हमारी मां(९)
शांताबाई मौसी दिखने में बिल्कुल मम्मी जैसी थीं,बस वे गोरी और जरा सी लम्बी थीं।और मम्मीजी सांवलीं और जरा सी नाटी।उन के पास एक दस-बारह साल की लड़की रहती थी जो उनके सारे काम करती थी।वह लड़की जाकर मौसी की बेटी प्रमिला दीदी को लेकर आ चुकी थी।शांता मौसी बोली रहीं थीं ," तुझे ले जाने के बाद,आईं के देहांत से घर सारा बिखर सा गया था।चाची बाजू रहती थीं वे हमारी घर संभालने में मदद करतीं।बाद में हमारी शादियों में भी उन्हीं का योगदान रहा।दादा हैदराबाद ज्यादा आते थे न इसलिए मेरी शादी यहां करवा दी।"पीछे प्रमिला दीदी बोलीं,"शायद इसीलिए नानाजी अपने अंतिम समय में बार-बार चिल्ला रहे थे "मांझी मुली गेली शिखांचे पदरात गेली" क्या?मम्मी ने हैरान होकर पूछा।हां यही कह रहे थे कि मेरी बेटी...