मीनू मास्टर - रंजन कुमार देसाई
" हल्लो कौन पापा? "
" हा! किशोर चंद्र क्या बात हैं? "
" पापा! बात काफ़ी गंभीर हैं!! "
" क्या बात हैं? तुम्हारी आवाज क्यों बोखला रही हैं? "
" पापा! बात ही कुछ ऐसी हैं!! "
" क्या हुआ हैं? रवि कांत की आवाज में चिंता की भनक आती हैं!! "
" पापा! आप की मीनू..!! "
" क्या हुआ हैं? मेरी लाड़ो मीनू मास्टर को? "
" पापा! वह हम सब को छोड़ कर जा रही हैं! "
" कहाँ जा रही हैं? क्यों जा रही हैं? क्या तुम दोनों के बीच कोई अनबन या झगड़ा हुआ हैं? "
" ना पापा! झगड़ा और वह भी मीनू के साथ!!"
" तो फिर वह क्यों जा रही हैं? "
" पापा! आप को कैसे बताऊं? मेरी जबान को मानो ताला लग गया हैं. "
" किशोर चंद्र मैंने जिंदगी में काफ़ी धुप छाव देखी हैं. मुसीबतो एवम आफतो के बड़े से बड़े पहाड़ो को मेरी हिमत और धैर्य की दो मुही तलवार से काट दिए हैं. इस लिये मैं हर कोई झटका बर्दास्त करने में पूर्णतः समर्थ हूं.. आप जो भी सच हैं फट से बतादो. "
" पापा! आप की मीनू को भगवान का बुलावा आया हैं. "
" ओह नो! यह कैसे हो सकता हैं?! "
" पापा! यही सच्चाई हैं.. उसे हमें स्वीकारना यही विकल्प बचा हैं. डोक्टर ने जवाब दे दिया हैं. किसी भी पल उस की विकेट गिर सकती हैं!! "
" यकायक ऐसा क्या हो गया? अभी दो दिन पहले तो अपने मायके से ख़ुशी ख़ुशी बिदा किया हैं.. "
" पापा! भगवान की मर्जी के सामने कभी भी किसी की चली हैं क्या? "
" उसे क्या तकलीफ हैं? l"
"पापा उस के पेट में ट्यूमर हैं. " कहते हुए किशोर चंद्र की जबान लड़खड़ाती जाती हैं.
" ओह भगवान! वह कौन सी अस्पताल में हैं? "
" टाटा मेमोरियल में. "
" ठीक हैं. हम लोग तुरंत ही निकलते हैं.. "
" और हा पापा! सुंदर को भी साथ लाइयेगा.. मीनू की सांसे उस में ही रुकी हैं. "
" ठीक हैं भाई! "
रवि कांत रिसीवर यथास्थान रखते हैं.
उन की आँखों के सामने पूरा जगत घूमने लगता हैं. वह अपने आप को सँभालने की कोशिश करते हैं. ऊन की लाड़ो बेटी चंद पलों की मेहमान थी.. उस ख्याल से ऊन की आंखे गीली हो जाती हैं..ऊन की बेटी देखते ही देखते काल के खप्पर की बलि हो जायेगी. उस ख्याल से रवि कांत कांपने लगते हैं.
फिर भी वह अपने आप को सँभालते हैं और पड़ोसी की मदद लेकर सुंदर को टेक्षी में बिठाते हैं.. टेक्षी गतिमान होती हैं और रवि कांत के कानो में एक गीत दस्तक देता हैं.
और वह अतीत में खो जाते हैं.
' कन्हैया ओ कन्हैया तुझ को आना पड़ेगा '
गोकुल अष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठाते हुए ऊन की बीवी रोहिणी ने कहां था :
" सुनते हो? समय हो गया हैं. हमें तुरंत प्रसूति होम जाना होगा. "
रवि कांत शीघ्र रोहिणी को टेक्सी कर के अस्पताल जाते हैं. वह काफ़ी चिंतित दिख रहे थे. डोक्टर की एक बात लगातार ऊन के दिमाग़ में परिभ्रमण कर रही थी.
नोर्मल प्रसूति होने का कोई चान्स नहीं हैं.. रोहिणी को असहय दर्द हो रहा था. इस लिये वह बारबार ड्राइवर को सूचित करते थे :
" भैया टेक्सी धीरे चलाना! "
रोहिणी को तुरंत प्रसूति होममें भर्ती किया जाता हैं. उस घड़ी से रवि कांत के दिमागमे काउंट डाउन जारी हो गया था. टेंशन युक्त माहौल में भी ऊन के होठो पर वोही गीत गूंज रहा था.
' कन्हैया ओ कन्हैया तुझ को आना पडेगा. '
रवि कांत को विश्वास था. ऊन के घर में पुत्र का ही जन्म होगा. ऊन की दिली ख्वाहिश को यह गीत आकार दे रहा था. उसी समय उन्हें डोक्टर की बात याद आई थी..
