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स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद द्वारा शिकागो की धर्म संसद में दिए गए भाषण याद सबको है। पूरा देश, ख़ास तौर पर वो लोग जिनके ख़ुद के पूर्वज कभी कोई उल्लेखनीय काम नहीं कर पाए, वो स्वामी विवेकानंद समेत कई ऐतिहासिक व्यक्तित्वों को हाईजैक करके उनकी जयंती को ज़्यादा विशेष रूप से मनाते हैं।

लेकिन आज जब पूरा देश स्वामी विवेकानंद को याद कर रहा होगा तो चलिए हम स्वामी विवेकानंद को शिकागो भेजने वाले और उनकी पूरी अमेरिका और यूरोप की ट्रिप स्पॉन्सर करने वाले भास्कर सेतुपति को याद करते हैं।

भास्कर सेतुपति रामेश्वरम के निकट रामानंद या रामेश्वरपुरम रियासत के राजा थे। सेतुपति टाइटल उन्हें उनके पूर्वजों से मिला था जो सेतु यानि के ब्रिज के रखवाले थे, अब यहाँ बताने की शायद ज़रूरत न हो कि यहाँ राम सेतु की बात हो रही है, और इनके पूर्वजों ने राम सेतु की रक्षा का दायित्व अपने ऊपर ले रखा था।

तो जब रामेश्वरम के राजा भास्कर सेतुपति को पता चला कि स्वामी विवेकानंद जी शिकागो की धर्म संसद में जाना चाहते हैं और उनके पास जाने की व्यवस्था नहीं है तो भास्कर सेतु पति ने उनकी पूरी यात्रा को स्पॉन्सर करने का बीड़ा उठाया।

और जब स्वामी विवेकानंद अपनी 4 साल की यात्रा के बाद 1897 में लौटे तो उन्होंने सबसे पहला कदम राजा भास्कर सेतुपति के साम्राज्य में ही रखा, जहां भास्कर सेतुपति ने स्वामी विवेकानंद की सफल यात्रा के उपलक्ष्य में एक 40 फ़िट का कीर्ति स्तम्भ बना रखा था, जिसके नीचे उन्होंने लिखवाता था….”सत्यमेव जयते”, यही वाक्य बाद में भारत सरकार का अधिकारिक ब्रह्म वाक्य बना।

भास्कर सेतुपति स्वामी विवेकानंद के इतने अनन्य शिष्य थे कि 1902 में स्वामी विवेकानंद की मृत्यु के बाद उन्हें ऐसा सदमा लगा कि अगले ही वर्ष 1903 में महज़ 35 वर्ष की आयु में अपने प्राण त्याग दिए।

बंगाल में जन्मे स्वामी विवेकानंद के प्रति तमिलनाड के राजा की ये अनन्य भक्ति बताती है कि उस समय भी जब न इंटर्नेट था न TV न रेडियो और अख़बार ही इतने सहज और आम थे, तब भी भारत के लोग कैसे एक दूसरे से जुड़े हुए थे, और आज इतना सब होने के बाद सिर्फ़ 75 सालों में हमने भाषा, संस्कृति, रीति रिवाजों के चक्कर में आपस में कितनी दूरियाँ बना ली हैं।

स्वामी विवेकानंद के साथ उनके ज्ञान और हमारी भारतीय संस्कृति को सवा सौ साल पहले पूरी दुनिया से अवगत कराने के लिए भास्कर सेतुपति को भी नमन…
साभार FB