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लाडली दान।

लाडली यानी बेटी अपने माता-पिता की लाडली होती है। एक बेटी विवाह के पूर्व अपना सारा सुख दुख अपने माता-पिता पर
छोड़ देती है। कभी सरल कभी भोली और रूठकर माता पिता से अपना सारा जिद को मना लेती है। अपनी छोटी छोटी बातों को
बड़ी आसानी से माता-पिता के साथ शेयर कर लेती है।उसके माता-पिता भी जहां तक हो सके उसके अरमानों को पूरा करने की कोशिश करते हैं। इसके लिए चाहे उन्हें किसी
भी प्रकार की कठिनाइयां उठानी पड़े उठाते हैं।वे हमेशा चाहते हैं कि उनकी लाडली खुश रहे।
लेकिन जब उस लाडली का विवाह तय हो
जाता है तब उस कन्या के मन में तरह तरह
की कल्पनाएं उठने लगती है,अगर पिता के घर में किसी भी तरह का अभाव और तकलीफ़ हो तो वह सोचती है कि ससुराल जाकर उन अरमानों को पूरा करेगी।वह सोचती है कि
विवाहपोरांत उसके जीवन में परिवर्तन आएगा। उसकी सभी इच्छाएं पूरी होगी।

लेकिन विवाह के बाद उसके इस नाजुक भावनाओं पर अगर पानी फेर जाता है तो
उसका मन, आत्मा और दिल चकनाचूर हो
जाता है।उसका जीना मरने के बराबर हो जाता है।उसके अपेक्षा के विपरित उसे नियमों के बेरियों से बांध दिया जाता है। ससुराल के
मर्यादा को मानने के लिए उसे मजबूर किया जाता है।ऐसे तो हर लड़की मर्यादा का उलंघन
करना नहीं चाहती है
उसे पिता के घर में जो स्नेह मिला उसे याद
करके मन ही मन घूंटने लगती है। परिवार
के हर जन उस पर कुछ न कुछ बोझ डालने
लगते हैं। कुछ लड़कियां इन सभी बातों को
अपना भाग्य समझकर उसके अनुसार अपने आप को ढालने की कोशिश करती है और
कुछ निराशाजनक जिंदगी को लेकर पिता के
घर लौट जाती है।
कुछ पिता जो आधुनिक रीति रिवाज को
मानने वाले होते हैं अपनी लाडली को गले लगा लेते हैं और जो रूढ़िवादी होते हैं अपनी लाडली से उस वक्त मुंह फेर लेते हैं जब लाडली को उनकी ज़रुरत है।
लाचार बेटी अंत में मौत को गले लगा लेती है।
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