...

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unknown love #4
आंखों में पट्टी बन्धी हुई थी
और वो मेरे हाथ को थामे
थोड़ी दूर साथ चल रहा था।

इतने में एक शोर और
मालूम नहीं पड़ रहा था
हम आखिर कहां खड़े थे।

आंखो ढके उस कपड़े को खोला गया
सामने समन्दर और पूरा चांद फलक पर था।

इस बार थोड़ा ज़्यादा चौकी
क्योंकि सही मायने में
कुछ ऐसा ही मेरा ख्वाब था।

वो सामने घुटनों के बल बैठे थे
हाथों में मेरे लिए
सबसे कीमती तोफा लिए
ना गुलदस्ता और नाही कोई शाही अंगूठी
वो थी मेरी प्रिय दैनंदिनी और कलम
और फिर बस इतना कहे
"हे मेरी प्रियतमा,
मै तुम्हारा वो समन्दर बनना चाहता हूं
जो हज़ार बार तुमको छोड़ जाए
पर कुछ क्षण में टूटकर,
दौड़कर फिर तुमसे लिपट जाए
तुम्हे हज़ार बार चूमे पर छोड़कर ना जाए।
क्या तुम ज़िन्दगी भर
मेरा वो साहिल बनोगी
जो हर पल साथ रह जाए?"

मै कुछ कह ना सकी
जैसे वो घुटनों के बल बैठे थे
मै भी उनके सामने बैठी
दोनों आंखें मिला रहे थे
और इस वक़्त
दोनों के आंखो में धारा थी
मै करीब आई और
उनके कानों में अपना जवाब
हां में बोली
हम साहिल पर थे बैठे
गले लगाए टूटकर वो रो पड़े।

यह वक़्त हमारा खास था
इस पल को
हम दोनों ने साथ ही जिया था।
वादों के मुताबिक
मै हर पल हर क्षण साथ रही
और आज हमारी इस कहानी को
साथ बिताई जिंदगानी को
100 वर्ष हो चुका था।





© Anushka_28