नींद सो जाती हैं.
सिस्टर उस के मृत देह को सफ़ेद चद्दर से ढँक लेती हैं.
और सारा माहौल आंसू के महा सागर में डूब जाता हैं.
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