"ठाकुर जी "
एक सासु माँ और बहू थी।
सासु माँ हर रोज ठाकुर जी पूरे नियम और श्रद्धा के साथ सेवा करती थी।
एक दिन शरद ऋतु मेँ सासु माँ को किसी कारण वश शहर से बाहर जाना पडा।
सासु माँ ने विचार किया के ठाकुर जी को साथ ले जाने से रास्ते मेँ उनकी सेवा-पूजा नियम से नहीँ हो सकेँगी।
सासु माँ ने विचार किया के ठाकुर जी की सेवा का कार्य अब बहु को देना पड़ेगा लेकिन बहु को तो कोई अक्कल है ही नहीँ के ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी हैँ।
सासु माँ ने बहु ने बुलाया ओर समझाया के ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी है।
कैसे ठाकुर जी को लाड लडाना है।
सासु माँ ने बहु को समझाया के बहु मैँ यात्रा पर जा रही हूँ और अब ठाकुर जी की सेवा पूजा का सारा कार्य तुमको करना है।
सासु माँ ने बहु को समझाया देख ऐसे तीन बार घंटी बजाकर सुबह...
सासु माँ हर रोज ठाकुर जी पूरे नियम और श्रद्धा के साथ सेवा करती थी।
एक दिन शरद ऋतु मेँ सासु माँ को किसी कारण वश शहर से बाहर जाना पडा।
सासु माँ ने विचार किया के ठाकुर जी को साथ ले जाने से रास्ते मेँ उनकी सेवा-पूजा नियम से नहीँ हो सकेँगी।
सासु माँ ने विचार किया के ठाकुर जी की सेवा का कार्य अब बहु को देना पड़ेगा लेकिन बहु को तो कोई अक्कल है ही नहीँ के ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी हैँ।
सासु माँ ने बहु ने बुलाया ओर समझाया के ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी है।
कैसे ठाकुर जी को लाड लडाना है।
सासु माँ ने बहु को समझाया के बहु मैँ यात्रा पर जा रही हूँ और अब ठाकुर जी की सेवा पूजा का सारा कार्य तुमको करना है।
सासु माँ ने बहु को समझाया देख ऐसे तीन बार घंटी बजाकर सुबह...