जैसे को तैसा
एक औरत अपने परिवार के सदस्यों के लिए रोज़ाना भोजन पकाती थी और एक रोटी वह वहाँ से गुजरने वाले किसी भी भूखे के लिए पकाती थी।
वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी, जिसे कोई भी ले सकता था।
एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता - "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा।" दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा। वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी कि -"कितना अजीब व्यक्ति है, एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है, और न जाने क्या-क्या...
वह उस रोटी को खिड़की के सहारे रख दिया करती थी, जिसे कोई भी ले सकता था।
एक कुबड़ा व्यक्ति रोज़ उस रोटी को ले जाता और बजाय धन्यवाद देने के अपने रस्ते पर चलता हुआ वह कुछ इस तरह बड़बड़ाता - "जो तुम बुरा करोगे वह तुम्हारे साथ रहेगा और जो तुम अच्छा करोगे वह तुम तक लौट के आएगा।" दिन गुजरते गए और ये सिलसिला चलता रहा। वह औरत उसकी इस हरकत से तंग आ गयी और मन ही मन खुद से कहने लगी कि -"कितना अजीब व्यक्ति है, एक शब्द धन्यवाद का तो देता नहीं है, और न जाने क्या-क्या...