...

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झरोखा
लगता है जैसे कल की ही बात हो,
पर आज तीन दसक से ऊपर हो चुके हैं , यादें जस की तस हैं एक दम ताजा सोचा आज एक बार फिर चलती हूं उन्हीं रास्तों पर बस एक अंतर है कि पहले पैदल चलती थी आज कार से, बड़ी उत्सुकता से चली थी घर से कि आज इतने सालों के बाद दुबारा उस जगह को देख कुछ सुकून महसूस कर सकूंगी जस जस नजदीक आ रही थी मंज़िल धड़कने तेज होने लगी,पर यह क्या यहां तो सब कुछ बदल चुका है कुछ भी तो पहले जैसा नहीं रहा ना वो रास्ता रहा न वो पेड़ पौधे रहे ना ही रहा वो मकान और न ही रहा वो झरोखा की जिस झरोखे से उसे देखती थी और पनपने लगा था बालमन का एक अनछुआ सा प्रेम दूर दूर से बस कुछ दिन का ना महिनों का ना ही कुछ वर्षों का फिर जुदाई बिना कुछ कहे सुने हमेशा हमेशा के लिए, उसकी गाढ़ी मोहब्बत आज भी हृदय के किसी कोने में मौजूद है, पर अफसोस कि पहले जैसा कुछ नहीं रहा।
© स्वरचित Radha Singh