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चिट्ठी
#चिट्ठी
लाइब्रेरी में बैठी हुई निकिता क़िताब के पन्ने पलट रही थी और बेसब्री से सुप्रिया का इंतज़ार कर रही थी। जब से सुप्रिया का कॉल आया था और उसने उसे लाइब्रेरी बुलाया था ये कह के की उसको उस चिट्ठी के बारे में कुछ पता चला है, तब से निकिता बेचैन थी।
यह चिट्ठी सूरज की थी जो उसने निकिता के लिये लिखी थी लेकिन उस तक पहुँच नहीं पायी थी।अपने शहर वापस जाते समय सूरज ने निकिता को चिट्ठी के बारे में बताया था कि वह कहाँ रखकर आया है पर जब निकिता वहाँ पहुँची तो चिट्ठी वहाँ से गायब थी तब से उस चिट्ठी की ढूँढ मची हुई है।
सुप्रिया के फोन कॉल से उसे थोड़ी राहत मिली कि शायद चिट्ठी मिल गयी है। निकिता को थोड़ी घबराहट भी हो रही थी कि नाजाने सूरज उसके लिए क्या संदेश लिखकर गया है।हालाँकि उसे पता था सूरज एक शरीफ लड़का है और यही उम्मीद थी कि वह ऐसा वैसा चिट्ठी में कुछ नहीं लिखेगा लेकिन फिर भी उसका मन अशांत था।
आज पूरे चार दिन बाद उस चिट्ठी का पता चला था। सुप्रिया और निकिता दोनों पागलों की तरह उस चिट्ठी को ढूँढ रहे थे क्यूँकी सूरज चिट्ठी बाबुजी के कमरे में छोड़कर आया था उसे लगा था कि वह निकिता का कमरा है। बाबुजी निकिता से बहुत प्यार करते हैं इसीलिए निकिता की तस्वीर उनके कमरे में उनकी टेबल पर सजी रहती है और सूरज इसी बात से भ्रमित हो गया कि यह कमरा निकिता का होगा।
बड़ी देर इन्तेज़ार करने के बाद आखिरकार सुप्रिया आ गयी।
"चिट्ठी कहाँ है"
"बाबुजी की टेबल पर पेपर वेट के नीचे दबी हुई खुली हुई रखी थी। बाबुजी उसे पढ़ चुके हैं।" सुप्रिया ने धमाका किया
"क्या,,, हे भगवान.. कहाँ फँसा दिया सूरज ने.. ख़ुद तो चला गया आराम से.." निकिता लगभग रो देने को थी.. बाबुजी का सामना करने की हिम्मत उसमें नहीं थी
"अच्छा.. अच्छा ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है.. मैंने भी दबे पाँव जाकर वह चिट्ठी पढ़ ली है।" सुप्रिया आराम से मुस्कराते हुए बोली
" जल्दी बता ना.. उसमें क्या लिखा था। "निकिता बहुत उतावली होकर बोली
"नहीं.. ऐसे नहीं.. पहले कोल्ड कॉफी पियेंगे और बाकी बात बाद में करेंगे "सुप्रिया ने भी ढीठ बनकर कहा
" पता था मुझे बगैर रिश्वत लिए तेरा कोई काम नहीं होता है.. मैंने ऑर्डर कर दिया है पहले ही.. देख सामने.. हमारा ऑर्डर भी आ गया है । "
" वाह... क्या टाइमिंग है" सुप्रिया ने ख़ुश होकर कहा
कोल्ड कॉफी के दो चार लंबे लंबे घूँट पीने के बाद उसने बताना शुरू किया
"चिट्ठी में लिखा था..
आदरणीय निकिता जी प्रणाम,
मैंने आपके बाबुजी से एक सौ रुपये उधार लिये थे। अब मैं ये रकम उन्हें वापस करना चाहता हूँ और वह इंकार कर रहे हैं.. मुझसे वह एक सौ रुपये नहीं ले रहे हैं।
आप उनकी बेटी हैं कृपा करके उन्हें मनाकर यह एक सौ रुपया स्वीकार करा दें।
रुपये इसी चिट्ठी के लिफाफे में मौजूद हैं।आपका बहुत बहुत आभारी रहूँगा। लगता है इसे प्रेम पत्र तुझे ही पहले लिखना पड़ेगा। इसकी समझ में कुछ नहीं आने वाला है "सुप्रिया हँस हँसकर लोटपोट हो गयी थी।
" पगला कहीं का..यह कहकर निकिता की भी मुस्कराहट गहरी हो गयी थी।उसे सुकून इस बात का था कि चिट्ठी ने उसे मुश्किल में नहीं डाला था।
NOOR E ISHAL
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