' डिलीवरी नोर्मल नहीं होंगी. '
हॉस्पिटल इन चार्ज लेडी डोक्टर ने भी रोहिणी को चेक करने बाद दोहराया था.
" सिझरिंग करना पड़ेगा! "
इतनी सी बात से रवि कांत काफ़ी घबरासे गये थे..
थोड़ी देर बाद बड़े डोक्टर ने आकर बड़ा झटका दिया था.
" मि रवि कांत हालत काफ़ी नाजुक हैं. मा या बालक दो में से किसी एक को ही बचाया जा सकता हैं. "
यह सुनकर रवि कांत अपने होशों हवास खो बैठे थे.
" मि रवि कांत! औपचारिकता के तौर पर यह फॉर्म साइन कर दीजिये! "
" डोक्टर साब! ऐसी स्थिति में आप मेरी वाइफ को बचा लीजिये. "
रवि कांत ने पेपर्स साइन करते हुए गुजारिश की थी :
" आप चिंता मत कीजिये. इन हालात में हम लोग मा को ही बचाने की कोशिश करते हैं. यही हमें सिखाया जाता हैं और यही हमारा प्रोटोकॉल होता हैं. बाकी सब भगवान की मर्जी के आधीन होता हैं. "
उस वक़्त भी वही गीत रवि कांत के दिल में उछल रहा था.
दो घंटो के कड़े मानसिक टेंशन युक्त हालात में बीत जाने के बाद डोक्टर ने उन्हें समाचार दिये थे..
" मि रवि कांत! गोड़ इझ ग्रेट!! और आप खुद भी खुश किस्मत हो. आप की वाइफ ने एक सुंदर फूल जैसी बच्ची को जन्म दिया हैं. "
" साब! दोनों की तबियत कैसी हैं? "
" दोनों की तबियत ठीक हैं. चिंता की कोई बात नहीं. "
" थेंक्स डोक्टर साब! "
" इस में एहसान मानने की कोई आवश्यकता नहीं हैं. यह सब भगवान की मेहरबानी का नतीजा हैं. मैंने तो केवल अपना फ़र्ज निभाया हैं! "
" साब! मैं अपनी बेटी को और वाइफ को देख सकता हूं? "
" बेटी को मिलने के लिये थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा. बाकी वाइफ को मिल सकते हो. "
" नो प्रोब्लेम! "
वह तुरंत ही वॉर्ड में दाखिल हुए थे. पति के चेहरे पर ख़ुशी के किरण झलक रहे थे. उस वक़्त उसे पति की बात याद आ गईं थी.
...
" हा! किशोर चंद्र क्या बात हैं? "
" पापा! बात काफ़ी गंभीर हैं!! "
" क्या बात हैं? तुम्हारी आवाज क्यों बोखला रही हैं? "
" पापा! बात ही कुछ ऐसी हैं!! "
" क्या हुआ हैं? रवि कांत की आवाज में चिंता की भनक आती हैं!! "
" पापा! आप की मीनू..!! "
" क्या हुआ हैं? मेरी लाड़ो मीनू मास्टर को? "
" पापा! वह हम सब को छोड़ कर जा रही हैं! "
" कहाँ जा रही हैं? क्यों जा रही हैं? क्या तुम दोनों के बीच कोई अनबन या झगड़ा हुआ हैं? "
" ना पापा! झगड़ा और वह भी मीनू के साथ!!"
" तो फिर वह क्यों जा रही हैं? "
" पापा! आप को कैसे बताऊं? मेरी जबान को मानो ताला लग गया हैं. "
" किशोर चंद्र मैंने जिंदगी में काफ़ी धुप छाव देखी हैं. मुसीबतो एवम आफतो के बड़े से बड़े पहाड़ो को मेरी हिमत और धैर्य की दो मुही तलवार से काट दिए हैं. इस लिये मैं हर कोई झटका बर्दास्त करने में पूर्णतः समर्थ हूं.. आप जो भी सच हैं फट से बतादो. "
" पापा! आप की मीनू को भगवान का बुलावा आया हैं. "
" ओह नो! यह कैसे हो सकता हैं?! "
" पापा! यही सच्चाई हैं.. उसे हमें स्वीकारना यही विकल्प बचा हैं. डोक्टर ने जवाब दे दिया हैं. किसी भी पल उस की विकेट गिर सकती हैं!! "
" यकायक ऐसा क्या हो गया? अभी दो दिन पहले तो अपने मायके से ख़ुशी ख़ुशी बिदा किया हैं.. "
" पापा! भगवान की मर्जी के सामने कभी भी किसी की चली हैं क्या? "
" उसे क्या तकलीफ हैं? l"
"पापा उस के पेट में ट्यूमर हैं. " कहते हुए किशोर चंद्र की जबान लड़खड़ाती जाती हैं.
