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मौत का कुँवा
#WritcoStoryPrompt11
हमारा परिवार बहुत पहले गांव छोड़कर, शहर में आकर रहने लगा था.

मेरे पिता ने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने के लिए शायद यह कदम उठाया था.
मैं यूं तो चंचल प्रवृति का बचपन से ही था. कौतुहल से कई नए नए काम को करता था.

शायद परिवार मे, मै हीं था जो छुट्टी मे गांव आया जाया करता था.. हमारे गांव के नजदीक एक जंगल हुआ करता था. उस जंगल के बीचो बीच एक गहरा कुआं भी था.

उस कुएं के बारे में तरह-तरह की कहानियां गांव में सुनने को मिलती थी . मुझे भी यह उत्सुकता कई बार होती कि आखिर इतने घने जंगल के बीच में यह कुआं किसने बनवाया होगा?
गाँव के लोग कहते थे" यह मौत का कुआं है, इसकी आस पास जो भी जाता है उसकी मौत हो जाती है.
यह हकीकत है कि कभी अकेले जाने की हिम्मत मुझे भी नहीं हुई.
लेकिन मेरे अंदर का कीड़ा हमेशा मुझे काटता रहा की आँखिर इस कुएं के पीछे ऐसा क्या राज है जिससे लोग इतना डरते हैं? .

आज आखिर वह दिन आ गया जब हमारी यह उत्सुकता शांत होने वाली थी.
दिवाली की वजह से ऑफिस में तीन-चार दिन का अवकाश बन रहा था. मेरी साथियों ने कहा चलो "इस अवकाश का फायदा उठाकर कहीं घूमने जाया जाए".
घूमने कहां जा जाया जाए इस पर मंथन चल ही रहा था तब मैंने उनको सुझाव दिया कि "मेरे गांव चलो".
उनमें से कई लोगों ने कहा कि तुम्हारा गांव भी तो भारत के और गाँवों की तरह ही होगा उसमें ऐसा विशेष क्या है? ".
जब मैंने अपने साथियों को उस मौत के कुएं के बारे में बताया तो सब उसके बारे में जानने के लिए गांव जाने को राजी हो गए.

मुझे भी आज खुशी हो रही थी क्योंकि आजतक अकेले मै भी वहां जाने की हिम्मत नहीं कर पाया था. आज हम पांच -छहः युवक वहां जा सकेंगे. लंबे समय से इस रहस्य से पर्दा उठ जाएगा कि आखिर उस कुएं में ऐसा क्या है जिससे लोग उसे मौत का कुआं कहते हैं.

हम निर्धारित समय पर जीपीएस इनेबल मोबाइल, स्मार्टफोन और जरूरी सामान के साथ गांव पहुंच गए.
हमारे चाचा जी ने हमे कुवें की ओर जाने से मना किया, लेकिन किसी तरह हम उनको मनाने को राजी हो गये.

यूँ तो जा सब रहे थे,लेकिन सबके अंदर कहीं न कहीं भीतर डर भी व्याप्त था.
लेकिन सब लोग उस रहस्य से मुक्ति भी पाना चाहते थे.
जब हम कुएं के पास पहुंचे तो हमने कुवें के अंदर उतरने के बारे में सोचने लगे.

लेकिन हमारे आश्चर्य का ठिकाना तब नहीं रहा जब हमने कुए में उतरने के लिए लोहे की बनी सीढ़ियां देखी.
नीचे मकड़ी के जाले लगे हुए थे, लेकिन सीढ़ियां चलती जा रही थी. जब हम जाले हटाते हुए, झाड़ी हटाते हुए कुएं के तल तक पहुंचे तो हमें वहां पानी की एक भी बूंद नजर नहीं आई.
हम लोग सब आश्चर्य से भर गए कि कुँवा इतना सूखा क्यों है?
जब हमने कुवे की दीवारें देखना शुरू किया तो एक जगह दीवार पर हमें लोहे का दरवाजा नजर आया.
दरवाजा बहुत भारी लग रहा था. लेकिन हम जैसे तैसे सब मिलकर दरवाजे को खोलने में कामयाब हुए तो सब हतप्रभ रह गए.
उसके अंदर हमें एक विशाल मंदिर के अवशेष नजर आए.
हमने अपने अपने मोबाइल फोन से कैमरों से वहां की तस्वीरें ली.
मेरे एक दोस्त ने कहा "अच्छा हो हम इन चीजों को ना छेड़े और इसके बारे में पुरातत्व विभाग को खबर कर दें.
अगले दिन अखबार में दोस्तों के साथ हमारी फोटो छपी थी. और हमारी इस यात्रा को सराहा गया था, उस अखबार की रिपोर्ट में यह लिखा गया था कि शायद इस खंडहर से इतिहास के कुछ पन्ने और खुल सकते हैं.

सबसे अच्छी बात है गांव वालों के मन में भी मेरे प्रति प्यार और अनुराग बढ़ गया tha. क्योंकि मैंने अपने दोस्त के साथ मिलकर उनके अंदर के भय को खत्म कर दिया था.