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ज़िन्दगी सफ़र या Suffer...
ज़िन्दगी सफ़र या Suffer...

ये ज़िन्दगी का सफ़र कैसा है
इस सफर में हर रोज़ suffer होते हैं
हँसी को पाने की खातिर यहाँ
सब परेशान होते हैं मन ही मन रोते हैं
इस ज़िन्दगी में ना जाने कितने समझौते हैं
बेबस होकर कर तो लेते हैं समझौते सभी
मगर अंदरूँ सबके बैचैनी, टीस, कसक
ना-खुशी, दर्द और अधूरापन होते हैं।

इस ज़िन्दगी को हर कोई नहीं जी पाता
यहाँ अपनी मर्ज़ी से
क्योंकि सब अपनी-अपनी मज़बूरी,
ज़िम्मेदारियाँ और कर्तव्य ढोतें हैं
हर किसी की आँखों में नमीं है यहाँ क्योंकि
सब अपनी ख़्वाहिशों की
मंज़िलों पर कहाँ होतें हैं
नाकामी में भी उम्मीद मिलती हैं इसमें
असफलताओं के बाद भी चाहतें
दिल में दूसरे नये सपनें संजोतीं हैं
ज़िन्दगी में सभी अपने, अपने नहीं होते
कुछ गैर ऐसे मिलते हैं जो
अपनों से भी बढ़कर होते हैं
स्वर्ग नर्क कुछ नहीं है दोनों ही यहीं होते हैं
सब अपना ही काटते हैं और अपना ही बोतें हैं

इस ज़िन्दगी के बारे में अब मैं और क्या कहूँ
हर कोई इसे जैसी जीना चाहता है
वैसी तो ये बिलकुल भी नहीं होती है
ये ज़िन्दगी जैसी भी है जी लो इसे खुलकर
ये वो अनुभव है जो सबको
नसीब से नसीब होतें है
मगर कुछ लोग इसे यूँ ही ज़ाया खोते हैं।

© Gaurav J "वैरागी"

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