" ओह भगवान! वह कौन सी अस्पताल में हैं? "
" टाटा मेमोरियल में. "
" ठीक हैं. हम लोग तुरंत ही निकलते हैं.. "
" और हा पापा! सुंदर को भी साथ लाइयेगा.. मीनू की सांसे उस में ही रुकी हैं. "
" ठीक हैं भाई! "
रवि कांत रिसीवर यथास्थान रखते हैं.
उन की आँखों के सामने पूरा जगत घूमने लगता हैं. वह अपने आप को सँभालने की कोशिश करते हैं. ऊन की लाड़ो बेटी चंद पलों की मेहमान थी.. उस ख्याल से ऊन की आंखे गीली हो जाती हैं..ऊन की बेटी देखते ही देखते काल के खप्पर की बलि हो जायेगी. उस ख्याल से रवि कांत कांपने लगते हैं.
फिर भी वह अपने आप को सँभालते हैं और पड़ोसी की मदद लेकर सुंदर को टेक्षी में बिठाते हैं.. टेक्षी गतिमान होती हैं और रवि कांत के कानो में एक गीत दस्तक देता हैं.
और वह अतीत में खो जाते हैं.
' कन्हैया ओ कन्हैया तुझ को आना पड़ेगा '
गोकुल अष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठाते हुए ऊन की बीवी रोहिणी ने कहां था :
" सुनते हो? समय हो गया हैं. हमें तुरंत प्रसूति होम जाना होगा. "
रवि कांत शीघ्र रोहिणी को टेक्सी कर के अस्पताल जाते हैं. वह काफ़ी चिंतित दिख रहे थे. डोक्टर की एक बात लगातार ऊन के दिमाग़ में परिभ्रमण कर रही थी.
नोर्मल प्रसूति होने का कोई चान्स नहीं हैं.. रोहिणी को असहय दर्द हो रहा था. इस लिये वह बारबार ड्राइवर को सूचित करते थे :
" भैया टेक्सी धीरे चलाना! "
रोहिणी को तुरंत प्रसूति होममें भर्ती किया जाता हैं. उस घड़ी से रवि कांत के दिमागमे काउंट डाउन जारी हो गया था. टेंशन युक्त माहौल में भी ऊन के होठो पर वोही गीत गूंज रहा था.
' कन्हैया ओ कन्हैया तुझ को आना पडेगा. '
रवि कांत को विश्वास था. ऊन के घर में पुत्र का ही जन्म होगा. ऊन की दिली ख्वाहिश को यह गीत आकार दे रहा था. उसी समय उन्हें डोक्टर की बात याद आई थी..
' डिलीवरी नोर्मल नहीं होंगी. '
हॉस्पिटल इन चार्ज लेडी डोक्टर ने भी रोहिणी को चेक करने बाद दोहराया था.
" सिझरिंग करना पड़ेगा! "
इतनी सी बात से रवि कांत काफ़ी घबरासे गये थे..
थोड़ी देर बाद बड़े डोक्टर ने आकर बड़ा झटका दिया था.
" मि रवि कांत हालत काफ़ी नाजुक हैं. मा या बालक दो में से किसी एक को ही बचाया जा सकता हैं. "
यह सुनकर रवि कांत अपने होशों हवास खो बैठे थे.
" मि रवि कांत! औपचारिकता के तौर पर यह फॉर्म साइन कर दीजिये! "
" डोक्टर साब! ऐसी स्थिति में आप मेरी वाइफ को बचा लीजिये. "
रवि कांत ने पेपर्स साइन करते हुए गुजारिश की थी :
" आप चिंता मत कीजिये. इन हालात में हम लोग मा को ही बचाने की कोशिश करते हैं. यही हमें सिखाया जाता हैं और यही हमारा प्रोटोकॉल होता हैं. बाकी सब भगवान की मर्जी के आधीन होता हैं. "
उस वक़्त भी वही गीत रवि कांत के दिल में उछल रहा था.
दो घंटो के कड़े मानसिक टेंशन युक्त हालात में बीत जाने के बाद डोक्टर ने उन्हें समाचार दिये थे..
" मि रवि कांत! गोड़ इझ ग्रेट!! और आप खुद भी खुश किस्मत हो. आप की वाइफ ने एक सुंदर फूल जैसी बच्ची को जन्म दिया हैं. "
" साब! दोनों की तबियत कैसी हैं? "
" दोनों की तबियत ठीक हैं. चिंता की कोई बात नहीं. "
" थेंक्स डोक्टर साब! "
" इस में एहसान मानने की कोई आवश्यकता नहीं हैं. यह सब भगवान की मेहरबानी का नतीजा हैं. मैंने तो केवल अपना फ़र्ज निभाया हैं! "
" साब! मैं अपनी बेटी को और वाइफ को देख सकता हूं? "
" बेटी को मिलने के लिये थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा. बाकी वाइफ को मिल सकते हो. "
" नो प्रोब्लेम! "
वह तुरंत ही वॉर्ड में दाखिल हुए थे. पति के चेहरे पर ख़ुशी के किरण झलक रहे थे. उस वक़्त उसे पति की बात याद आ गईं थी.
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