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अंधेरी रात घना जंगल
मै और मेरी दोस्त एक शादी से लौट रहे थे उस वक्त रात के दस बज रहे थे घने कोहरे के साथ ठंठी हवाएं मानों एक छड़ को कही रूके तो बस वही जम जाएंगे ऊपर से रात का ये सन्नाटा दिल में इक अलग ही डर बिठा रहा था बड़े बुजुर्गो की सारी कहानियां याद आ रही थी उनकी कही हर बात याद आ रही थी वो अक्सर कहते थे रात के अंधेरे में कभी बालों को खुला मत छोड़ना उनकी वो बात याद आते ही झट पट अपने बालों का जूड़ा बना लिया तो साथ चल रही मेरी दोस्त मुझ पर हंस पड़ी क्यूंकि उसे मेरे ऐसा करने की वजह पता थी वो मुझे चिढ़ाते हुए बोली आत्माओं को चमकती चीजें भी बहुत आकर्षित करती हैं
तभी अचानक से हुई रोशनी ने हम दोनों को खामोश कर दिया गांव जंगल से अभी काफी दूर था और जिस रास्ते पर हम थे वहां कोई गाड़ी भी नहीं चलती थी तो हम दोनों ही ये सोचने लगे आखिर ये कैसी रोशनी हो सकती है दोनों ही काफी डरे हुए थे कदम आगे ही नहीं बड़ रहे थे अब मेरी दोस्त को भी अपने shortcut के इस फैसले पर पछतावा हो रहा था दो किलोमीटर की दूरी दो सौ किलोमीटर सी लग रही थी ऐसा लग रहा था मानो ये रास्ता ही नहीं खत्म हो रहा है जैसे तैसे करके हम ने एक किलोमीटर की दूरी तय कर ली थी दोनों के जहन में अब भी वो रौशनी क्या थी ये बात चल रही थी समय बढ़ने के साथ हमारा डर भी बढ़ता जा रहा था ठंड की वजह से हम ज्यादा तेज भी नहीं चल पा रहे थे तभी झाडियों में हुई सरसराहट ने हमें और डरा दिया हालांकि वो बस एक बिल्ली थी पर हम ने बिल्लीयों की भी बहुत कहानियां सुनीं थी इसलिए एक पल को सहम से गए थे हां पर उसके आगे जाते ही ध्यान उस पर से हट गया जैसे तैसे करके हम गांव में पहुंच गए रात के दस साढ़े दस बज रहे थे इसलिए सब अपने घरों में सो चुके थे पर सबके घरों से आ रही रौशनी ने हमें थोड़ा हिम्मत दिया था की तब तक मेरी दोस्त का घर आ गया हालांकि उसके दो घर बाद ही मेरा घर था फिर भी हम ने उससे कहा की जब तक मै घर तक न पहुंच जाऊ वो घर के अंदर न जाये और फिर मै भी अपने घर पहुंच गई देर रात आने की वजह से बहुत डांट पड़ी पर घर पहुंचने की खुशी के आगे डांट सुनाई ही नहीं दे रही थी और फिर चुप चाप अपने कमरे में जाकर सो गए पर आज तक उस रात को याद कर के दिल सहम सा जाता है और जहन में आज भी वो प्रशन जिंदा हो उठता है की आखिर वो रौशनी क्या थी.??
© rupali shrivastav
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